Delhi University: डीयू में बिना काम के हो जाएंगे अंग्रेजी टीचर

Delhi University: दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी पढ़ा रहे सैकड़ों टीचरों को नौकरी जाने का डर सता रहा है। इसकी वज़ह इस साल शुरू होने वाला नया चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2022-07-06 11:22 GMT

दिल्ली यूनिवर्सिटी: Photo - Social Media

Lucknow: दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) में अंग्रेजी पढ़ा रहे सैकड़ों टीचरों को नौकरी जाने का डर सता रहा है। इसकी वज़ह इस साल शुरू होने वाला नया चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम है। दिल्ली विश्वविद्यालय के लगभग 450 अंग्रेजी शिक्षकों ने डीयू शिक्षक संघ (DU Teachers Association) के अध्यक्ष को एक याचिका भेजकर इस साल शुरू होने वाले नए चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम पर आपत्ति जताते हुए उनसे तत्काल हस्तक्षेप करने के लिए कहा है। शिक्षकों का कहना है कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से लागू होने वाले अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) के तहत खासकर अंग्रेजी टीचरों को अभूतपूर्व नुकसान होगा। डीयू में स्थायी व एड हॉक मिला कर अंग्रेजी के 800 टीचर हैं।

क्या है मामला

दरअसल, यूजीसीएफ संरचना (UGCF Structure) कहती है कि एईसी (क्षमता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम) केवल आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में पेश किए जाएं। लेकिन इन भाषाओं में अंग्रेजी शामिल नहीं है। अभी तक एईसी में छात्रों को अंग्रेजी और हिंदी दोनों का विकल्प मिलता था। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय ने बीए और बीकॉम में से अंग्रेजी भाषा को एक पाठ्यक्रम के रूप में हटा दिया है। यानी अब विषय के रूप में अंग्रेजी नहीं रहेगी।

क्या असर होगा

एईसी में एक विकल्प के रूप में अंग्रेजी को हटाने के साथ, विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में शिक्षकों के पास काम की भारी कमी हो जाएगी। मिसाल के तौर पर किरोड़ीमल और रामजस जैसे कॉलेजों ने 60 से अधिक लेक्चर खत्म कर दिए हैं, जबकि हंसराज, शहीद भगत सिंह (एम) और अन्य में अगले सेमेस्टर में 50 से अधिक लेक्चर बन्द हो जाएंगे।

अंग्रेजी को एबिलिटी एन्हांसमेंट कंपल्सरी कोर्स या एईसी से हटाने से छात्रों को गुणवत्तापूर्ण अंग्रेजी शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा जो उनके शैक्षणिक और व्यावसायिक विकास को प्रभावित करेगा।चूंकि बीए और बीकॉम में से कोर विषय के रूप में अंग्रेजी को हटा दिया है। सो जो कालेज ऑनर्स और प्रोग्राम कोर्स नहीं चलाते हैं उनकी स्थिति ज्यादा बदतर होगी। अब वहां अंग्रेजी के स्थायी शिक्षक भी लगभग बेमानी हो जाएंगे।

सबसे ज्यादा प्रभावित उन कॉलेजों के अंग्रेजी शिक्षक होंगे जो न तो अंग्रेजी ऑनर्स देते हैं और न ही बी.ए. कार्यक्रम चलाते हैं जैसे कि केशव महाविद्यालय, जीजीएस कॉलेज ऑफ कॉमर्स, इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स, लेडी इरविन कॉलेज, भास्कराचार्य और राजगुरु कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज।ऐसे कालेजों का पूरा कार्यभार मुख्य रूप से एईसी का हुआ करता था, जो अब खत्म हो गया है। इस बदलाव से च्वाइस-बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) के ठीक बाद काम पर रखे गए अतिरिक्त फैकल्टी को बही खतरा है। 2015 में लागू इस नीति से छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रमों के एक सेट से चुनने की अनुमति मिलती थी।

फरवरी में हुआ फैसला

इस साल फरवरी में दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क, 2022 जारी किया गया। ये फ्रेमवर्क राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के अनुसार पाठ्यक्रम की संरचना करता है। इसके तहत ग्रेजुएशन के छात्रों के लिए क्षमता वृद्धि अनिवार्य पाठ्यक्रम (एईसी) के माध्यम के रूप में अब अंग्रेजी हटा दी गई है।

क्षमता वृद्धि अनिवार्य पाठ्यक्रम के तहत छात्रों को चार क्रेडिट मिलते हैं। छात्र इसमें कम्युनिकेशन स्किल, ग्रुप डिस्कशन और लेखन आदि सीखते हैं। अंग्रेजी में पाठ्यक्रम होने से छात्रों को आगे काफी फायदा भी मिलता था।

पहले छात्र अंग्रेजी, हिंदी या संस्कृत में दो पाठ्यक्रम - एईसीसी के साथ-साथ पर्यावरण अध्ययन - लेने का विकल्प चुन सकते थे। अधिकांश छात्र यह सोचकर अंग्रेजी का विकल्प चुनते थे कि इससे उन्हें पर्सनालिटी डेवलपमेन्ट में मदद मिलेगी।

अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क 2022 भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत 22 भाषाओं में से किसी में भी शिक्षा के माध्यम को बनाने की बात करता है। लेकिन इसमें अंग्रेजी शामिल नहीं है।

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