India Super Power: अब भारत भी एक सुपर पावर

India Super Power Country: ग्लोबल फलक पर भारत से उम्मीद जगी है कि वह वैश्विक व्यवस्था को बदल देगा। अब किसी एक या दो देशों की चौधराहट नहीं चलेगी। ऐसा महज़ इसलिए नहीं है क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2023-09-12 12:01 GMT

India Super Power Country: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक तीर से कई निशाना साधने वाले निशानेबाज़ हैं। यह उन्होंने 2014 में केंद्रीय राजनीति में आने के साथ ही दिखाना शुरू कर दिया था। हाल फ़िलहाल इसकी ताज़ातरीन नज़ीर है जी-20 का दिल्ली में आयोजित शिखर सम्मेलन। जो लोग यह कह और सोच रहे थे कि क्या भारत जैसा देश इस बड़े व भारी भरकम सम्मेलन को आयोजित कर पायेगा ? यानी जो लोग भारत की क्षमता पर सवाल उठा रहे थे, वे न केवल निरुत्तरित हुए बल्कि मोदी ने यह जता दिया कि एक ऐसे समय जब दुनिया में एक नये तरह का ‘वर्ल्ड आर्डर’ उभर रहा है। एक नया ‘वर्ड मेट्रिक्स’ बन रहा है। समूची दुनिया ‘रिकंस्ट्रक्शन’ के दौर में है। जब भूराजनैतिक तनाव बहुत ज़्यादा है। बड़े देश एक दूसरे के साथ काम करने को तैयार नहीं हैं। रुस चीन एक साथ हैं। डब्लूटीओ और विश्व स्वास्थ्य संगठन काम नहीं कर रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में डेडलॉक है। तब भारत ही वैश्विक विभाजन को पाट सकता है। क्योंकि भारत ने अपने आपको एक क्षेत्रीय ‘सुपर पावर’ जैसी महत्वपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है। अब दुनिया का कोई भी देश उसे नज़रंदाज़ नहीं कर सकता।

ग्लोबल फलक पर भारत से उम्मीद जगी है कि वह वैश्विक व्यवस्था को बदल देगा। अब किसी एक या दो देशों की चौधराहट नहीं चलेगी। ऐसा महज़ इसलिए नहीं है क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। इसकी मजबूत वजहें हैं - एक ओर भारत 140 करोड़ जनसंख्या वाला विशाल देश है। तो दूसरी ओर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। भारत सबसे बड़ा और सबसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र भी है। भारत प्रति वर्ष 9 फीसदी की दर से वृद्धि करते हुए, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत अकेला ही आगे नहीं बढ़ रहा बल्कि अनेक देशों को साथ लेते हुए आगे बढ़ रहा है। ’वसुधैव कुटुंबकम - एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की बात भारत ही कर सकता है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: Photo- Social Media

पीएम मोदी का मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’

दुनिया के सामने चुनौतियों और अवसरों का एक नया युग आने वाला है, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ का मंत्र एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर सकता है। मोदी का यह कथन भी भरोसा मज़बूत करता है-“वैश्विक स्तर पर भरोसा बहाल करने का समय आ गया है। एवं जहां हम एकत्र हुए हैं, वहीं से कुछ दूर ढाई हज़ार साल पुराना स्तंभ है। जिस पर प्राकृत भाषा में लिखा है- मानवता का कल्याण और सुख, सदैव सुनिश्चित किया जायेगा।”

इन सब संभावनाओं व विश्वास के पीछे बड़े तर्क व प्रमाण ही नहीं, काम भी हैं। क्योंकि जी 20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही नरेंद्र मोदी सहमति के आम विंदु पर पहुँच गये थे। आम तौर पर किसी सम्मेलन के अंत में घोषणा पत्र जारी होता है। ऐसा पहली बार हुआ है कि सहमति का ऐलान पहले दिन ही कर दिया गया। जबकि चीन माँग करता रहा कि जी-20 आर्थिक सम्मेलन है, इसे विश्व राजनीति से दूर रहना चाहिए। घोषणा पत्र में रुस यूक्रेन युद्ध पर सात पैराग्राफ़ थे। जबकि बाली सम्मेलन में केवल दो। रूस के हमले या युद्ध के उसके बर्बर तरीक़े की निंदा की गई। यूक्रेनी लोगों की पीड़ा पर दुख जताया गया।

