Modi vs Kharge: मोदी बनाम खरगेः अगर ऐसा हुआ तो 2024 के लोकसभा चुनाव में किसे होगा फायदा, क्या भाजपा की बढ़ जाएंगी मुश्किलें?

Modi vs Kharge: अभी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नाम पर कोई सहमति नहीं बनी है, लेकिन यदि उनके नाम पर अंतिम रूप से सहमति बन जाती है तो यह कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। मुख्यतौर पर दक्षिण भारत के राज्यों में जहां द्रविड़ राजनीति नेतृत्वकारी की भूमिका में है, इससे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को नई संजीवनी मिल सकती है।

Update: 2023-12-19 17:41 GMT

2024 का लोकसभा चुनाव "मोदी बनाम खरगे" हुआ तो इसका क्या असर हो सकता है: Photo- Social Media

Modi vs Kharge: इंडिया गठबंधन की मंगलवार को दिल्ली में हुई बैठक काफी महत्वपूर्ण साबित होने की बात कही जा रही है। बैठक में जहां अगले दस दिनों के अंदर सभी राज्यों में सीटों पर अंतिम सहमति बनाने की कोशिश करने की बात हुई है तो वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इंडिया गठबंधन का संयोजक या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की भी बैठक में चर्चा हुई है। अब इसके बाद से ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि यदि 2024 का लोकसभा चुनाव "मोदी बनाम खरगे" हुआ तो इसका क्या असर हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी एक अलग ही छवि है। वे गुजरात में काफी लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बाद अब दस साल से देश के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हैं। अपने कार्यों और जनहितकारी योजनाओं के जरिए उनकी देश की जनता के बीच एक एक अलग ही पहचान है। यही नहीं उनके नाम पर भाजपा को जीत दिलाने की विश्वसनीयता भी जुड़ गई है। भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव भी उनके नाम 'मोदी की गारंटी' पर ही लड़ेगी।

लेकिन यहां एक बात यह है कि केवल किसी नेता की छवि के आधार पर किसी चुनाव का परिणाम तय नहीं किया जा सकता। जहां प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर भाजपा को अब तक की सबसे बड़ी जीत दिलाने का रिकॉर्ड दर्ज है तो वहीं हिमाचल प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों की हार भी उनके नाम पर दर्ज हैं।

यहां भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं खरगे-

वैसे तो खरगे के नाम पर अभी इंडिया गठबंधन में कोई सहमति नहीं बनी है, लेकिन यदि उनके नाम पर अंतिम सहमति बन जाती है तो यह कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों में, जहां द्रविड़ राजनीति नेतृत्वकारी भूमिका में है, यहां कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को नई संजीवनी मिल सकती है। वहीं कर्नाटक और तेलंगाना में जिस तरह कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल की है, उसके पीछे मल्लिकार्जुन खरगे का नाम काफी अहम माना जाता है। ऐसे में यह मानने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि यदि खरगे को इंडिया गठबंधन ने पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया, तो इससे उसकी साख को मजबूती मिलेगी।

वहीं उत्तर भारत के राज्यों में मल्लिकार्जुन खरगे की विश्वसनीयता कितनी होगी, यह कहना आसान नहीं है, लेकिन इसका एक सकारात्मक संदेश तो अवश्य जाएगा और कांग्रेस के साथ-साथ दूसरे दलों को इसका लाभ भी हो सकता है। कांशीराम-मायावती के बाद की राजनीति में ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो दलितों का प्रतिनिधित्व करता हो। ऐसे में दलित समुदाय भी कहीं न कहीं दूसरे दलों की ओर आकर्षित हो रहा है। दलितों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पास भी चला गया है।

दलितों का वापस लौट सकता है-

यदि कांग्रेस दलित चेहरे को प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर दे, तो इससे दलितों का वोट उसके पास वापस लौट सकता है। वहीं इसका लाभ इंडिया गठबंधन में शामिल अरविंद केजरीवाल को दिल्ली और पंजाब में मिल सकता है, तो ममता बनर्जी को इसका लाभ हो सकता है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में लालू-नीतीश कुमार को भी इसका लाभ मिल सकता है।

लेकिन राह नहीं है आसान-

लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं है क्योंकि खरगे को प्रधानमंत्री पद के रूप में सबके लिए स्वीकार कर पाना आसान नहीं होगा। खुद कांग्रेस में ही एक वर्ग राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने पर तुला हुआ है, ऐसे में उनके लिए यह समझा पाना आसान नहीं होगा कि खरगे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से बेहतर संदेश दिया जा सकता है।

उधर, विपक्ष में भी कई दल लगातार कांग्रेस पर हमलावर रहे हैं। उनके लिए भी खरगे को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार कर पाना आसान नहीं होगा। ममता बनर्जी उन्हें राष्ट्रीय संयोजक बनाने पर तो सहमत हो सकती हैं, लेकिन जब प्रधानमंत्री पद की बात आएगी तब उनका रुख क्या रहेगा, यह कहा नहीं जा सकता। यहां तक कि जिस अरविंद केजरीवाल ने खरगे को प्रधानमंत्री बनाने का पासा फेंका है, जब बात वास्तव में सामने आ आएगी तो उनका रुख कैसा होगा, यह कहना आसान नहीं होगा। क्योंकि खरगे को पीएम उम्मीदवार बनाने का एक मतलब दिल्ली-पंजाब में दलित मतदाताओं को कांग्रेस की ओर धकेलना होगा, जिसे केजरीवाल कभी भी पसंद नहीं करेंगे, क्योंकि यह निर्णय उनके लिए राजनीतिक तौर पर काफी नुकसान करने वाला होगा।

इतना तो तय है कि इंडिया गठबंधन अगर खरगे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाता है तो 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

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