Hanuman Chalisa: फेमस उपन्यासकार विक्रम सेठ ने किया हनुमान चालीसा का अंग्रेज़ी अनुवाद, इसके पीछे जानिए क्या बताया कारण

Hanuman Chalisa: हनुमान चालीसा’ के लॉन्च से पहले उन्होंने मौजूदा राजनीतिक हालात आदि पर भी बात की। हालिया लोकसभा के चुनावी नतीजों पर उन्होंने कहा कि तानाशाही में कमी आई है।

Update:2024-06-21 17:48 IST

Hanuman Chalisa

Hanuman Chalisa: अक्सर अपने लेखों और अपनी टिप्पणियों को लेकर चर्चा में रहने वाले मशहूर लेखक और अंग्रेजी उपन्यासकार विक्रम सेठ एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार उनके चर्चा में रहने का कारण भी अलग ही है। वे इस बार हनुमान चालीसा का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर चर्चा में हैं।वहीं लोकसभा चुनाव और नतीजों को लेकर कहा, कह सकते हैं कि तानाशाही पर कुछ लगाम तो लग गई। अब देखा जाएगा आगे क्या होता है। भारत महान देश है। लेकिन जो ज़हर हमारी नसों में बहना शुरू हो गया है, उसे निकलने में टाइम लगेगा। आप जर्मनी के बारे में सोचिए। जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ़ इतनी नफ़रत थी।

अब वहां ऐसा कुछ नहीं है। जो अपने देशवासी के खिलाफ़ नफ़रत पैदा करते हैं, वो देशभक्त नहीं हो सकते।विक्रम सेठ से जब अनुवाद के लिए हनुमान चालीसा को चुनने और उसे इस समय प्रकाशित करने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कुछ दिलचस्प वाक़या साझा किया।द हनुमान चालीसा’ के लॉन्च से पहले उन्होंने बीबीसी से अनुवाद की पृष्ठभू्मि, इसके संदेश, मौजूदा राजनीतिक हालात आदि पर भी बात की। हालिया लोकसभा के चुनावी नतीजों पर उन्होंने कहा कि तानाशाही में कमी आई है।


बोले-बचपन से ही हनुमान चालीसा से मुझे लगाव है

विक्रम सेठ हनुमान चालीसा का अंग्रेज़ी अनुवाद करने की प्रेरणा के बारे में कहते हैं, बचपन से ही मुझे हनुमान चालीसा से बड़ा लगाव है और मैंने एक वक़्त अपनी ख़ुशी के लिए इसका तर्जुमा किया था और दस साल पहले इसकी शुरुआत की थी। इसे प्रकाशित करने का विचार आने के बारे वो कहते हैं, अभी इसे प्रकाशित करने का विचार तब आया जब 90 साल की मेरी विधवा मामी ने मुझसे कहा कि ये तुमने अपने लिए किया है, दूसरों को भी दिखाओ। मैंने कहा, मेरा अनुवाद तुलसीदास की तुलना में कुछ नहीं है तो उन्होंने कहा कि यह एक तरह से खिड़की तो है कि जो लोग हिंदी नहीं समझ सकते या इससे परिचित नहीं हैं, उन्हें तो कम से कम इसके बारे में पता होना चाहिए।हो सकता है कि वो इससे प्रेरित होकर मूल कृति की ओर जाएं और ऐसा न भी हो तो इससे कुछ तो लुत्फ़ मिलेगा।


ब्रज भाषा या अवधी, ये भी तो महान साहित्यिक भाषाएं हैं

हनुमाल चालीसा अवधी में लिखी गई है, तो भाषा के सवाल पर विक्रम सेठ कहते हैं, हिंदी तो हम खड़ी बोली में बोलते हैं, लेकिन ब्रज भाषा या अवधी, ये भी तो महान साहित्यिक भाषाएं हैं। हमारा ज़्यादातर साहित्य इन भाषाओं में लिखा गया है। हां, अब आधुनिक युग में हम अक्सर खड़ी बोली में लिखते हैं, लेकिन जो लोग हनुमान चालीसा को याद करते हैं या जपते हैं, वो अवधी में ही ऐसा करते हैं।


हनुमान जी इतने घमंडी नहीं थे, जैसे कि आजकल के सियासतदान हैं-

जब उनसे पूछा गया कि क्या इसमें कोई राजनीतिक संदेश भी है? इस पर विक्रम सेठ कहते हैं, कुछ ख़ास नहीं लेकिन ये है कि हनुमान जी इतने घमंडी नहीं थे, जैसे कि हमारे आजकल के सियासतदान हैं। आजकल सब अपनी पेट सेवा में हैं लेकिन हनुमान लड़ते तो थे पर अपने लिए नहीं बल्कि दूसरे के लिए।


कोई राजनीतिक संदेश नहीं है-

हालांकि विक्रम सेठ ख़ुद को दुरुस्त करते हुए कहते हैं, सच कहा जाए तो इसमें कोई राजनीतिक संदेश है ही नहीं। हालांकि मैं चाहता था कि चुनाव से पहले हनुमान जयंती के मौक़े पर प्रकाशित हो लेकिन फिर सोचा कि यह चुनाव के झमेले में पड़ जाएगा, तो इससे बचना चाहिए। उन्होंने कहा, फिर मैंने सोचा कि जून में अपने जन्मदिन के मौक़े पर इसे प्रकाशित करूंगा। यानी मैं राजनीति से बचना चाहता था।

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