Year Ender 2022: भारत के पास है मिसाइलों का भंडार, इस साल भी कई मिसाइलों का हुआ परीक्षण

Year Ender 2022: इस रिपोर्ट में जानेंगे भारतीय सेना अब तक कुल कितनी मिसाइल लांच की है। इसके अलावा भारतीय सेना के पास में कुल कितनी मिसाइलें मौजूद हैं, जो भारतीय सेना को दुनिया में नंबर वन बनाती हैं।

Report :  Jugul Kishor
Update:2022-12-31 16:43 IST

India has a stock of missiles (Pic: Social Media)

Year Ender 2022: भारतीय सेना को दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक माना जाता है। भारतीय सेना एक दिन में इतनी ताकतवर नहीं हुई है इसके लिए लग्न मेहनत और निरंतर प्रयास होते रहे हें। भारत में प्रत्येक साल देश के बजट का बड़ा हिस्सा सेना को आधुनिक बनाने में खर्च होता है। भारतीय सेना ने एक के बाद एक करके कई मिसाइलों को सफल परीक्षण करके अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा लिया है।

इस रिपोर्ट में जानेंगे भारतीय सेना अब तक कुल कितनी मिसाइल लांच की है। इसके अलावा भारतीय सेना के पास में कुल कितनी मिसाइलें मौजूद हैं, जो भारतीय सेना को दुनिया में नंबर वन बनाती हैं।

भारत के पास में कुल कितनी मिसाइल हैं 

मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल

अग्नि-1: अग्नि-1 मिसाइल स्वदेशी तकनीक से विकसित सतह से सतह पर मार करने वाली परमाणु सक्षम मिसाइल है। इसकी मारक क्षमता 700 सौ किलोमीटर है। मिसाइल का परीक्षण ओड़िशा के बालासोर से करीब 100 किलोमीटर दूर व्हीलर द्वीप स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज से किया गया। 15 मीटर लंबी व 12 टन वजन की यह मिसाइल एक क्विंटल भार के पारंपरिक तथा परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम है। मिसाइल को रेल व सड़क दोनों प्रकार के मोबाइल लांचरों से छोड़ा जा सकता है। अग्नि-1 में विशेष नौवहन प्रणाली लगी है जो सुनिश्चत करती है कि मिसाइल अत्यंत सटीक निशाने के साथ अपने लक्ष्य पर पहुंचे। इस मिसाइल का पहला परीक्षण 25 जनवरी 2002 को किया गया था। अग्नि-1 को डीआरडीओ की प्रमुख मिसाइल विकास प्रयोगशाला द्वारा रक्षा अनुसंधान विकास प्रयोगशाला और अनुसंधान केंद्र इमारत (आरसीआई) के सहयोग से विकसित और भारत डायनामिक्स लिमिटेड हैदराबाद द्वारा एकीकृत किया गया था।


अग्नि-2: अग्नि -2 भारत की मध्यवर्ती दुरी बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने विकसित किया है। यह अत्याधुनिक तकनीक से बनी 21 मीटर लंबी और 1.3 मीटर चौड़ी अग्नि-2 मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस होकर 1 टन लोड ले जाने में सक्षम है। 3 हजार किलोमीटर तक के दायरे में इस्तेमाल की जाने वाली इस मिसाइल में तीन चरणों का संचालन शक्ति सिस्टम लगाया गया है। इसे हैदराबाद की उन्नत प्रणाली प्रयोगशाला ने तैयार किया है।

इंटरमीडिएट दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल

अग्नि-3: अग्नि-3 को अग्नि-2 के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत द्वारा विकसित मध्यवर्ती दूरी बैलिस्टिक मिसाइल है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने विकसित किया है। जिसकी मारक क्षमता 3500 किमी से 5000 किमी तक है।

