हरियाणा में आप-कांग्रेस गठबंधन टूटने का क्या होगा असर, किस पार्टी को मिलेगा फायदा और किसे होगा नुकसान
Haryana Election: आप की ओर से की जा रही सीटों की डिमांड पूरी करने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं थी और यही कारण था दोनों दलों में कई दौर की बातचीत का भी कोई सुखद नतीजा नहीं निकल सका।
Haryana Election: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की इच्छा के बावजूद हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन नहीं हो सका। दोनों दलों की ओर से अपनी अलग-अलग सूचियां जारी की जा चुकी हैं। हरियाणा में राहुल गांधी जरूर आप के साथ गठबंधन चाहते थे मगर हरियाणा कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का ताकतवर गुट इसके पूरी तरह खिलाफ था। आप की ओर से की जा रही सीटों की डिमांड पूरी करने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं थी और यही कारण था कि आखिरकार दोनों दलों में कई दौर की बातचीत का भी कोई सुखद नतीजा नहीं निकल सका।
आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा भाजपा की चिंता बढ़ने वाली साबित हो रही थी। अब दोनों दलों के बीच गठबंधन टूटने से भाजपा ने राहत की सांस ली है। लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच गठबंधन के कारण भाजपा सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी मगर अब विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
राहुल की इच्छा के बावजूद क्यों नहीं हो सका गठबंधन
सियासी गलियारों की चर्चा के मुताबिक आप की ओर से हरियाणा में विधानसभा की 10 सीटों की डिमांड रखी गई थी मगर कांग्रेस नेतृत्व इतनी सीटें देने के लिए तैयार नहीं था। कांग्रेस की ओर से पांच और अधिकतम सात सीटों को देने की ही बात कही जा रही थी। इसके बाद आप की ओर से चेतावनी दी गई थी कि किसी को भी आप को हरियाणा में कमजोर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही आप ने राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की चेतावनी भी दे डाली थी।
जानकारों का कहना है कि दरअसल राहुल गांधी तो आप के साथ गठबंधन के इच्छुक थे मगर हरियाणा की स्थानीय इकाई इसका विरोध कर रही थी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार यह बयान देते रहे हैं कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब होगी। हुड्डा के साथ ही उनके समर्थक माने जाने वाले हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान भी इस गठबंधन के खिलाफ थे। ऐसे में पार्टी के बड़े नेताओं की आप के साथ बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका।
आप-कांग्रेस का गठबंधन टूटना भाजपा के लिए फायदेमंद
वैसे हरियाणा में भाजपा की सियासी राह इस बार आसान नहीं मानी जा रही है मगर आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन टूटने का पार्टी को निश्चित रूप से फायदा मिलेगा। सियासी जानकारों का भी मानना है कि यदि आप के साथ कांग्रेस का गठबंधन होता तो भाजपा के लिए सियासी राह और मुश्किल हो जाती। हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि आप ने कुरुक्षेत्र में अपना प्रत्याशी उतारा था। चुनाव नतीजे में कांग्रेस पांच सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही जबकि कुरुक्षेत्र में आप को हार का सामना करना पड़ा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई थी। लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद पार्टी के लिए इस बार एंटी इनकंबेंसी का भी खतरा बना हुआ है मगर अब आप और कांग्रेस का गठबंधन टूटना भाजपा विरोधी मतों के बंटवारे का मार्ग प्रशस्त करेगा।
लोकसभा चुनाव में गिर गया था भाजपा का वोट शेयर
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं। 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करके भाजपा पिछले 10 वर्षों से सत्ता में बनी हुई है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में भाजपा दुष्यंत चौटाला की जजपा के साथ गठबंधन के कारण सरकार बनाने में कामयाब रही थी। अब पार्टी का दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन टूट चुका है और पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने की कोशिश में जुटी हुई है।
वैसे यदि 2019 के विधानसभा चुनाव से तुलना की जाए तो लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत में जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई है। भाजपा को वोट प्रतिशत 58 से गिरकर 46 पर पहुंच गया है जो कि पार्टी के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।
ऐसे में आप और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा के लिए और खतरनाक साबित हो सकता था। आप प्रत्याशियों को मिलने वाले वोट कांग्रेस की दिक्कत बढ़ाने वाले साबित होंगे। ऐसे में दोनों दलों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा नेताओं ने राहत की सांस ली है।
कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनी गुटबाजी
आप के साथ गठबंधन टूटने के साथ ही हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी भी पार्टी के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। हरियाणा कांग्रेस में सबसे ताकतवर गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का है जबकि दूसरे गुट में सांसद कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजूवाला शामिल हैं। विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में हुड्डा की खूब चली है। इससे पूर्व लोकसभा चुनाव के दौरान भी हुड्डा अपने मन मुताबिक ज्यादातर टिकट दिलाने में कामयाब हुए थे।
हालांकि कांग्रेस ने अभी सीएम चेहरे को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सीएम पद पर फैसला चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद किया जाएगा मगर सीएम पद को लेकर अभी से ही खींचतान शुरू हो गई है। कुमारी शैलजा भी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं मगर पार्टी नेतृत्व ने किसी भी सांसद को टिकट देने से इनकार कर दिया है।
इसके बावजूद कुमारी शैलजा तेवर दिखा रही हैं और उनका कहना है कि मुख्यमंत्री पद का फैसला पार्टी हाईकमान की ओर से किया जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी में चल रही गुटबाजी भी पार्टी की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।