कृषि कानूनों की वापसी व MSP पर फंसा पेंच, दोनों प्रमुख मांगों पर अड़े किसान संगठन

छठे दौर की बातचीत में सरकार पराली जलाने को लेकर किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई रोकने और विद्युत संशोधन अधिनियम की वापसी पर राजी हो गई है मगर तीनों कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग पर पेच फंसा हुआ है।

Update:2021-01-02 14:56 IST
कृषि कानूनों की वापसी व MSP पर फंसा पेंच, दोनों प्रमुख मांगों पर अड़े किसान संगठन

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की बातचीत में कृषि बिलों को लेकर आधा विवाद सुलझ जाने का दावा भले ही किया जा रहा हो मगर अभी आंदोलन खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। छठे दौर की बातचीत में सरकार पराली जलाने को लेकर किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई रोकने और विद्युत संशोधन अधिनियम की वापसी पर राजी हो गई है मगर तीनों कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग पर पेच फंसा हुआ है।

इन दोनों मुद्दों पर किसान संगठनों को मनाना सरकार के लिए आसान काम नहीं होगा। सरकार की ओर से दिया गया समिति बनाने का प्रस्ताव किसान संगठनों को मंजूर नहीं है। इसके साथ ही किसान संगठन अपनी दोनों प्रमुख मांगों पर अड़े हुए हैं।

बदली हुई दिखी दोनों पक्षों की बॉडी लैंग्वेज

सरकार और 41 किसान संगठनों के बीच छठे दौर की बातचीत में तीनों कानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर बात नहीं बन सकी मगर दोनों पक्षों ने इस पर चर्चा करने के लिए 4 जनवरी को अगले दौर की बातचीत पर रजामंदी जताई है।

वैसे सरकार और किसान नेताओं की छठे दौर की बातचीत के दौरान दोनों पक्षों की बॉडी लैंग्वेज बदली हुई थी। वार्ता में शामिल किसानों ने इस बार भी अपने लंगर का ही खाना खाया। बैठक शुरू होने के दो घंटे बाद ही सिंधु बॉर्डर से लंगर का खाना विज्ञान भवन पहुंच गया। इस बार अंतर यह देखा कि वार्ता में हिस्सा ले रहे तीनों केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल तथा सोमप्रकाश ने भी किसानों के साथ ही लंगर का खाना खाया।

दूसरी ओर अभी तक सरकार का कुछ भी खाने-पीने से इनकार करने वाले किसान नेताओं ने भी शाम को सरकार की चाय स्वीकार की। इससे समझा जा सकता है कि दोनों पक्षों के रुख में लचीलापन आया है मगर इसका यह मतलब नहीं है कि किसान संगठन अपने दोनों प्रमुख मुद्दे छोड़ने को तैयार हैं।

अगली बातचीत में सरकार का रुख स्पष्ट

दोनों पक्षों के बीच 4 जनवरी को होने वाली बातचीत से पहले तीनों कृषि बिलों की वापसी और एमएसपी के मुद्दे पर सरकार का रुख पहले से ही स्पष्ट है। जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार कानून वापसी की मांग नहीं स्वीकार करेगी। इसके साथ ही एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए सरकार की ओर से किसान संगठनों से और समय की मांग की जा सकती है।

सूत्रों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर किसानों को समिति बनाने संबंधी प्रस्ताव पर तैयार करने की कोशिश करेगी। हालांकि पिछली बैठक में किसान संगठन समिति बनाने के सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा चुके हैं।

कृषि मंत्री ने किया बड़ा दावा

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया है कि 50 फीसदी मसला हल हो चुका है। उन्होंने कहा कि आधी जीत हो चुकी है ।उम्मीद है कि 4 जनवरी को होने वाली बातचीत में आधी बात बन जाएगी।

उनका कहना है कि किसानों के एजेंडे की चार में से दो मांगों पर सहमति बन गई है। हालांकि अभी भी किसान नेता तीनों कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं। तोमर ने कहा कि हमने किसान नेताओं को कानून के फायदे गिनाने के साथ ही उनकी समस्याओं के बारे में पूछताछ की है ताकि उन्हें सुलझाया जा सके।

बात नहीं बनी तो कड़े कदम उठाएंगे किसान

दूसरी ओर पंजाब किसान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रुलदु सिंह मनसा ने कहा कि एमएसपी खरीद पर कानूनी गारंटी देने के लिए सरकार अभी भी तैयार नहीं है। सरकार की ओर से समिति बनाने का प्रस्ताव जरूर दिया गया है मगर सरकार का यह प्रस्ताव हमारे एजेंडे से मेल नहीं खाता। संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य दर्शन पाल ने कहा कि सरकार से बातचीत का माहौल तो बन गया है मगर आंदोलन अभी जारी रहेगा। अगर सरकार का रुख किसानों को लेकर अच्छा होगा तो किसान भी कड़े कदम उठाने से परहेज करेंगे।

सरकार के जवाब का इंतजार

किसान नेता हनान मुल्ला ने कहा कि छठे दौर की बातचीत के दौरान सरकार का रवैया लचीला था और उन्होंने बुधवार को हुई बातचीत के आधार पर नया प्रस्ताव भेजने को कहा है। उन्होंने कहा कि वैसे हमारा कोई नया प्रस्ताव है ही नहीं। हमारी तो बस यही मांग है कि किसानों को एमएसपी पर कानूनी गारंटी दी जाए और किसान विरोधी तीनों कानून वापस लिए जाएं। अब इस मुद्दे पर हमें सरकार के जवाब का इंतजार है।

सिर्फ पूंछ निकली है, हाथी निकलना बाकी

सरकार से बातचीत के बाद किसानों की बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई।इस बैठक के बाद योगेंद्र यादव ने कहा कि किसानों का आंदोलन अब निर्णायक दौर में पहुंच गया है। उन्होंने 30 तारीख को हुई बातचीत के बारे में कहा कि मैं तो इतना ही कहूंगा कि अभी तो सिर्फ पूंछ निकली है, हाथी निकलना अभी बाकी है।

उन्होंने कहा कि एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के मुद्दे पर सरकार टस से मस नहीं हुई है। ऐसे में किसान आंदोलन समाप्त होने का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर चार तारीख को होने वाली बातचीत में परिणाम संतोषजनक नहीं निकले तो 6 तारीख से 20 तारीख तक पूरे देश में देश जागृति अभियान चलाया जाएगा।

 

किसान पीछे हटने को तैयार नहीं

जानकारों का कहना है कि किसान आंदोलन को लेकर सरकार की ओर से भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहा हों मगर सच्चाई यह है कि किसान भी मोर्चे पर डटे हुए हैं और उन्हें मनाना इतना आसान नहीं है।

उनके रुख से साफ है कि वे कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानूनी गारंटी से कम पर तैयार होते नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने अगले दौर की बातचीत में अपनी दोनों प्रमुख मांगों पर सहमति न बनने पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी भी दी है।

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