सीखना है तो मोदी से सीखो राजनीति के साम, दाम, दंड और भेद

Update:2017-11-07 16:09 IST
PM मोदी कुपोषण को लेकर है चिंतित, निपटने के लिए की उच्चस्तरीय बैठक

नई दिल्ली : गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी माहौल गर्म है। नेता ताबड़तोड़ जनसभा कर रहे हैं। एक तरफ पूरा विपक्ष है तो दूसरी तरफ सिर्फ मोदी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भले ही इधर अपनी शैली बदली हो। लेकिन चुनावी युद्ध में वो मोदी के सामने कहीं नजर नहीं आते। क्योंकि मोदी जब मैदान में होते हैं तो साम दाम दंड भेद सभी का इस्तेमाल खुल कर करते हैं।

पीएम मोदी चुनावों को युद्ध मानते हैं और विपक्ष को कट्टर दुश्मन। इसलिए वे इन युद्धों में में चाकू, कट्टा, हथगोला से लेकर मिसाइलें तक सभी प्रकार के ‘हथियार’ झोंक देते हैं। वे जानते हैं कि युद्धकाल में हथियारों के उपयोग पर पाबंदी नहीं है और शांतिकाल में इनका प्रयोग किया नहीं जा सकता। वे यह भी जानते हैं कि पांच साल की शांति ‘एक महीने के युद्ध’ से ही हासिल की जा सकती है।

वे चुनावी युद्ध में वे दुश्मन का किसी भी प्रकार से लिहाज नहीं करते हैं। और न ही कोई रियायत देते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इस दौर में दिल्ली से लेकर दीमापुर तक भाजपा उनके भरोसे ही है। देश में पार्टी के सांसदों से लेकर सरपंचों तक को जिताने में वे ‘पोस्टर बॉय’ यूज होते हैं।

इसीलिए वे पार्टी में वन मैन आर्मी है। वे पार्टी के हाकिमों को लिफ्ट नहीं देते हैं। मोदी पार्टी में सुपर मैन सरीखे हो गए हैं। और इन हालात में वे हार बरदाश्त नहीं कर सकते। क्योंकि उनकी जितनी उम्मीदें खुद से हैं, उससे हजार गुना ज्यादा जनता की उम्मीदें उनसे जुड़ी हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो उनके राजनीतिक दुशमन हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि मोदी का नुकसान ही उन्हें फायदा दिलवा सकता है। इसलिए जब हिमाचल प्रदेश में कुल्लू में आयोजित एक चुनावी जनसभा में उन्होंने कहा कि 'कश्मीर में पत्थरबाज हिमाचल के जवानों को निशाना बना रहे हैं', तब हम समझ सकते हैं कि उनके लिए चुनाव और उसमें जीत जाने के मायने क्या हैं। उस जीत को हासिल करने के लिए वे किस लेवल तक जा सकते हैं।

वे एक दिन जाति, धर्म, समुदाय की बात कर सकते हैं। तो अगले दिन ‘सवा सौ करोड़ भाई-बहनों’ की भी। वे किसी दिन अपने विपक्षियों पर पब्लिक में ठहाका मारकर हँस सकते हैं। तो मौका आने पर उसी पब्लिक के सामने रो भी सकते हैं। वे एक दिन इतने सख्त हो जायेंगे कि देश के विनाश के लिए सत्तर सालों को दोषी ठहरा देंगे। और एक दिन इतने सहृदय कि भरी लोकसभा में ऐलान कर देंगे कि इस देश को बनाने में उन सभी लोगों को योगदान है जो ‘प्रधानमंत्री’ पद पर रहे हैं।

इसलिए इस दौर में सही-गलत बेमानी से हो चले हैं। मोदी क्योंकि शक्तिमान हैं, मोदी क्योंकि विकल्पहीन हैं। मोदी क्योंकि चुनौतियों से परे हैं। इसलिए 'सही' और 'गलत' फिलहाल उनके मार्फ़त ही जारी होते हैं। देश केवल देख सकता है, इन्तजार कर सकता है कि मोदी एक्सप्रेस कहां तक जायेगी या फिर कहां रुक जायेगी !

हमारी बात समझ में नहीं आई, तो देखिए कैसे विरोधियों के निशाने पर मोदी रहते हैं। फिर भले ही नाम लिया जाए या इशारे में कहा जाए।

'गीता में लिखा कि 'कर्म करो फल की चिंता ना करो', लेकिन मोदी जी का इंटरपिटेशन हैं कि फल सब खा जाओ और काम की चिंता मत करो।'

राहुल गांधी















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