भारत में बन रहा है पहला डिजिटल नक्शा

Update:2023-06-13 11:33 IST

नई दिल्ली: दो सौ साल पहले ब्रिटिश सर्वेयर कर्नल सर जार्ज एवरेस्ट और उनके पूर्व सर्वेयर विलियम लैम्बटन ने वैज्ञानिक तरीके से भारत की लंबाई-चौड़ाई नापी थी। इतना लंबा समय बीत जाने के बाद अब सर्वे ऑफ इंडिया की तैयारी लेटेस्ट तकनीक की सहायता से भारत का डिजिटल नक् शा बनाने की है।

भारत सरकार का साइंस एंड टेक्रॉलजी विभाग डिजिटल मैपिंग के प्रोजेक्ट में दो साल तक सर्वे ऑफ इंडिया की सहायता करेगा। ये प्रोजेक्ट महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा में शुरू हो चुका है। ये काम ड्रोन की मदद से होगा जिसे जमीनी जानकारी से सत्यापित किया जायेगा। यानी जितने आंकड़े आसमान से जुटाए जाएंगे उतने ही जमीन पर भी एकत्र किये जायेंगे।

सरकार की मंशा है कि एक ऐसा डिजिटल नक् शा तैयार किया जाए जो सबके लिए उपलब्ध हो। आज की एडवांस व सर्वसुलभ टेक्रालॉजी के जमाने में सैटेलाइट डेटा सबके लिए आसानी से उपलब्ध है सो ऐसे में लोगों से नक्शे की जानकारियां व सूचनाएं रोकी ही नहीं जा सकती।

१७६७ में स्थापित सर्वे ऑफ इंडिया देश के सबसे पुराने वैज्ञानिक विभागों में से एक है। अभी तक मैपिंग के काम में पारंपरिक तरीके अपनाए जाते रहे हैं लेकिन अब डिजिटल मैपिंग के दो लेवल के काम में नवीनतम टेक्रालॉजी का उपयोग किया जायेगा। ड्रोन, हाई रिजोल्यूशन कैमरे, जमीनी आंकड़े - इन सभी का इस्तेमाल किया जायेगा।

भारत भर में सर्वे ऑफ इंडिया के ढाई हजार से ज्यादा ग्राउंड कंट्रोल प्वाइंट्स हैं। इनके स्टैंडर्ड कोआर्डिनेट्स तय हैं। लेकिन भारत में पहली मर्तबा ‘कंटीन्यूअस्ली ऑपरेटेड रिफरेंस स्टेशन’ (सीओआरएस) का संजाल बनाया गया है जो चंद सेंटीमीटर की निश्चितता से तत्काल ऑनलाइन थ्री-डी पोजीशनिंग दे देंगे। यानी एक क्लिक दबाते ही किसी क्षेत्र की थ्री -डी पोजीशन पता चल जायेगा। ये डिजिटल नक्शे सैटेलाइट आधारित नेवीगेशन सिस्टम जीपीएस या गूगल मैप्स से कहीं ज्यादा सटीक और सही होंगे। इसमें दस सेंटीमीटर से अधिक की चूक की गुंजाइश नहीं होगी।

सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार मैपिंग में राष्ट्रीय सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। ऐसे में विकास और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखा जायेगा।

जान जोखिम में डाल

कर हुआ काम

१८७० में भारत की मैपिंग की पहली कवायद में बड़ी संख्या में सर्वेयर और कर्मचारियों ने दुर्गम इलाकों व जंगलों में यात्रा करके आंकड़े जुटाये थे। इस ‘ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे’ में दूरबीन सरीखे कई उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था जिसमें थियोडिलाइट शामिल है। इससे पृथ्वी की गोलाई या ढलान को नापा जाता है।

तीस साल में २४०० किलोमीटर

भारत के तत्कालीन सर्वेयर सर जॉर्ज एवरेस्ट ने भारत के दक्षिणी हिस्से के सबसे आखिरी बिंदु से लेकर नेपाल के अंतिम बिंदु तक की मैपिंग की थी। २४०० किलोमीटर की इस दूरी के काम को पूरा करने में तीन दशक से ज्यादा का समय लगा था। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट सर जॉर्ज के नाम पर है।

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