अग्नि-4: अग्नि-4 एक इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है। अग्नि-4 अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों में चौथा मिसाइल है जिसे पहले अग्नि 2 प्राइम मिसाइल कहा जाता था। जिसे भारतीय सशस्त्र बलों के इस्तेमाल के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित किया गया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने इस मिसाइल प्रौद्योगिकी में कई नई प्रौद्योगिकियों और महत्वपूर्ण सुधार को प्रदर्शित किया है। मिसाइल हल्के वजन वाली है और इसमें ठोस प्रणोदन के दो चरण और पुन: प्रवेश गर्मी कवच के साथ एक पेलोड मॉड्यूल है। यह मिसाइल अपने प्रकारों में एक अलग ही मिसाइल है, यह पहली बार कई नई प्रौद्योगिकियों को साबित करती है और मिसाइल प्रौद्योगिकी के मामले में एक क्वांटम छलांग दर्शाती है।

अन्तरमहाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल

अग्नि-5 भारत की अन्तरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने विकसित किया है। यह अत्याधुनिक तकनीक से बनी 17 मीटर लंबी और दो मीटर चौड़ी अग्नि-5 मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस होकर 1 टन पेलोड ले जाने में सक्षम है। 5 हजार किलोमीटर तक के दायरे में इस्तेमाल की जाने वाली इस मिसाइल में तीन चरणों का प्रोपल्शन सिस्टम लगाया गया है। इसे हैदराबाद की प्रयोगशाला (Advanced Systems Laboratory) ने तैयार किया है।

इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत है कि ये (Multiple Independently targetable Re-entry Vehicle) तकनीक यानी एकाधिक स्वतंत्र रूप से लक्षित करने योग्य पुनः प्रवेश वाहन इस तकनीक की मदद से इस मिसाइल से एक साथ कई जगहों पर वार किया जा सकता है, एक साथ कई जगहों पर गोले दागे जा सकते हैं, यहां तक कि अलग-अलग देशों के ठिकानों पर एक साथ हमले किए जा सकते हैं।

अग्नि- 5 मिसाइल का इस्तेमाल बेहद आसान है। इसे रेल सड़क हो या हवा, कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के किसी भी कोने में इसे तैनात कर सकते हैं जबकि किसी भी प्लेटफॉर्म से युद्ध के दौरान इसकी मदद ली जा सकती हैं। यही नहीं अग्नि पांच के लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस की वजह से इस मिसाइल को कहीं भी बड़ी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे हम अपने दुश्मन के करीब पहुंच सकते हैं। अग्नि 5 मिसाइल की कामयाबी से भारतीय सेना की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि न सिर्फ इसकी मारक क्षमता 5 हजार किलोमीटर है, बल्कि ये परमाणु हथियारों को भी ले जाने में सक्षम है।



अग्नि-5 भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय यानी इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल है। अग्नि-5 के बाद भारत की गिनती उन 5 देशों में हो गई है जिनके पास है इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल यानी आईसीबीएम है। भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ने इंटर-कॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल की ताकत हासिल की है। ये करीब 10 साल का फासला है जब भारत की ताकत अग्नि-1 मिसाइल से अब अग्नि 5 मिसाइल तक पहुंची है। 2002 में सफल परीक्षण की रेखा पार करने वाली अग्नि-1 मिसाइल- मध्यम रेंज की बालिस्टिक मिसाइल थी। इसकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर थी और इससे 1000 किलो तक के परमाणु हथियार ढोए जा सकते थे। फिर आई अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 मिसाइलें। ये तीनों इंटरमीडिएट रेंज बालिस्टिक मिसाइलें हैं। इनकी मारक क्षमता 2000 से 3500 किलोमीटर है। अग्नि-5 मिसाइल का। अग्नि-5 पाँच का परीक्षण 3 जून 2018 को प्रातः 9 बजकर 48 मिनट पर किया गया था।

जहां तक भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय बालिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 की खूबियों का सवाल है। तो ये करीब एक टन का पे-लोड ले जाने में सक्षम होगा। खुद अग्नि-5 मिसाइल का वजन करीब 50 टन है। अग्नि-5 की लंबाई 17 मीटर और चौड़ाई 2 मीटर है। अग्नि-5 सॉलिड फ्यूल की 3 चरणों वाली मिसाइल है। अग्नि-5 में RING LASER GYROSCOPE यानि RLG तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। भारत में ही बनी इस तकनीक की खासियत ये हैं कि ये निशाना बेहद सटीक लगाती है।

