चार साल तक विचार, सभी सांसदों से सुझाव...नए कानून पर खड़े किए जा रहे विवाद पर शाह का विपक्ष को आइना

Amit Shah: नए आपराधिक कानूनों के बारे पर अमित शाह ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि नए कानून में न्याय के प्रावधान को प्राथमिकता दी गई है, जबकि औपनिवेशिक काल के कानून मुख्य रूप से दंडात्मक कार्रवाई पर केंद्रित थे।

Newstrack :  Network
Update: 2024-07-01 08:35 GMT

Amit Shah (सोशल मीडिया) 

Amit Shah: 1 जुलाई, 2024 से संसद से पारित हुए तीन नए कानून देश में लागू हो गए हैं। इन कानून के तहत सरकार की मंशा है कि जनता को त्वरित न्याय मिले। साथ ही, देश आजाद होने के बाद भी अंग्रेजों के जमाने से चल रहे पुरानों कानूनों को खत्म कर गुलामी की प्रतीक को हटाते हुए दंड संहिता की जगह न्याय संहिता किया गया है। सरकार का कहना है कि लोगों को दंड नहीं बल्कि न्याय मिले। हालांकि हर बार की तरह इस बार भी विपक्ष ने मोदी सरकार द्वारा लगाए नए कानूनों के खिलाफ हल्ला बोल रखा है। वह सड़क से लेकर संसद तक विरोध रहा है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने नए कानून के विधेयक पर कोई ठोस चर्चा नहीं की। ऐसे में विरोध के इन आरोपों और देश में नए कानून की क्यों जरूरत पड़ी, इस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस वार्ता की।

77 साल बाद आपराधिक न्याय प्रणाली बनी स्वदेशी

नए आपराधिक कानूनों के बारे पर अमित शाह ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि नए कानून में न्याय के प्रावधान को प्राथमिकता दी गई है, जबकि औपनिवेशिक काल के कानून मुख्य रूप से दंडात्मक कार्रवाई पर केंद्रित थे। सबसे पहले मैं देश के लोगों को बधाई देना चाहता हूं कि आजादी के करीब 77 साल बाद हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली पूरी तरह से 'स्वदेशी' बन रही है। 75 साल बाद इन कानूनों पर विचार किया गया और आज से जब ये कानून लागू हुए हैं, तो औपनिवेशिक कानूनों को खत्म कर दिया गया है और भारतीय संसद में बनाए गए कानूनों को अमल में लाया जा रहा है। विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों पर शाह ने कहा कि संहिता को लेकर कुछ विपक्ष के मित्र अलग-अलग बातें मीडिया के सामने रख रहे हैं कि अभी ट्रेनिंग नहीं हुई है, चर्चा नहीं हुई है। इस पर लोकसभा में नौ घंटा 34 मिनट चर्चा हुई है, 34 सदस्यों ने हिस्सा लिया। राज्यसभा में सात घंटा 10 मिनट चर्चा हुई है, 40 सदस्यों ने हिस्सा लिया।

हम सुनने के लिए तैयार, लेकिन...,शाह का विपक्ष को जबाव

शाह ने आगे बताया कि भारत की आजादी के बाद किसी भी कानून को पारित कराने के लिए इतनी लंबी चर्चा का प्रोसेस नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, "चार साल तक इस कानून पर विचार हुआ और आपको अभी भी कुछ कहना है, तो आप जरूर आइए मैं सुनने को तैयार हूं, लेकिन कृपया इस कानून को जनता की सेवा करने का मौका देना चाहिए। समय पर न्याय मिलेगा तो देश का भला होगा।"

देरी की जगह त्वरित सुनवाई और त्वरित न्याय

शाह ने कहा कि दंड की जगह अब न्याय है। देरी की जगह त्वरित सुनवाई और त्वरित न्याय होगा। पहले केवल पुलिस के अधिकारों की रक्षा की जाती थी, लेकिन अब पीड़ितों और शिकायतकर्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा की जाएगी। तीन नए आपराधिक कानून, अर्थात् भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), सोमवार को लागू हुए, जिससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। ये कानून समकालीन सामाजिक वास्तविकताओं और आधुनिक समय के अपराधों को संबोधित करने के लिए बनाए गए हैं। नया कानून ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेता है।

महिलाओं को शर्मिंगी से बचाया जा सकता

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मेरा मानना है कि यह बहुत पहले किया जाना चाहिए था। 35 धाराओं और 13 प्रावधानों वाला एक पूरा अध्याय जोड़ा गया है। अब सामूहिक बलात्कार पर 20 साल की कैद या आजीवन कारावास होगा। नाबालिग से बलात्कार पर मृत्युदंड होगा और पहचान छिपाकर या झूठे वादे करके यौन शोषण के लिए एक अलग अपराध परिभाषित किया गया है। ऑनलाइन एफआईआर की सुविधा भी दी गई इस तरह से बहुत सी महिलाओं को शर्मिंदगी से बचाया जा सकता है।

राजद्रोह का केस खत्म, मॉब लिचिंग पर भी कानून

गृहमंत्री शाह बताया कि मॉब लिचिंग के लिए पहले के कानून में कोई प्रावधान नहीं था, जबकि नए कानून में मॉब लिचिंग को समझाया गया। अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा के लिए राजद्रोह कानून बनाया था। इसके तहत केसरी पर प्रतिबंधन लगाया था। हमारी सरकार ने इस राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया है।

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