नई दिल्ली : केंद्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजीजू ने बुधवार को कहा कि सरकार नस्लभेद मामले में तब तक खुद से कोई फैसला नहीं ले सकती, जब तक इस संबंध में पीड़ित शिकायत दर्ज नहीं कराता। रिजीजू ने खासी महिला के संदर्भ में राज्यसभा को बताया, "हम तब तक खुद से कोई कार्रवाई नहीं कर सकते, जब तक पीड़ित शिकायत दर्ज नहीं कराता।"
रिजीजू उस 'खासी' समुदाय की महिला का उल्लेख कर रहे थे, जिसे जून में पारंपरिक वेशभूषा पहनने की वजह से दिल्ली के एक पॉश गोल्फ क्लब से जाने को कहा गया था।
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उन्होंने कहा, "इस मामले में मैंने खुद दिल्ली पुलिस से जांच करने को कहा, लेकिन महिला ने शिकायत दर्ज नहीं कराई।"
इस संदर्भ में जब कांग्रेस सांसद भुवनेश्वर कलिता ने रिजीजू से पूछा कि नस्ली हिंसा के खिलाफ कार्रवाई करने में प्राथमिकी (एफआईआर) बाधा क्यों बननी चाहिए? तो रिजीजू ने कहा कि मौजूदा समय में कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जिसके तहत पुलिस इस तरह के अपराधों पर खुद से कोई कदम उठा सके।
उन्होंने कहा, "नस्ली अपराध गंभीर मामले हैं, लेकिन कानून को अपना काम करने देना चाहिए। मैं खुद से कोई नियम नहीं बना सकता। यदि हमारे पास उपयुक्त नियम हैं तो इससे पुलिस को कार्रवाई करने में आसानी होगी।"
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मेघालय के तेलिन लिंगदोह को 25 जून को दिल्ली के गोल्फ क्लब से जाने को कहा गया था, जबकि उन्हें और उनकी नियोक्ता निवेदिता बरठाकुर को एक सदस्य ने वहां उन्हें दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया था।
रिजीजू ने एक पूरक प्रश्न के जवाब में कहा कि इस तरह के नस्ली हमलों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय को भारतीय दंड संहिता में धारा 153 (ए) और धारा 509 (ए) को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
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लेकिन यह मामला समवर्ती सूची में है तो इसके लिए केंद्र को अधिकतर राज्यों के अनुमोदन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी तक सिर्फ सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ही सकारात्मक जवाब दिया है।