गांधीनगर : पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने अक्षरधाम मंदिर में माथा टेका और अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिर में दस्तक दी। इससे साफ हो जाता है कि गुजरात विधानसभा चुनावों में यहां के देवी देवता कितना दखल रखते हैं। ये भी साफ है कि यदि आपको गुजरात में राजनीति करनी है तो आपका धार्मिक होना पहली योग्यता होगी। देश भर में भले आप सेक्युलर छवि के साथ रहें। लेकिन गुजरात में आपको अपना ये चोला उतार फेंकना होगा। वर्ना आपके लिए इस राज्य में राजनैतिक बंजर के सिवा कुछ नजर आने वाला नहीं है।
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अक्षरधाम व द्वारिकाधीश मंदिर के बारे में तो सभी जानते हैं। लेकिन आज हम आपको दो ऐसी देवियों के बारे में बता रहे हैं जो राजनीति में भी ना सिर्फ दखल देती हैं, बल्कि उनके मंदिरों से निकलने वाले वाक्य इनमें आस्था रखने वालों के लिए ब्रह्मवाक्य बन जाते हैं। गुजरात में राजनीति करने वाले इनकी अनदेखी कर अपनी जमीन बचा नहीं सकते।
लगता है कि ये बात कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को उनके करीबियों ने चुनाव के ऐलान से पहले ही समझा दी थी। तभी तो वो इन दोनों देवियों की शरण में चले गए। वहीं राज्य बीजेपी इंतजार कर रही है कि कब नरेंद्र मोदी आकर यहां माथा टेकेंगे।
उमिया माता और खोडलधाम माता मंदिर
उमिया माता और खोडलधाम माता मंदिर पाटीदारों की कुलदेवी के मंदिर हैं। गुजरात में पाटीदार समाज राजनैतिक तौर पर काफी जागरूक माना जाता है। गुजरात की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों के मुताबिक पाटीदार बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है। लेकिन हार्दिक पटेल के उदय ने उससे ये वोटर झटक लिया है। ये बात कांग्रेस अच्छे से जानती है कि यदि पाटीदार बीजेपी से नाराज हो उसके पाले में आ जाए तो उसकी सरकार का सपना सच हो सकता है। इसीलिए कांग्रेस ने हार्दिक को अपने पाले में कर लिया।
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गुजरात में पटेलों के दो समुदाय हैं। एक कड़वा और दूसरे लेउवा। कड़वा दक्षिण गुजरात में हैं। जबकि लेउवा उत्तर मध्य गुजरात में रहते हैं। कड़वा पटेल खोडलधाम माता मंदिर में आस्था रखते हैं। यहां जिन देवी को पूजा जाता है उनका नाम है खोडियार माता। लेउवा पटेल उमिया माता में आस्था रखते हैं। राज्य का पाटीदार समाज इन दोनों मंदिरों से जुड़ा हुआ है।
राहुल ने मारी बाजी !
दिसंबर,2016 में जब राहुल गुजरात पहुंचे। तो उन्होंने सबसे पहले उमिया माता धाम में माथा टेका था। और हाल में ही जब उन्होंने सौराष्ट्र का दौरा किया तो खोडलधाम मंदिर पहुंचे। जो कांग्रेस पाटीदारों के लिए पहले अछूत थी, वो राहुल की इस यात्रा के बाद मान्य बन गई।
जबकि पीएम मोदी ने अभीतक इन मंदिरों में दस्तक नहीं दी है। पाटीदार समाज के अंदर तक़रीबन 40 प्रतिशत कड़वा और 60 प्रतिशत लेउवा पटेलों की भागीदारी है। कांग्रेस के बगलगीर बन चुके हार्दिक कड़वा पटेल हैं। जबकि बीजेपी नेता केशुभाई पटेल लेउवा पटेल हैं।
हार्दिक पर है दोनों देवियों का आशिर्वाद !
हममें से कई इस बात से हैरत में रहते हैं कि एक छोटा सा बच्चा कैसे दिग्गज नेताओं की नाक में दम किए हुए है। कैसे उसके पीछे हजारों की भीड़ चलने लगती है। क्यों उसका एक बयान वायरल हो जाता है। इस का सीधा सा जवाब ये है कि हार्दिक पटेल खोडलधाम और उमिया माता धाम की संस्थाओं के दम पर पटेलों को अपने साथ जोड़ने में सफल साबित हो सके हैं। सूत्रों के मुताबिक इन दोनों मंदिरों की संस्थाओं के पदाधिकारी हार्दिक के खुले समर्थन में हैं। और हार्दिक के किसी भी कार्यक्रम से पहले यहां से उसके समर्थन में बाकायदा ऐलान किया जाता है। इसके बाद उस कार्यक्रम में नजर आती है हजारों की भीड़।
बीजेपी ने भी चला था दावं
बीजेपी ने पाटीदारों की नाराजगी को समझते हुए नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन नितिन एक गैर जनाधार वाले नेता थे। इसके साथ ही उन्हें इन दोनों मंदिरों का भी समर्थन हासिल नहीं था। ऐसे में बीजेपी का ये पैतरा गलत साबित हुआ।
कांग्रेस को लगे पंख
पिछले विधानसभा या लोकसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालने पर साफ़ होता है कि कड़वा और लेउवा पटेल बीजेपी को वोट करते आए हैं। जबकि कांग्रेस को गिने चुने ही वोट मिलते थे। उसमें भी कड़वा से अधिक लेउवा पटेल ही कांग्रेस को वोट करते रहे हैं।
वहीं इस चुनाव में हार्दिक पटेल कांग्रेस के साथ है। तो पार्टी ये मान कर चल रही है कि कड़वा पटेल भी उसे वोट करेंगे। इन दोनों देवियों को लेकर कई धार्मिक संगठन हैं जो पाटीदार समाज से ही आते हैं। हार्दिक का दावा है कि उसे लगभग 1 करोड़ पाटीदारों का समर्थन है। ऐसे में कांग्रेस इतने वोट को अपने पाले में आता देख रही है।
अब कौन किसे वोट करेगा ये तो रिजल्ट के बाद पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि इन देवियों की कृपा जिसपर होगी वो मुकद्दर का सिकंदर तो बनेगा ही।