क्या फंस गए आन्दोलन कर रहे किसान संगठन?
आज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। कानून सही हैं या गलत, उनकी मेरिट-डीमेरिट पर कुछ नहीं कहा गया है। कोर्ट ने कहा है कि किसानों की आपत्तियों को सुना जाये और कोई रास्ता निकाला जाए।
नीलमणि लाल
लखनऊ। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का आन्दोलन अब सरकार से हट कर सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा नियुक्त समिति के पाले में चला गया है। अभी इस मसले पर न किसी की जीत हुई है और न किसी की हार। अगर ये कहा जाए कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से केंद्र सरकार की फजीहत हो गयी है तो ये सरासर गलत आंकलन होगा। अदालत का दरवाजा किसान नए कृषि कानूनों को अवैध करार देने और उनको रद करने की मांग को लेकर खटखटाया गया था। किसान संगठनों के नेताओं से केंद्र सरकार की कई राउंड की बातचीत हुई और सब की सब फेल हो गयीं क्योंकि किसान संगठनों के नेता एक ही मांग कर रहे थे कि कृषि कानून वापस लिए जाएँ।
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नए कृषि कानूनों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं
अब आज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। कानून सही हैं या गलत, उनकी मेरिट-डीमेरिट पर कुछ नहीं कहा गया है। कोर्ट ने कहा है कि किसानों की आपत्तियों को सुना जाये और कोई रास्ता निकाला जाए। यही बात सरकार भी कह रही थी लेकिन किसान नेता सुनने को तैयार नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाए जाने को कहा है जो सभी पक्षों के मुद्दे सुनेगी, कानूनों को देखेगी और समाधान सुझाएगी। यही बात सरकार भी कहती आ रही रही थी। अब मसला ये फंस गया है कि किसान संगठन समिति के सामने जाने से इनकार कर रहे हैं। किसान नेता अब कह रहे हैं कि वे धरना जारी रखेंगे और कानूनों की वापसी के अलावा कुछ भी मंजूर नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसानों की ओर से पेश हुए वकील एमएल शर्मा ने कहा कि किसानों ने कहा है कि वे अदालत द्वारा गठित किसी भी समिति के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति में नहीं जाएंगे। हम समस्या को हल करने के लिए देख रहे हैं।
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कृषि कानून की खिलाफत
अगर आप (किसान) अनिश्चितकालीन आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि जो लोग इस मुद्दे को हल करने की उम्मीद कर रहे हैं, इस समिति के समक्ष जाएंगे। यह न तो कोई आदेश पारित करेगा और न ही आपको दंडित करेगा, यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। यानी समिति की रिपोर्ट के बाद कोर्ट उसपर कोई फैसला लेगा।
अब समिति की बात करें तो इसमें कृषि कानून की खिलाफत करने वाले संगठन किसान यूनियन के नेता हरसिमरन सिंह मान हैं तो कृषि कानूनों के प्रबल समर्थक शेतकरी संगठन के नेता अनिल घंवत भी हैं।
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रिपोर्ट देने में 40 दिन का समय
इनके अलावा प्रबुद्ध कृषि अर्थशास्त्री हैं तो एमएसपी तय करने वाले कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष भी हैं। कुल मिला कर सभी पक्षों का समामेलन है। जो भी बात तय होगी वह बैलेंस्ड, तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक होगी, ये उम्मीद की जा सकती है।
आज तक के घटनाक्रम से ये तो तय है कि नए कृषि कानून वापस होने नहीं जा रहे। हाँ, एमएसपी, मंडी आदि की व्यवस्था पर कोई प्रोसीजर तय किया जा सकता है। बहरहाल, समिति को रिपोर्ट देने में 40 दिन का समय है। समिति के पास किसान संगठनों में कौन जाएगा और कौन बहिष्कार करेगा ये देखने वाली चीज होगी।
समिति के समक्ष उपस्थिति के सवाल पर ही आन्दोलनकारियों और संगठनों में टूट हो सकती है। 40 दिन के बाद समिति की रिपोर्ट आयेगी और उसके बाद कोर्ट उस पर फैसला देगी। इतने दिनों में क्या होता है ये देखने वाली बात होगी।
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