Farmers Protest Live: शंभू बॉर्डर पर हालात बेकाबू, किसानों ने किया पथराव, पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले
Farmers Protest: केंद्र की ओर से दिल्ली और हरियाणा पुलिस को सख्त निर्देश दिया गया है कि किसी भी सूरत में किसान राजधानी में ट्रैक्टरों के साथ प्रवेश न कर सकें।
Farmers Protest: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एकबार फिर किसान आंदोलन की जद में है। केंद्र सरकार के साथ अपनी विभिन्न मांगों को लेकर हुई बैठक बेनतीजा रहने के बाद हजारों किसानों का आज ‘दिल्ली चलो’ मार्च शुरू हो गया है। पंजाब से किसानों का एक बड़ा जत्था ट्रैक्टर्स के साथ शंभू बॉर्डर पहुंचा। हरियाणा पुलिस के सीनियर अधिकरियों ने कुछ देर तक उन्हें आग न बढ़ने के लिए समझाया लेकिन किसान अपने फैसले पर अड़े रहे। इसके बाद पुलिस ने किसानों को डिटेन कर लिया। किसानों को गाड़ी से उन जगहों पर ले जाया जा रहा है, जिसे अस्थायी जेल के रूप में तब्दील किया गया है।
इससे नाराज किसानों ने हंगामा शुरू कर दिया। वे जबरदस्ती बैरिकेड्स को पार करने की कोशिश करने लगे। जिसके बाद हरियाणा पुलिस ने उन्हें नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। इसके बाद वहां अफरातफरी मच गई। किसानों की ओर से पुलिस पर जमकर पथराव किया जा रहा है। शंभू बॉर्डर पर जंग जैसे हालात बन गए हैं। पुलिस ड्रोन की मदद से प्रदर्शनकारी किसानों पर टियर गैस के गोले बरसा रही है। बॉर्डर पर धीरे-धीरे पंजाब की ओर से आ रहे किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है।
ड्रोन की मदद से बैरिकेड्स की दूसरी ओर खड़े किसानों की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। इस दौरान कुछ ड्रोन पर पत्थर मारकर गिराने की कोशिश भी की गई। जानकारी के मुताबिक, किसानों का एक और बड़ा जत्था शंभू बॉर्डर की ओर बढ़ रहा है। हरियाणा सीमा पर भारी संख्या में रेपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) तैनात हैं, जो किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार बैठे हैं।
टिकैत ने पीएम मोदी पर बोला हमला
किसानों के आज के प्रदर्शन से दूरी बनाए रखने वाले भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर करारा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जब देश का विपक्ष कमजोर होता है तो देश में तानाशाहों का जन्म होता है। सब सियासी पार्टियां एक हैं, सता पक्ष वाले और विपक्ष वाले। ये अपनी सरकार बचाएं, उसके लिए आंदोलन करें, जेल जाएं नहीं तो सब खत्म हो जाएगा।
जब देश का राजा (पीएम मोदी) ही कह रहा है कि हम 400 सीटें जीतेंगे तो फिर चुनाव की जरूरत क्या रह गई ? आप क्यों देश को पागल बना रहे हैं ? आप इसी चुनाव का नवीकरण कर लीजिए। राकेश टिकैत ने केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर किसानों के साथ कोई अन्याय हुआ, सरकार ने उनके लिए कोई दिक्कत पैदा की तो ना वो किसान हमसे ज्यादा दूर हैं और ना दिल्ली हमसे ज्यादा दूर है।
किसानों की आवाज दबाना चाहती है सरकार - अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र पर हमला बोलते हुए कहा कि जो सरकार कृषि वैज्ञानिक एमएम स्वामीनाथन और किसानों के बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित कर रही हो आखिरकार वह किसानों को एमएसपी क्यों नहीं देना चाहती। सरकार बड़े लोगों से जो मुनाफा कमा रहे हैं, उनसे मिली हुई है। इसीलिए किसानों की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।
किसानों को रोकने के लिए और आंदोलन खत्म करने के लिए कीलों के साथ-साथ दीवारें तक खड़ी की गई। प्रशासन के माध्यम से सरकार जो कर सकती थी कर रही है। आने वाले चुनाव में देश की जनता भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटा देगी।
किसानों के प्रदर्शन पर कांग्रेस ने केंद्र को घेरा
किसानों के प्रदर्शन पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से भी प्रतिक्रिया आ रही हैं। सीनियर कांग्रेस लीडर और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने किसानों का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी सरकार की ओर से पूरा प्रयास किया जा रहा है कि किसान दिल्ली ना आएं। ये मोदी सरकार की मंशा को दर्शाता है कि किस गैरलोकतांत्रिक तरीके से किसानों को रोका जा रहा है। जब प्रधानमंत्री ने तीन कृषि कानूनों को वापस लिया था तो उन्होंने किसान संगठनों से कुछ वादे किए थे जो पूरे नहीं हुए। रमेश ने कहा कि स्वामीनाथन को भारत रत्न तो दे दिया गया लेकिन उनकी सिफारिशों को लागू नहीं किया गया। मोदी सरकार ने उद्योगपतियों के 14 लाख करोड़ ऋण माफ किए लेकिन किसानों का एक पैसा माफ नहीं किया।
दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी प्रवक्त रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हरियाणा और दिल्ली सीमा पर की गई किलेबंदी को लेकर केंद्र पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा, जब भी इतिहास लिखा जाएगा, तब मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल को किसानों के खिलाफ क्रूरता, बर्बरता, दमन और दंशकाल के रूप में जाना जाएगा। किसानों की आवाज को दबाने के लिए BJP सरकार ने देश की राजधानी दिल्ली को ‘पुलिस छावनी’ में तब्दील कर दिया है, जैसे किसी दुश्मन ने दिल्ली की सत्ता पर हमला बोल दिया हो।
