दुर्गेश पार्थसारथी की रिपोर्ट
गुरदासपुर। भाजपा सांसद विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई गुरदासपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने अपने-अपने उम्मीदवार चुनावी समर में उतार दिए हैं। तीनों उम्मीदवारों के पंजाबी होने के नाते यह चुनाव खास हो गया है क्योंकि इससे पहले बाहरी होने का मुददा उठता रहा है। लेकिन कविता खन्ना के रेस से बाहर होने के बाद यह उपचुनाव तीनों ही पार्टियों के नाक का सवाल भी बन गया है। गुदासपुर चुनाव ही दो नेताओं भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया व मरहूम सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। इस बीच कांग्रेस उम्मीदवार व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ की कविता खन्ना से हुई मुलाकात ने नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। लोग यह कयास लगाने में जुटे हैं कि स्वर्ण सलारिया को भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कविता खन्ना का क्या होगा।
जाखड़ व कविता की मुलाकात से कई चर्चाएं
पठानकोट में चुनाव कार्यालय के उद्घाटन के ठीक पहले कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ की पूर्व भाजपा सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना से एक घंटे की बातचीत ने राजनीति के गलियारे में एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है। राजनीतिक पंडित तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। कोई इसे टिकट न मिलने से कविता खन्ना की नाराजगी से जोडक़र देख रहा है तो कोई यह कयास लगा रहा है कि कविता कांग्रेस में जा सकती है। वैसे भी कविता खन्ना की नाराजगी व स्वर्ण सलारिया से संबंधों में खटास जगजाहिर है।
सलारिया पहले भी विनोद खन्ना की टिकट की दावेदारी पर अडंग़ा लगा चुके हैं। कई बार पार्टी की बैठक या सार्वजनिक मंच पर भी कविता की नाराजगी खुलकर सामने आई थी। हालांकि भाजपा नेता इन कयासों का खंडन करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में जाने की बात को इससे भी हवा मिल रही है कि जाखड़ से मुलाकात के तुरंत बाद कविता खन्ना मुंबई के लिए रवाना हो गयीं। गुरदासपुर में जब चुनावी माहौल गरमाया हुआ है तो ऐसे में कविता खन्ना का चुनाव प्रचार छोडक़र मुम्बई चले जाना चर्चा को तो जन्म देगा ही, लेकिन भाजपा नेता इन कयासों को सिरे से खारिज कर रहे हैं।
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पहले से तय था कविता खन्ना का कार्यक्रम
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पठानकोट से दो बार विधायक रहे अश्विनी शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ व कविता खन्ना की मुलाकात के राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाने चाहिए। यह मुलाकात शिष्टाचार की वजह से हुई क्योंकि विनोद खन्ना के निधन के बाद उनके शोक कार्यक्रम में जाखड़ शामिल नहीं हो पाए थे। सो वे अपनी संवेदना जताने गए थे। कविता खन्ना के मुंबई चले जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कविता का मुंबई जाने का कार्यक्रम पहले से तय था और इसकी जानकारी पार्टी हाईकमान को भी थी। चुनाव प्रचार में कविता खन्ना का भरपूर सहयोग मिल रहा है। मनमुटाव या कांग्रेस में जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।
आम आदमी पार्टी में भी उठे असंतोष के स्वर
आम आदमी पार्टी की तरफ से मेजर जनरल रिटायर्ड सुरेश खजुरिया को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी में असंतोष के स्वर उभरने लगे हैं। खजुरिया को पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है, जिस कारण उन्हें चुनाव प्रचार पर अकेले ही निकलना पड़ रहा है। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जो उम्मीदवार उतारे थे उनमें काफी असंतोष है। यहां तक कि पार्टी के प्रदेश महासचिव व गुरदासपुर से टिकट के प्रवल दावेदार लखबीर सिंह भी जनरल के साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं। नाराज नेताओं का कहना है टिकट देने में उनकी अनदेखी की जा रही है।
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कांग्रेस के गले की फांस बना बाहरी का मुद्दा
कांग्रेस गुरदासपुर सीट पर पूर्व भाजपा सांसद विनोद खन्ना को बाहरी बताकर यह मुद्दा चुनावों में उठाती रही है, जबकि यही मुद़दा अब कांग्रेस के गले में फंस गया है। कारण कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ फाजिल्का से हैं जो राजस्थान की सरहद पर पडता है। इस मुद्दे को अब खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विजय सांपला चुनाव प्रचार के दौरान जोरशोर से उठा रहे हैं। सांपला यहां तक कह रहे हैं कि कांग्रेस के पास कोई ढंग का प्रत्याशी नहीं हैं। इसीलिए राजस्थान के बार्डर से सुनील जाखड़ को लाकर प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने गुरदासपुर व पठानकोट के लोगों पर थोप दिया है। वैसे भी जाखड़ को लेकर कांग्रेस में भितरघात होने लगा है।
सिद्धू के लिए भी अग्निपरीक्षा है गुरदासपुर उपचुनाव
वैचारिक मतभेदों के कारण भाजपा छोड़ कांग्रेस सरकार में स्थानीय निकाय मंत्री बने नवजोत सिंह सिद्धू के लिए भी गुरदासपुर उपचुनाव अग्नि परीक्षा की तरह है। शुरू से ही सिद्धू का विरोध कर रहे पुराने कांग्रेसी नेता सिद्धू की चुप्पी पर सवाल उठाने लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी मनदीप सिंह मन्ना बार-बार सिद्धू पर आरोप लगाते रहे हैं। मन्ना कहते हैं कि सिद्धू कभी भी कांग्रेस को धोखा देकर भाजपा में जा सकते हैं। मन्ना ने सार्वजनिक मंचों व कांफ्रेंस में आरोप लगाते रहे हैं कि सिद्धू प्रकाश सिंह बादल व उनके परिवार के खिलाफ तो बहुत कुछ बोल जाते हैं, लेकिन भाजपा का नाम आते ही वे चुप्पी साध जाते हैं। उनकी यही चुप्पी लोगों को साल रही है। मन्ना सवाल करते हैं कि पूरे विधानसभा चुनाव में न तो भाजपा नेताओं या नेतृत्व ने सिद्धू का नाम लिया और न ही सिद्धू ने भाजपा का नाम लिया।