देहरादून। पारदर्शी व्यवस्था वाली सरकार बनाने की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कोशिश पर अचानक घोटालों की मार पड़ जा रही है। एनएच-74 मुआवजा घोटाला अभी सुलटा नहीं था कि खाद्यान्न घोटाले का जिन्न बोतल से बाहर आ गया। 600 करोड़ रुपये के घोटाले में बड़े अफसरान ही नहीं राजनेताओं तक की मिलीभगत की बू आ रही है। बड़े पैमाने पर विभागीय कर्मचारियों के तबादले भी किए जा रहे हैं। चूंकि एनएच मुआवजा घोटाले की तर्ज पर इस घोटाले के तार भी पिछली कांग्रेस सरकार से जुड़ रहे हैं तो प्रदेश के सियासी पटल पर भी उठापठक तेज हो गई है और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गई है।
क्या है पूरा मामला
एनएच-74 मुआवजा घोटाले के बाद ऊधमसिंह नगर में ही 600 करोड़ का खाद्यान्न घोटाला सामने आया है। ऊधमसिंह नगर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित एसआईटी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में यहां बीते दो वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सस्ते चावल की खरीद, आवंटन, भंडारण, वितरण में गड़बड़ी पाई गई है। इस घोटाले में विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ही राजनीतिक मिलीभगत के संकेत भी मिल रहे हैं।
चावल के हजारों बोरों का कोई ब्योरा नहीं
एसआईटी ने अपनी शुरुआती जांच में पाया कि रुद्रपुर राज्य भंडारण निगम के गोदाम संख्या-दो में राज्य पोषित योजना के चावल के 8382 बोरे और कस्टमाइज्ड मिल राइस (सीएमआर) योजना के 4318 बोरे समेत कुल 12,700 बोरों में से सत्यापन में महज 10,668 बोरे ही मिले। यहां चावल के 2032 बोरों के बारे में कोई ब्योरा दर्ज नहीं था। फिर राज्य पोषित योजना से संबंधित चावल में 3,680 बोरे ऐसे पाए गए, जिनमें अपठनीय दोहरी स्टेनसिल की छाप मिली। खाद्यान्न की गुणवत्ता भी घटिया पाई गई। इसी तरह की गड़बडिय़ां किच्छा और काशीपुर के गोदामों में भी पाई गईं।
वहां भी बोरों के सत्यापन में गड़बडिय़ां मिलीं।
चावल वितरण में भी अनियमितता बरती गई। चावल वितरण के लिए आवंटित चालानों को बाजपुर से बड़े पैमाने पर बिना किसी तारीख और ट्रक नंबर दर्ज किए ही जारी किया गया। जांच में कई वाहनों को हकीकत में गंतव्य तक जाना भी नहीं पाया गया। जांच निष्कर्ष में यह साफ लिखा गया कि चावल का मूवमेंट किए जाने के लिए मूवमेंट चालान के प्रावधान की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। वरिष्ठ विपणन अधिकारियों ने राजनीतिक दबाव में प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कही। उच्चाधिकारियों ने मामले की जानकारी होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया।
धान खरीद में अनियमितता
धान की नीलामी या खुली नीलामी में बोली लगाए जाने की व्यवस्था है, लेकिन इस नियम का पालन महज पांच से दस फीसदी मामलों में ही किया गया। 90 फीसदी तक धान की बड़ी मात्रा चावल मिल मालिकों ने सीधे किसानों से खरीद ली। इस खरीद को कच्चा आढ़ती के माध्यम से हुई खरीद में दर्शाया गया जबकि धान मंडी में नीलामी के लिए आया ही नहीं था।
खाद्यान्न घोटाले में कार्रवाई
खाद्यान्न घोटाला सामने आने के बाद प्रमुख सचिव खाद्य और खाद्य आयुक्त आनंद बद्र्धन ने बड़ी कार्रवाई की। ऊधमसिंह नगर के सभी मार्केटिंग स्टाफ को स्थानांतरित कर गढ़वाल मंडल के विभिन्न जिलों में तैनात किया गया है। महकमे के 34 मार्केटिंग इंस्पेक्टरों समेत 50 का तबादला किया गया। कुमाऊं मंडल से 17 विपणन निरीक्षकों को गढ़वाल मंडल और गढ़वाल मंडल से इतने ही विपणन निरीक्षकों को कुमाऊं मंडल भेजा गया। खरीफ खरीद सत्र को देखते हुए तत्काल प्रभाव से तबादले किए गए हैं।
कुमाऊं मंडल के संभागीय खाद्य नियंत्रक वीएस धनिक के सेवा विस्तार को खत्म कर दिया गया है। स्थानांतरित काॢमकों को नई तैनाती स्थल पर तुरंत कार्यभार ग्रहण करने और हफ्ते के भीतर अनुपालन आख्या आयुक्त कार्यालय को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। कुमाऊं मंडल में उपसंभागीय विपणन अधिकारी के पद पर गढ़वाल मंडल से वेदप्रकाश धूलिया की तैनाती के आदेश किए जा चुके हैं। खाद्यान्न घोटाले के इस मामले का विशेष ऑडिट कराने के आदेश भी दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खाद्यान्न घोटाले में पूर्व की कांग्रेस सरकार की मिलीभगत का अंदेशा जताया। उन्होंने कहा कि यह घोटाला पहली नजर में काफी बड़ा दिखता है और इसमें और गहराई से जांच की जरुरत है। रावत ने कहा कि गरीबों के निवाले पर अफसरों ने डाका डाला है। ऐसे डकैतों की जहां जगह है वहां भेजेंगे। धानिक पर कार्रवाई से सरकार ने संदेश दिया है कि भ्रष्टाचार किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस घोटाले में कितना भी बड़ा अधिकारी या नेता शामिल होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। जरुरत पड़ी तो संबंधित आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी। मुख्यमंत्री के बयान के बाद पूर्व की हरीश रावत सरकार में तत्कालीन खाद्य और आपूॢत मंत्री प्रीतम सिंह ने सरकार को जांच करवाने की चुनौती दे दी।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने अंदेशा जताया कि खाद्यान्न घोटाला 600 करोड़ रुपये से भी अधिक का हो सकता है। प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में भट्ट ने कहा कि यह मामला पिछली सरकार के मुखिया और खाद्य मंत्री की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। कुछ अधिकारी और पिछली सरकार के कुछ लोग भी इस मामले में संदेह के घेरे में हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल के दौरान भाजपा ने खाद्यान्न में गड़बड़ी की आशंका जताते हुए कांग्रेस नेताओं के गोदामों में सरकारी खाद्यान्न की शिकायत की थी। जिस तरह से यह घपला सामने आया है, उससे इन आशंकाओं को बल मिला है। भट्ट ने कहा कि जिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की गई, उसे कांग्रेस सरकार ने एक नहीं बल्कि दो बार सेवा विस्तार दिया। इससे साफ जाहिर है कि घपले में कांग्रेस सरकार संलिप्त थी।