Heart Failure and Brain Stroke in Cold: अचानक क्यों हो रहे हार्ट फेल्योर और ब्रेन स्ट्रोक?

Heart Failure and Brain Stroke in Cold: पहले दिल का दौरा पड़ने के मामले 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में देखे जाते थे, लेकिन अब 18 साल से कम उम्र के लोग भी सडेन कार्डियक अरेस्ट की वजह से अपनी जान गंवा रहे हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2023-01-07 19:58 IST

Why are heart failure and brain stroke happening suddenly (Social Media)

Heart Failure and Brain Stroke in Cold: एक ही शहर में 24 घण्टे में हार्ट फेलियर और ब्रेन स्ट्रोक से दो दर्जन से ज्यादा मौतें, डराने वाली खबर है। इससे भी ज्यादा डराने वाली बात ये है कि ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है।

तेजी से बढ़ रहा प्रकोप

अचानक या बिना किसी पूर्व स्थिति के हार्ट फेलियर या ब्रेन स्ट्रोक, ये बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इन घटनाओं से लोग डरे भी हुए हैं। असल में बात डरने की ही है। हम भारतीय जेनेटिक रूप से वैसे ही दिल की बीमारियों के प्रति ज्यादा जोखिम में होते हैं और अब ये नया ट्रेंड बेहद गंभीर और चिंताजनक है।

भारत में ज्यादा जोखिम

आंकड़ों में देखें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में, खासकर युवा तबके में दिल से संबंधित बीमारियों से होने वाली  1.79 करोड़ मौतों में से 20 फीसदी भारत में ही हो रही हैं। इंडियन हार्ट एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में दिल के दौरे से मरने वालों में 10 में से चार की उम्र 45 साल से कम है। बीते 10 साल में भारत में हार्ट अटैक से होने वाली मौतें करीब 75 फीसदी तक बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि 40 साल से कम उम्र के 25 फीसदी और 50 साल से कम उम्र के 50 फीसदी लोगों को हार्ट अटैक का खतरा है। यह आधुनिक दौर में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है। भारत में हर साल करीब 20 लाख दिल के दौरे के मामले सामने आते हैं और इनमें से ज्यादातर युवा ही इसके शिकार होते हैं। शहर में रहने वाले पुरुषों को गांव में रहने वालों के मुकाबले दिल के दौरे की संभावना तीन गुना ज्यादा होती है। ये भारतीय लोगों की जेनेटिक संरचना की वजह से है। एक भारतीय मूल का व्यक्ति यदि यूरोप में बस जाए तब भी वह जिंदगी भर जोखिम में रहेगा। भारतीय महिलाओं में भी दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों की दर अपेक्षाकृत अधिक है।

अब उम्र कोई फैक्टर नहीं

पहले दिल का दौरा पड़ने के मामले 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में देखे जाते थे, लेकिन अब 18 साल से कम उम्र के लोग भी सडेन कार्डियक अरेस्ट की वजह से अपनी जान गंवा रहे हैं। बीते एक साल के दौरान बॉलीवुड से जुड़ी कई प्रमुख हस्तियों की कम उम्र में ही दिल की दधड़कन अचानक बन्द होने से मौत हो चुकी है। इनमें से कइयों की मौत तो जिम में कसरत के समय ही दिल का दौरा पड़ने से हुई।

दिल का दौरा, कार्डियक अरेस्ट और ब्रेन स्ट्रोक

हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट, दोनों अलग अलग अवस्थाएं हैं। दिल का दौरा तब होता है जब हृदय में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और कार्डियक अरेस्ट तब होता है जब हृदय के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में खराबी होती है. इससे यह अचानक तेजी से धड़कने लगता है या फिर अचानक धड़कना बंद कर देता है। इस स्थिति में रक्त के मस्तिष्क, फेफड़े और अन्य अंगों में संचार ना होने के कारण संबंधित व्यक्ति हांफने लगता है और सांस लेना बंद कर देता है। कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है। कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक की तुलना में अधिक घातक होता है। वहीं ब्रेन स्ट्रोक में मस्तिष्क के भीतर या तो रक्त संचार किसी वजह से बन्द हो जाता है या मस्तिष्क की रक्त नलिकाएं फट जाती हैं जिससे मस्तिष्क में खून भर जाता है।

क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे मामले?

