Haryana Election 2024: दलित वोट बैंक की जंग हुई तीखी, BJP ने क्यों बना रखा है बड़ा मुद्दा

Haryana Election 2024: लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने आरक्षण के साथ ही अग्निवीर और किसानों का मुद्दा उठाकर भाजपा को झटका देने में कामयाबी हासिल की थी।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-09-29 12:45 IST

Haryana Election 2024 (Photo: Social Media)

Haryana Election 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा दलित कार्ड खेलने की कोशिश में जुटी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के लगभग सभी बड़े नेता दलितों के मुद्दे को जोर-शोर से उछालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कांग्रेस की दलित नेता कुमारी शैलजा की नाराजगी को भी पार्टी ने जोर-शोर से उछाला है। गोहाना कांड और मिर्चपुर कांड के जरिए कांग्रेस को दलित विरोधी बताया जा रहा है।

भाजपा की इन कोशिशें के पीछे लोकसभा चुनाव के दौरान पांच सीटों पर लगे झटके को बड़ा कारण माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर मिली हार के पीछे दलित वोट बैंक खिसकने की बड़ी भूमिका मानी गई थी। कांग्रेस यह नैरेटिव सेट करने में कामयाब रही थी कि भाजपा सत्ता में आई तो संविधान में संशोधन करके आरक्षण खत्म कर देगी। यही कारण है कि भाजपा इस मुद्दे पर काफी आक्रामक है जबकि दूसरी ओर भाजपा के आक्रामक अभियान को देखते हुए कांग्रेस भी सतर्क हो गई है।

पीएम मोदी और शाह का दलित कार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा की चुनावी सभाओं में कांग्रेस को दलित और पिछड़ा विरोधी बताने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा दलितों और पिछड़ों को छलने का काम किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी पिछड़ों और दलितों के मुद्दों को काफी जोर-शोर से उछाला है। लोकसभा चुनाव के दौरान दलित मतदाताओं के भाजपा से कट जाने के कारण पार्टी को बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा था। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी इस मुद्दे को लेकर काफी फूंक-फूंक कर कर कदम रख रही है।



लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने आरक्षण के साथ ही अग्निवीर और किसानों का मुद्दा उठाकर भाजपा को झटका देने में कामयाबी हासिल की थी। हरियाणा में किसान और जाट मतदाताओं की नाराजगी भी भाजपा को भारी पड़ी थी। किसान और जाट मतदाता अभी भी भाजपा के पाले में नहीं दिख रहे हैं और इसलिए पार्टी दलित और ओबीसी समीकरण साधने की कोशिश में जुटी हुई है।

दलित और ओबीसी वोट बैंक की लड़ाई क्यों

हरियाणा में दलित और ओबीसी वोट बैंक की लड़ाई अनायास नहीं है। कांग्रेस और भाजपा में इस वोट बैंक पर कब्जे के लिए तीखी जंग के ठोस कारण हैं। हरियाणा में मतदाताओं के जातीय आंकड़े पर नजर डाली जाए तो सबसे ज्यादा 33 फ़ीसदी संख्या ओबीसी मतदाताओं की है। जाट मतदाता करीब 27 फ़ीसदी और दलित मतदाताओं की संख्या करीब 21 फ़ीसदी है। ओबीसी और दलित मतदाताओं की संख्या जोड़ दी जाए तो इसका आंकड़ा करीब 54 फ़ीसदी पर पहुंच जाता है।

हरियाणा की सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज होने के लिए बेकरार भाजपा ने इस 54 फ़ीसदी वोट बैंक पर निगाहें गड़ा रखी हैं। राज्य की 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं जबकि 90 में से 35 सीटों पर ओबीसी और दलित मतदाता किसी भी पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता रखते हैं। यही कारण है कि भाजपा इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुटी हुई है।



कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों से भी खतरा

यदि 2019 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो भाजपा में से 21 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी जबकि कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत हासिल की थी। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को आठ सीटों पर जीत मिली थी। दुष्यंत चौटाला का भाजपा से गठबंधन टूट चुका है। जाट मतदाताओं की नाराजगी के कारण भाजपा के लिए इन सीटों पर जीत हासिल करना जरूरी है मगर कांग्रेस बीच में बड़ा रोड़ा बनी हुई है। चौटाला का विरोध और सत्ता विरोधी लहर ने भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं।

दूसरी ओर अभय चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने बसपा और दुष्यंत चौटाला की जजपा ने नगीना के सांसद चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन कर रखा है। बसपा मुखिया मायावती और चंद्रशेखर के सियासी रण में होने के कारण दलित वोट बैंक में सेंधमारी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस कारण भाजपा को दलित वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा सिर्फ कांग्रेस से ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों से भी है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिया था झटका

2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने दलित वोट बैंक में तगड़ी सेंधमारी की थी। 20 फ़ीसदी से अधिक एससी मतदाताओं वाली 47 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी जबकि 18 सीटों पर ही भाजपा प्रत्याशियों को बढ़त मिली थी। आप ने भी चार सीटों पर भाजपा को पछाड़ दिया था। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग थी। भाजपा 47 में से 44 विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी जबकि कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर बढ़त मिली थी।



2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब जरूर हुई थी मगर अगर नतीजे पर गौर किया जाए तो पार्टी को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर झटका लगा था। पार्टी 17 में से सिर्फ 5 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को नौ सीटों पर जीत मिली थी।

नायब सिंह सैनी के जरिए भाजपा खेल रही कार्ड

पिछड़े वोट बैंक को एकजुट बनाने के लिए ही भाजपा ने इस बार पिछड़ी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले नायब सिंह सैनी को सीएम चेहरा घोषित कर रखा है। दरअसल जाट मतदाताओं की नाराजगी के कारण भाजपा उसकी क्षतिपूर्ति पिछड़े वोट बैंक से करना चाहती है। हरियाणा की 25-30 सीटों पर जाट मतदाताओं की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। जाट और किसान वर्ग की नाराजगी के कारण दलित और पिछड़े मतदाता भाजपा के लिए काफी अहम हो गए हैं।

भाजपा की ओर से अनिल विज और राव इंद्रजीत सिंह ने भी सीएम पद को लेकर दावेदारी ठोक दी है मगर गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि भाजपा के चुनाव जीतने की स्थिति में नायब सिंह सैनी ही राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा नायब सिंह सैनी के जरिए अपने पिछड़े वोट बैंक के आधार को मजबूत बनाना चाहती है। यही कारण है कि पीएम मोदी और अन्य शीर्ष नेताओं की जनसभाओं में नायब सिंह सैनी को काफी महत्व दिया जा रहा है।

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