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: Photo- Social Media

भारत की सफल अध्यक्षता की हुई सराहना

भारत की ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में छवि मज़बूत हुई है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स शिखर ने तो दिल्ली सम्मेलन को फैसलों का सम्मेलन करार दिया। भारत की तारीफ करते हुए कहा कि ‘उत्तर और दक्षिण के बीच एक नए तरह का संवाद, नई दिल्ली के सम्मेलन में ही संभव हुआ।" अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सम्मेलन की कामयाबी के बारे में कहा कि इसने यह साबित किया है कि मुश्किल आर्थिक समय में भी जी-20 फौरी समस्याओं का समाधान ढूंढने में सक्षम है। जी-20 नेताओं ने साफ़ कहा है कि नई दिल्ली बैठक ने एक बार फिर इस गुट को वैश्विक शासन के केंद्र में ला दिया है। दुनिया भर के राजनयिक भारत की सफल अध्यक्षता की सराहना कर रहे हैं, जिसने न केवल विभाजित गुट को आम सहमति तक पहुंचने में मदद की, बल्कि भविष्य में प्रगाढ़ सहयोग के लिए जमीन भी तैयार की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय नेतृत्व में जी-20 हमेशा के लिए बदल गया। अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने के साथ यह संगठन जी-21 हो गया। यह भी मोदी के लंबे समय से किये जा रहे प्रयास से ही सफल हो पाया ।

भारत अफ्रीका रिश्ता

अफ्रीकन यूनियन को स्थाई सदस्य बनाया जाना न सिर्फ़ अफ़्रीका के देशों के लिए बल्कि भारत के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है। अफ़्रीकन यूनियन 55 देशों का संगठन हैं। इसके तहत बीस फ़ीसदी भू भाग, 18 फ़ीसदी आबादी आती है। अर्थव्यवस्था सात ट्रिलियन डॉलर की है। अफ़्रीकन यूनियन के पास वोट का अधिकार होगा तो वे भारत को मज़बूती प्रदान करेंगे। हमारे और अफ्रीकी देशों के हित साझा है। इससे भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनने के मार्ग खुलेंगे। चीन के सुरक्षा परिषद के सदस्य होने में अफ्रीकी देशों ने मदद की थी। भारत के साथ अफ्रीकी देशों के रिश्ते पुराने हैं। हित साझा हैं। पर चीन के साथ नहीं है। चीनी अफ़्रीकी देशों में नहीं रहते जबकि भारतीय रहते हैं। गुटनिरपेक्षता के समय अफ्रीकी देशों ने हमारा साथ दिया था। भारत ने रंगभेद विरोधी आंदोलन का समर्थन किया था।

अफ्रीकी देश सोना, क्रोमियम, प्लेटिनम, कोबाल्ट, हीरे और यूरेनियम से भरे हैं। अफ़्रीका के पास विश्व का बीस फ़ीसदी तेल है। भारत की मिडिल ईस्ट पर निर्भरता ख़त्म होगी। खाद्य सुरक्षा ऊर्जा ज़रूरतों पर दोनों मिलकर काम कर सकेंगे। भारत अफ्रीकी देशों में उन्नत खेती के लिए मदद कर रहा है। अफ्रीकी युवाओं को भारत बुलाकर ट्रेनिंग दी जा रही है। भारत अफ्रीकी देशों में कैपिसीटी बिल्डिंग पर काम कर रहा है। अफ्रीकी देश चीन के क़र्ज़े में डूबे हैं। वे इससे निजात चाहते हैं। भारत इसमें मददगार हो सकता है। अफ्रीकी देशों में निवेश कर के चीन का दबदबा कम कर सकता है। अफ़्रीका को सालान सौ बिलियन डॉलर इंफ़्रास्ट्रक्चर डवलेपमेंट के लिए ज़रूरी है। यह केवल चीन नहीं दे सकता है। इसलिए मोदी को कोई बड़ी संभावना अपने देश के लिए नज़र आ रही हो तो वाजिब ही कहा जायेगा।

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: Photo- Social Media

भारत सऊदी अरब के बीच व्यापार

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और नरेंद्र मोदी की एक साथ हाथ थामे जारी हुई तस्वीर भी कई मायने बयां करती नज़र आई। भारत की 700 से ज़्यादा कंपनियों ने 200 करोड़ डॉलर से ज़्यादा सऊदी अरब में निवेश कर रखा है। भारत सऊदी अरब के बीच व्यापार पाँच हज़ार करोड़ का है। सऊदी अरब के पास बहुत पैसा है। मोदी की कोशिश है कि वह भारत को निवेश की अच्छी जगहों में मान कर निवेश करे। सऊदी अरब नियोम प्रोजेक्ट बना रहा है। जिस पर पाँच सौ अरब डॉलर खर्च होंगे। भारत की कोशिश इस प्रोजेक्ट के लिए टैलेंट देने की है। भारत की मदद से सऊदी अरब में हाइड्रोजन प्लांट भी बन रहा है। सऊदी अरब की कोशिश अपनी पिक्चर तेल बेचने और मक्का मदीना के इतर भी पेस्ट करने की है। इसके लिए भारत के साथ उसे संभावनाएँ नज़र आ रही हैं।