युवाओं में दिल का दौरा पड़ने की घटनाएं आखिर क्यों बढ़ रही हैं? स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके लिए बदलती जीवनशैली, शराब और धूम्रपान की बढ़ती लत को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि पिछले 20 साल के दौरान भारत में दिल का दौरा पड़ने के मामले दोगुने हो चुके हैं और अब ज्यादा युवा लोग इसके शिकार हो रहे हैं। दिल के दौरे के मामलों में 25 फीसदी लोग 40 साल से कम उम्र के हैं। लेकिन एक वजह कोरोना भी बताई जाती है क्योंकि कई रिसर्च से पता चला है कि कोरोना वायरस पीड़ित व्यक्ति के ह्रदय को खराब कर देता है।

जेनेटिक कारण

एक हृदय रोग विशेषज्ञ का कहना है कि दिल का दौरा पड़ने के मामलों में जेनेटिक यानी आनुवांशिक प्रवृत्तियां भी अहम भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी लाइफस्टाइल संबंधित दिक्कतें भी जिम्मेदार होती हैं। धूम्रपान, शराब, मोटापा, तनाव, व्यायाम की कमी और प्रदूषण इसकी मुख्य वजहें हैं।

कोरोना का भी असर

आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना महामारी के बाद कोरोना से संक्रमित लोगों में हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के मामलों में 25-30 फीसदी का इजाफा हुआ है। कोरोना की वजह से जो मरीज अस्पताल में भर्ती थे या जिनको वेंटिलेटर पर रखा गया, अब वे दिल से बीमारियों से जूझ रहे हैं। कोरोना वायरस दो तरह से दिल पर असर डालता है। पहले तरीके में सीधे दिल की मांसपेशियों में इंफेक्शन होता है। इससे दिल कमजोर हो जाता है और खतरा बढ़ जाता है। दूसरा, कोरोना के बाद संक्रमण का हल्का रूप कई महीने तक शरीर में बरकरार रहता है। इससे धमनियों में सूजन बनी रहती है और दिल के भीतर खून का थक्का बनने लगता है। इसकी वजह से दिल का दौरा पड़ सकता है और अन्य दिक्कतें भी हो सकती हैं।

कोलेस्ट्रॉल

दिल के दौरे का मुख्य कारण एलडीएल-सी (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल) है। इसके अलावा धूम्रपान, मधुमेह, उच्च रक्तचाप,  आनुवांशिक इतिहास,  खराब जीवनशैली,  कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन और शारीरिक व्यायाम की कमी से भी दिल का दौरा हो सकता है।

जीवनशैली में बदलाव

एक्सपर्ट्स के अनुसार, बीते कुछ वर्षो के दौरान वर्क कल्चर तेजी से बदला है। अब युवाओं को दफ्तर में काफी तनाव लना पड़ता है। यह लोग बाहर का खाना खाते हैं और साथ ही सिगरेट और शराब का सेवन करते हैं। ऐसे में उनके दिल की बीमारियों की चपेट में आने का अंदेशा तेजी से बढ़ता है। एक आंकड़े से इस मामले की गंभीरता समझी जा सकती है। मुंबई में बीते साल कोरोना के मुकाबले दिल के दौरे से ज्यादा मौतें हुई थी। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से पता चला कि मुंबई में जनवरी से जून 2020 के बीच कोरोना से 10 हजार 289 मौतें हुई थीं, जबकि इसी दौरान हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या 17 हजार 880 रही। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ मेट्रिक्स ने हाल में एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा था कि भारत में दिल की बीमारियों के कारण मृत्युदर 272 प्रति लाख है जबकि वैश्विक औसत 235 का है।

फिटनेस के बावजूद अटैक

पूरी तरह फिट लोगों में अचानक कार्डिएक अरेस्ट से भी मौत की खबरें इधर अक्सर ही सामने आ रही हैं। एथलीट जिसके भीतर ताकत, शानदार कंडीशनिंग और शारीरिक मेहनत के लिए उच्च सहनशीलता होती है, वह हृदय की इस स्थिति का शिकार हो जाये, यह हैरत की बात है।

  • - अचानक कार्डियक अरेस्ट चोट, दवा के साइड इफेक्ट या वायरल इन्फेक्शन के चलते हृदय की मांसपेशियों की क्षति का परिणाम हो सकता है।
  • - यह एक पुरानी बीमारी का परिणाम हो सकता है या गर्भाधान के समय रोगी के जीन में लिखे गए रोग का पहला संकेत हो सकता है।
  • - कभी-कभी इनमें से एक से अधिक कारक भी मौजूद होते हैं।

कमोटियो कॉर्डिस

कॉमोटियो कॉर्डिस एक ऐसी अवस्था है जो सामान्य दिल वाले लोगों में हो सकती है। इस अवस्था से अचानक कार्डियक अरेस्ट होता है। जानवरों में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि यदि छाती में उस बिंदु पर चोट की जाए जहां दाएं वेंट्रिकल को दाएं एट्रियम से रक्त मिलता है और ये चोट ठीक उसी 20 मिलीसेकंड की अवधि में हो जब दिल की दीवारें अपने अगले पंप के लिए तैयार हो रही होती हैं तो, प्रभावित निलय तेजी से और अनियमित रूप से धड़कना शुरू कर देंगे। और इससे कार्डिएक अरेस्ट हो जाएगा।