पनडुब्बी प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल

के-15 सागारिका: के-15 सागारिका मिसाइल का विकास 1991 में गुप्तनाम से शुरु हुई थी, भारत सरकार ने सबसे पहले इसकी पुष्टि सागरिका विकास के शुरु होने के सात साल बाद (1998) में किया, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान इसकी घोषणा की। पानी के भीतर मिसाइल लांचर, परियोजना 420 (P420) का विकास, 2001 में पूरा किया गया और भारतीय नौसेना को परीक्षण के लिए सौंप दिया गया। इसका विकास हजीरा (गुजरात) में हुआ था। जिन वैज्ञानिकों ने मिसाइल विकसित करने में मदद की उन्हे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह द्वारा सम्मानित किया गया। मिसाइल को सफलतापूर्वक छह बार परीक्षित किया गया और पूर्ण सीमा तक तीन बार परीक्षण किया गया। 26 फ़रवरी 2008 का परीक्षण विशाखापट्टनम के तट पर एक जलमग्न पोंटून से आयोजित किया गया। सागारिका के भूमि आधारित संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण 12 नवम्बर 2008 को किया गया था।

के-4 एसएलबीएम: के-4 का विकास तब शुरु हुआ जब इसी तरह की क्षमताओं वाली अग्नि-3 मिसाइल को आई एन एस अरिहंत में लगाने में तकनीकी समस्याएँ उतपन्न हुईं। अरिहंत के हल का व्यास 17 मीटर है जिसमें अग्नि-3 फिट नहीं हो पाती, इसलिये के-4 का विकास शुरु किया गया जिसे अग्नि-3 जैसी क्षमताओं के साथ ही अरिहंत में फिट होने जैसा बनाया गया। इसकी लम्बाई मात्र 12 मीटर है। के-4 के गैस प्रक्षेपक का 2010 में एक पंटून (छोटी पनडुब्बी) से सफलता पूर्वक परीक्षण किया गया।

के-5 एसएलबीएम:  के-5 मिसाइल कथित तौर पर भारतीय सामरिक बलों के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकासाधीन पानी के नीचे प्लेटफार्मों से लांच होने वाली मिसाइल है। इसे भारतीय नौसेना के अरिहंत वर्ग पनडुब्बियों के भविष्य के वेरिएंट में लेस किया जायेगा। यह 6,000 किलोमीटर की अधिकतम सीमा के साथ एक ठोस ईंधन मिसाइल होगी।

सामरिक मिसाइल

शौर्य: शौर्य प्रक्षेपास्त्र एक कनस्तर से प्रक्षेपित सतह से सतह पर मार करने वाला सामरिक प्रक्षेपास्त्र है जिसे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने भारतीय सशस्त्र बलों के उपयोग के लिए विकसित किया है। इसकी मारक सीमा 750-1900 किमी है।

प्रहार: प्रहार एक ठोस इंधन की, सतह से सतह मार करने में सक्षम कम दुरी की सामरिक बैलिस्टिक मिसाइल है। यह मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित की गई है। प्रहार मिसाइल का प्रयोग किसी भी सामरिक और रणनीतिक लक्ष्यों को भेदने के लिए किया जा सकता है

क्रूज़ मिसाइल

ब्रह्मोस-1: ब्रह्मोस एक कम दूरी की रैमजेट, सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है। इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है। रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने संयुक्त रूप से इसका विकास किया है। यह रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है।

ब्रह्मोस 2: ब्रह्मोस 2 रूस की एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिया और भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा वर्तमान में संयुक्त रूप से विकासाधीन एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।


