गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड पर नया कानून! जान लें कहीं पड़ न जाए भारी

गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड यानी प्रेमी-प्रेमिका के संबंध को लेकर दिल्ली हाई-कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दिल्ली हाई-कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंधों के बावजूद प्रेमिका से बेवफाई चाहे जितनी खराब बात लगे, लेकिन यह अपराध नहीं है।

Update: 2023-07-31 11:03 GMT
गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड पर नया कानून! जान लें कहीं पड़ न जाए भारी

नई दिल्ली : गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड यानी प्रेमी-प्रेमिका के संबंध को लेकर दिल्ली हाई-कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दिल्ली हाई-कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंधों के बावजूद प्रेमिका से बेवफाई चाहे जितनी खराब बात लगे, लेकिन यह अपराध नहीं है। आगे कोर्ट ने कहा कि यौन सहमति पर ‘न का मतलब न’ से आगे बढ़कर, अब ‘हां का मतलब हां’ तक व्यापक स्वीकार्यता है।

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सहमति से शारीरिक संबंध- अपराध नहीं

कोर्ट ने यह फैसला रेप के मामले में एक व्यक्ति को जेल से बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए दिया है, जिसके खिलाफ उस महिला ने रेप का केस दर्ज कराया था। जिससे उसने शादी का वादा किया था।

कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की अपील को खारिज करते हुए कहा- इस केस में व्यक्ति को बरी करने के निचली कोर्ट के फैसले में कोई कमी नहीं है। कोर्ट ने कहा, “प्रेमी से बेवफाई, कुछ लोगों को चाहे जितनी खराब बात लगे, भारतीय दंड संहिता के तहत यह एक दंडनीय अपराध नहीं है। दो वयस्क परस्पर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं, यह अपराध नहीं है।”

दिल्ली हाई-कोर्ट ने कहा कि महिला ने शादी के वादे का लालच देकर शारीरिक संबंध बनाने के आरोपों का उपयोग न केवल पूर्व में आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को सही ठहराने के लिये बल्कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी अपने आचरण को उचित ठहराने के लिये किया। उसने आंतरिक चिकित्सकीय टेस्ट से भी मना कर दिया है।

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यौन सहमति पर ‘न का मतलब न’

आगे जस्टिस विभु भाखरू ने कहा, “जहां तक यौन संबंध बनाने के लिये सहमति का सवाल है, तो 1990 के दशक में शुरू हुए अभियान ‘न मतलब न’, में एक वैश्विक स्वीकार्य नियम निहित है: मौखिक ‘न’ इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यौन संबंध के लिये सहमति नहीं दी गई है।”

इसी मामले में आगे उन्होंने कहा, “यौन सहमति पर ‘न का मतलब न’ से आगे बढ़कर, अब ‘हां का मतलब हां’ तक व्यापक स्वीकार्यता है। इसी के चलते यौन संबंध बनाने के लिये जबतक एक पॉजीटिव, सचेत और इच्छा से सहमति नहीं है, यह अपराध होगा।”

दिल्ली हाई-कोर्ट ने कहा कि महिला का दावा कि उसकी सहमति स्वैच्छिक नहीं थी, बल्कि यह शादी के वादे के प्रलोभन के बाद हासिल की गई थी, इस मामले में स्थापित नहीं हुआ।

कोर्ट ने कहा कि पहली बार रेप के कथित आरोप के 3 महीने बाद महिला सन् 2016 में आरोपी के साथ स्वेच्छा से होटल में जाती दिखी और इस बात में कोई दम नजर नहीं आता कि उसे शादी के वादे का लालच दिया गया था। महिला के इस केस के दर्ज कराने के बाद दिल्ली हाई-कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।

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