वहीं, किसानों के साथ दो दौर की वार्ता में शामिल रहे केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि मैंने चंडीगढ़ दो बार जाकर किसान संगठनों के साथ बातचीत की। हमने उन्हें समझाया कि कुछ चीजों में हमें परामर्श लेने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका रास्ता क्या होगा। किसानों को समझने की जरूरत है कि भारत सरकार किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है और उनके साथ-साथ जनसामान्य को कोई कठिनाई ना हो।
केजरीवाल सरकार ने सहयोग से किया इनकार
केजरीवाल सरकार ने केंद्र के उस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है, जिसमें प्रदर्शनकारी किसानों के लिए अस्थाई जेल बनाने की बात कही गई है। दरअसल, केंद्र की ओर से बवाना स्टेडियम को अस्थायी जेल बनाने की प्रस्ताव दिल्ली सरकार के समक्ष रखा गया था, जिसे उनकी ओर से खारिज कर दिया गया है। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि किसानों की मांग जायज है। संविधान में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने का हर नागरिक को अधिकार है।
किसान इस देश के अन्नदाता हैं और अन्नदाताओं को जेल में डालना गलत है। बवाना स्टेडियम को उनके लिए जेल बनाने का परमिशन नहीं दे सकते। इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी हरियाणा और दिल्ली बॉर्डर पर की जा रहे किलेबंदी पर नाराजगी जाहिर करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी थी। 8 फरवरी को चंडीगढ़ में पहले दौर की मीटिंग में किसानों के साथ वो भी शामिल हुए थे।
बता दें कि इस प्रदर्शन में पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान के किसान इसमें शामिल हैं। दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 20 हजार किसान 2500 ट्रैक्टर्स में दिल्ली की ओर बढ़ सकते हैं। केंद्र की ओर से दिल्ली और हरियाणा पुलिस को सख्त निर्देश दिया गया है कि किसी भी सूरत में किसान राजधानी में ट्रैक्टरों के साथ प्रवेश न कर सकें। गृह मंत्रालय और पुलिस के सीनियर अधिकारी हर मुवमेंट पर नजर बनाए हुए हैं। हरियाणा – पंजाब बॉर्डर, हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर और दिल्ली-यूपी बॉर्डर को पहले ही सील किया जा चुका है। यहां से गुजरने वाले वाहनों की सख्ती से चेकिंग हो रही है। यहां पर बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।
नेतृत्व और मांगें दोनों अलग
किसानों का ये आंदोलन पिछली बार के आंदोलन से अलग है। 2020-21 का आंदोलन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ था। जिसमें किसान केंद्र से अपनी मांग मनवाने में सफल रहे थे और नवंबर 2021 में सरकार को तीनों कानून वापस लेना पड़ा था। इस बार के आंदोलन में नेतृत्व और मांगे दोनों अलग हैं। इस बार के आंदोलन का नेतृत्व किसान मजदूर मोर्चा (KMM) और संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक (SKM) जैसे संगठन कर रहे हैं। केएमएम 250 किसानों संघों का गुट है। वहीं, एसकेएम में 150 किसान यूनियन शामिल हैं। यह विरोध प्रदर्शन पंजाब से कॉर्डिनेट किया जा रहा है।
दोनों किसान मोर्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो साल पहले किए गए वादों को याद दिलाने के लिए दिसंबर 2023 में ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया था। किसानों की ओर से केंद्र सरकार के सामने 12 मांगी रखी गई हैं। इनमें प्रमुख है न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी वाला कानून, किसानों और मजदूरों की संपूर्ण कर्जमाफी, किसान और खेतिहर मजदूरों को पेंशन, दिल्ली किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी, लखीमपुर खीरी कांड के दोषियों को सजा और प्रभावित किसानों को न्याय।
केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक बेनतीजा
किसानों ने केंद्र के साथ दो दौर की वार्ता विफल रहने के बाद अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। सोमवार की शाम चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा से किसानों के प्रतिनिधिमंडल से उनकी मागों पर पांच घंटे तक चर्चा चली लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। बैठक के बाद किसानों ने आरोप लगाया कि सरकार के मन में खोट है, वो हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है। वे हमें कुछ नहीं देना चाहते, हम किसी भी सूरत में एमएसपी पर समझौता नहीं करेंगे।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों को मुआवजा देने, किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने और बिजली अधिनियम 2020 रद्द करने जैसे कुछ मांगों पर सहमत हो गई थी। लेकिन एमएसपी को लेकर दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बनी। किसानों ने 16 फरवरी को भारत बंद भी बुलाया है।