Defence: भारत के पहले स्टेल्थ ड्रोन ने भरी सफल उड़ान, जानें इस फाइटर एयरक्राफ्ट के बारे में सब कुछ

DRDO ने ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर को पहली बार सफलतापूर्वक उड़ाया। ये उड़ान आज यानि शुक्रवार को कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंस से भरी गई।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-07-01 20:14 IST

भारत के पहले स्टेल्थ ड्रोन ने भरी सफल उड़ान। (Social Media)

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Defence: चीन और पाकिस्तान जैसे दो परमाणु संपन्न दुश्मन देशों से घिरा भारत लगातार अपनी सैन्य क्षमता में वृद्धि कर रहा है। इसके लिए सेना के तीनों अंगों को अत्याधुनिक उपकरणों एवं हथियारों से लैस किया जा रहा है। इस दिशा में भारत ने आज एक और निर्णायक कदम आगे बढ़ा दिया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर को पहली बार सफलतापूर्वक उड़ाया। ये उड़ान आज यानि शुक्रवार को कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंस से भरी गई।

इस लड़ाकू एयरक्राफ्ट की खास बात ये है कि ये स्वचालित है, यानि की बिना पायलट के काम करेगा। इसने खुद ही उड़ान भरी और आसानी से लैंडिंग की। इसे बेंगलुरू स्थित एयरोनॉटिकल डेवलेपमेंट इस्टैबलिशमेंट (ADE) ने बनाया है। ये विमान एक छोटे, टर्बोफैन इंजन के जरिए ऑपरेट किया गया है। इसमें एयरफ्रेम के साथ इसके अंडर कैरिज, फ्लाइट कंट्रोल और एवियोनिक्स सिस्टम को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया था।

डीआरडीओ की प्रतिक्रिया

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने कहा कि ये पूरी तरह से स्वचालित मोड में काम करेगा। यह विमान भविष्य के मानव रहित विमानों के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी साबित होगा और ऐसी रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकि में भी सहायता करेगा, जो आत्मनिर्भर होगी। इस ड्रोन के इस्तेमाल के लिए किसी पायलट की जरूरत नहीं होगी। यह ड्रोन हवा से हवा में मार करने में सक्षम है।

रक्षा मंत्री ने दी बधाई

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, डीआरडीओ को चित्रदुर्ग एटीआर से ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर की पहली सफल उड़ान पर बधाई। यह स्वायत्त विमानों की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है जो महत्वपूर्ण सैन्य प्रणालियों के मामले में आत्मानिर्भर भारत का मार्ग प्रशस्त करेगा।

बता दें कि मौजूदा समय में युद्ध में ड्रोन की भूमिका काफी बढ़ गई है। मानव रहित ड्रोनों के इस्तेमाल से सेना में जनहानि काफी कम हो जाती है और इससे दुश्मनों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिल जाती है। बीते साल आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए नागोर्नो-कराबाख संघर्ष के दौरान इन्हीं ड्रोनों ने युद्ध को एक पक्ष की तरफ मोड़ दिया था। अजरबैजान ने तुर्की से मिले ड्रोनों का जमकर इस्तेमाल किया, नतीजा ये हुआ कि आर्मीनिया की सेना के जंग के मैदान में पैर उखड़ गए और उसे युद्ध रोकने के लिए समझौता करना पड़ा। इसके अलावा अमेरिका अफगानिस्तान और इराक में इन्हीं मानव रहित ड्रोनों के जरिए कई खूंखार आतंकी को मार चुका है। 

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