मोदी ने लंबे समय से चल रहे इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकॉनॉमिक कॉरिडोर के काम को अपने हाथ में लेकर न केवल चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना को काउंटर किया है। चीन की कोशिश इस सिल्क रूट के मार्फ़त खुद को यूरोपीय देशों से जोड़ने की है। जबकि भारत की कोशिश इस परियोजना के मार्फ़त खुद को अमेरिका,कनाडा, यूरोपीय देश, लैटिन अमेरिकी देश, दुबई, इस्राइल,मध्य पूर्व देशों व हाइफ़ा बंदरगाह से रेलवे और शिपिंग नेटवर्क से जोड़ लेने की है। इससे भारत और यूरोप के बीच व्यापार 40 प्रतिशत बढ़ेगा। बड़ी बात यह भी है कि बीते मई महीने में ही भारत ने इस प्रोजेक्ट का प्रस्ताव आगे बढ़ाया था। बहुत कम समय में इस पर सबकी रजामंदी भी हो गयी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुरोध पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सहयोग से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस नई परियोजना के लिए मजबूत समर्थन व्यक्त किया है।

मोदी की कोशिश से ही जिस संगठन से लोग आमतौर पर वाकिफ नहीं थे । वह अब घर घर में चर्चा और गौरव का विषय बन चुका है। जनमानस को इसके साथ जुड़ाव की भावना का सन्देश मिला। नई दिल्ली शिखर सम्मलेन का संयुक्त डिक्लेरेशन भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत रही है। इसे सबसे बड़ी उपलब्धि इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि घोषणा के सभी 83 पैराग्राफ चीन और रूस के साथ 100 फीसदी सर्वसम्मति से पारित किए गए। डिक्लेरेशन पर सर्वसम्मति बनाने के लिए भारत के वार्ताकारों ने पश्चिमी देशों और चीनी-रूसी गुट के बीच दूरियों को पाटने के लिए बहुत मेहनत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जो बिडेन, ऋषि सुनक, ओलाफ स्कोल्ज़ और फुमियो किशिदा जैसे नेताओं के साथ की गई द्विपक्षीय बैठकों ने भी इस सहमति में योगदान दिया।

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: Photo- Social Media

वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मलेन के मौके पर वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के शुभारंभ की घोषणा की। जी20 सदस्यों और गैर-सदस्यों सहित उन्नीस देश और बारह अंतरराष्ट्रीय संगठन इस गठबंधन में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं। भारत, ब्राज़ील और अमेरिका गठबंधन के संस्थापक सदस्य हैं। पेट्रोल-डीज़ल जैसे पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता घटाने के उद्देश्य से बनाये गए इस गठबंधन की शुरुआत जो बाइडेन, लुइज़ इनासियो दा सिल्वा, अल्बर्टो एंजेल फर्नांडीज, जियोर्जिया मेलोनी, शेख हसीना और अन्य की उपस्थिति में हुई। भारत, ब्राज़ील और अमेरिका के अलावा, इस पहल का समर्थन करने वाले अन्य जी-20 सदस्य देशों में अर्जेंटीना, कनाडा, इटली और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इसके अलावा बांग्लादेश, सिंगापुर, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात जैसे गैर सदस्य देशों को भी इस आशाजनक पहल में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है।

जी-20 शिखर सम्मेलन- विश्व मंच पर भारत के बढ़ते प्रभाव और नेतृत्व का बहुत बड़ा प्रमाण

नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन सिर्फ एक राजनयिक आयोजन नहीं था बल्कि यह विश्व मंच पर भारत के बढ़ते प्रभाव और नेतृत्व का एक बहुत बड़ा प्रमाण है। यह सभी भारतवंशियों के लिए बड़ी जिम्मेदारी भी है कि वह भारत को ग्लोबल सुपर पावर बनाने के काम में किसी न किसी तरह से योगदान अवश्य करें ताकि हम भी ग्लोबल डेस्टिनेशन बन जाएँ। जी-20 अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का एक प्रमुख मंच है। जहां जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, कृषि , ऊर्जा और पर्यावरण के वैश्विक, आर्थिक व वित्तीय मुद्दों पर चर्चा होती है। इस मंच में शामिल देशों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 85 फ़ीसदी और वैश्विक व्यापार में 75 फ़ीसदी योगदान है। इसमें विश्व की एक तिहाई आबादी आती है। इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल था। इनमें अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस , जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, कोरिया, रुस , सऊदी अरब, दक्षिण अफ़्रीका, तुर्किये, यूके और अमेरिका हैं। मोदी की कोशिश के चलते ही इस संगठन का न केवल चेहरा बदला बल्कि बड़े देशों की चौधराहट ख़त्म हुई। पूरी दुनिया के लोगों की आँखों में उम्मीद तिरने लगी है। गर्व से आगे बढ़िए, अब हमारा समय आया है।

(लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार ।) 

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