आमतौर पर, इस तरह की सटीक हिट किसी छोटी चीज से हो सकती है, जैसे कि एक रबर या चमड़े की गेंद जो 80 किमी प्रति घंटे से अधिक तेज फेंकी गई है। लेकिन क्या छाती से किसी की कोहनी, कंधा या सिर टकराने से ऐसा हो सकता है, यह अभी तक पता नहीं है।

यदि हृदय की अव्यवस्थित लय काफी लंबे समय तक बनी रहती है, तो हृदय रक्त पंप करने या सामान्य संचालन को बनाए रखने की क्षमता खो देगा। यदि तुरंत बाहरी डीफिब्रिलेटर के इस्तेमाल या छाती पर दबाव डालने यानी सीपीआर से हृदय व्यवस्था बहाल नहीं की जाती है, तो मृत्यु निश्चित है।

तथ्य यह है कि ऐसा अधिक बार नहीं होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार कुछ युवाओं में ऐसी अंतर्निहित स्थितियां हो सकती हैं जो उन्हें इस तरह की विनाशकारी चोट के लिए प्रेरित करती हैं। उन स्थितियों में से एक मायोकार्डिटिस यानी हृदय की सूजन हो सकती है। ये अवस्था कोरोना के एमआरएनए टीकों से जुड़ी हुई भी पाई गई है। पिछले साल सितंबर में, अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) ने बताया था कि कोरोना शॉट्स प्राप्त करने वाले 123 मिलियन से अधिक लोगों में, इसने मायोकार्डिटिस के 131 मामलों का पता लगाया था। इनमें से अधिकांश मामलों में किशोर और युवा वयस्क पुरुष शामिल थे, और उनमें से किसी की मृत्यु नहीं हुई।

मायोकार्डिटिस

वैसे तो सामान्य वायरल संक्रमणों के मद्देनजर मायोकार्डिटिस कहीं अधिक बार देखा जाता है। सीडीसी ने कहा है कि वास्तव में, यह उन युवा पुरुषों में अधिक आम जटिलता रही है, जो कोरोना वायरस से संक्रमित थे, बजाय उन लोगों के जिन्हें टीका लगवाया गया था।

मायोकार्डिटिस अक्सर दिल को खराब कर देता है। फ्लू, दाद सिंप्लेक्स या यहां तक कि एक सामान्य सर्दी के मामले के वर्षों बाद भी यह हृदय को कमजोर कर देता है। नुकसान पहुंचाने वाले वायरस के निशान शायद ही कभी दिखाई देते हैं।

टीका और मायोकार्डिटिस

एक्सपर्ट्स का मत है कि यदि हैमलिन की स्थिति के लिए मायोकार्डिटिस जिम्मेदार है तो वह वैक्सीन की तुलना में "पुराने वायरल मायोकार्डिटिस" से अधिक होने की संभावना है। वैक्सीन से ये अवस्था होने की बहुत ही कम संभावना है।

कैसे बचें

लेकिन आखिर तेजी से पांव पसारते इस साइलेंट किलर से कैसे बचा जा सकता है? विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्यवर्धक भोजन, ताजे फलों और सब्जियों का इस्तेमाल, रोजाना कसरत और तनाव रहित जीवन से हृदय रोग को रोका जा सकता है। जीवनशैली में बदलाव जैसे तनाव घटाकर, नियमित चेकअप (खासकर लिपिड प्रोफाइल) और दवाइयों का प्रयोग बेहद महत्वपूर्ण है। इस बीमारी के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है. दिल से संबंधित किसी भी बीमारी से बचने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। इनमें नियमित रूप से व्यायाम, स्वस्थ भोजन, धूम्रपान से परहेज, तनाव पर काबू पाना और शराब का सेवन कम से कम करना शामिल है।

मौसम का असर

हमारा शरीर भी एक निश्चित तापमान ही सहन कर सकता है। हम लोग एक्सट्रीम मौसम के लिए नहीं बने हैं। ऐसे में सर्दियों में शून्य और गर्मियों में 50 डिग्री तक का तापमान जानलेवा साबित हो सकता है। अभी कानपुर की घटना को भी उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। बहुत ठंडा या बहुत गर्म मौसम वृद्धों और अंतर्निहित बीमारी से ग्रसित लोगों में हृदय या ब्रेन का स्ट्रोक ला सकता है। 

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