भारतीय हाइपरसोनिक मिसाइल: हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक वाहन (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle या HSTDV) एक मानव रहित इस्क्रेमजेट प्रदर्शन विमान है। इसे हाइपरसोनिक गति उड़ान के लिए विकसित किया जा रहा है। इसका विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा किया जा रहे हैं।

निर्भय: निर्भय (अर्थात बिना भय) एक लंबी दूरी की सबसॉनिक क्रूज मिसाइल है। इसे भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित किया गया है।

शिप लांच बैलिस्टिक मिसाइल

धनुष: धनुष मिसाइल स्वदेशी तकनीक से निर्मित पृथ्वी प्रक्षेपास्त्र का नौसैनिक संस्करण है। यह 8.56 मीटर लंबा है। यह मिसाइल परमाणु हथियारों को ले जाने की क्षमता रखता है।

टैंक भेदी मिसाइल

नाग मिसाइल: नाग मिसाइल एक तीसरी पीढ़ी का भारत द्वारा स्वदेशीय निर्मित, टैंक भेदी प्रक्षेपास्त्र है। यह उन पाँच (प्रक्षेपास्त्र) मिसाइल प्रणालियों में से एक है जो भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत विकसित की गई है।

अमोघा-1: अमोघा-1 दूसरी पीढ़ी की टैंक रोधी गाइडेड मिसाइल है। जो 2.8 किमी तक की सीमा में बिंदु पिन सटीकता से वार कर सकती है। यह हैदराबाद में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड द्वारा विकासाधीन है। यह भारत डायनेमिक्स लिमिटेड कंपनी द्वारा निर्मित व परीक्षित पहली मिसाइल होगी।

सतह से हवा में मार करने वाले मिसाइल

अस्त्र मिसाइल: अस्त्र सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाला मिसाइल है, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), भारत ने विकसित किया है। यह हवा से हवा में मार करने वाला भारत द्वारा विकसित पहली मिसाइल है। यह उन्नत मिसाइल लड़ाकू विमानचालको को 80 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन के विमानों पर निशाना लगाने और मार गिराने की क्षमता देता है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने प्रक्षेपास्त्र को मिराज 2000 एच, मिग 29, सी हैरियर, मिग 21, एच ए एल तेजस और सुखोई एसयू-30एमकेआई विमानो में लगाने के लिए विकसित किया है। अस्त्र एक लम्बी मैट्रा 530 सुपर जैसी दिखती है। यह ठोस ईंधन प्रणोदक इस्तेमाल करती है हालांकि डीआरडीओ इसके लिये आकाश प्रक्षेपास्त्र जैसी प्रणोदन प्रणाली विकसित करना चाहती है। प्रक्षेपास्त्र पराध्वनि गति से लक्ष्य विमान अवरोधन करने में सक्षम है।

9 से 12 मई 2003 को मिसाइल का नियंत्रण और मार्गदर्शन प्रणाली के बिना सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। 25 मार्च 2007 को मिसाइल का पुन: सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। 13 सितंबर 2008 को इसका जमीनी परीक्षण सफल रहा। 11 जनवरी 2010 को चांदीपुर उड़ीसा में किया गया परीक्षण सफल साबित नहीं हुआ क्योंकि प्रक्षेपास्त्र की इलेक्ट्रानिक प्रणाली में एक मामूली गडबडी आ गई थी। 6-7 जून 2010 को अस्त्र का रात्रि परीक्षण सफल साबित हुआ।

रुद्रम-1 अथवा डीआरडीओ एंटी रेडिएशन मिसाइल (DRDO Anti-Radiation Missile): यह मिसाइल डीआरडीओ के रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला द्वारा विकसित एक अत्याधुनिक हवा से सतह में मार करने वाले वाली स्वदेशी एंटी रेडिएशन मिसाइल है। माना जाता है कि मिसाइल की सीमा 100-150 किलोमीटर है। वर्तमान में यह भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई एयरक्राफ्ट पर लगाया गया है। भविष्य में इसे भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों मिराज 2000 एच, एचएएल तेजस तथा जैगुआर में भी लगाया जायेगा।

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