परमवीर चक्र सम्मनित भारतीय सैनिक यदुनाथ सिंह, पढ़े इनका जीवन परिचय

यदुनाथ सिंह को 1941 के द्वितीय विश्व युद्ध में फतेहगढ़ की रेजिमेंटल सेंटर में ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में भर्ती किया गया था। यह ब्रिटिश भारतीय सेना में 7 वें राजपूत रेजिमेंट के रूप में भर्ती किए गए थे।

Update:2021-02-06 12:28 IST
परमवीर चक्र सम्मनित भारतीय सैनिक यदुनाथ सिंह, पढ़े इनका जीवन परिचय photos (social media)

लखनऊ : भारतीय सैनिक के रूप में पहचान बनाने वाले नायक यदुनाथ सिंह आज यानी 6 फरवरी को वीरगति को प्राप्त हुए थे। यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैनिक हैं। इस सैनिक ने भारत -पाकिस्तान युद्ध 1947 में अपने पराक्रम का परचम लहराया था जिसके चलते यह वीरगति को प्राप्त हो गए थे। आज इस मौके पर इनके जीवन के बारे में और इनके सैन्य जीवन से संबंधित कई तथ्यों को जानते हैं।

इनका प्राम्भिक जीवन

नायक यदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर के खुजरी गांव में हुआ था। इन्होंने सिर्फ चौथी तक की पढ़ाई का अध्यन किया। इनके घर की स्थिति अच्छी न होने के कारण इन्होंने आगे की पढ़ाई नहीं की। अपने माता पिता के साथ खेती में उनका हाथ बटाने लगे। उन्हें कुश्ती करने का काफी शौक था। वह अपने जीवन में बाल ब्रह्मचारी थे उन्होंने शादी नहीं की थी।

नायक यदुनाथ सिंह का सैन्य जीवन

यदुनाथ सिंह को 1941 के द्वितीय विश्व युद्ध में फतेहगढ़ की रेजिमेंटल सेंटर में ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में भर्ती किया गया था। यह ब्रिटिश भारतीय सेना में 7 वें राजपूत रेजिमेंट के रूप में भर्ती किए गए थे। इसके इन्होंने अपना प्रशिक्षण पूरा कर ब्रिटिश भारतीय सेना के प्रथम बटालियन में तैनात किया गया। साल 1942 में इन्हें अराकन अभियान के लिए तैनात किया गया। जहां उन्होंने जापान के लिए लड़ाई लड़ी।

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भारत - पाकिस्तान युद्ध

नायक यदुनाथ सिंह ने भारत - पाकिस्तान युद्ध 1947 में भारतीय सेना के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी। इन्होंने इस युद्ध में नौशेरा के उत्तर में स्थित टेंढर में नौ जवानों की टुकड़ी की कमान को संभाला था। जिसके दौरान 6 फरवरी 1948 के दिन पाकिस्तान सेना ने टेंढर चौकियों पर हमला कर दिया। दोनों पक्षों के बीच काफी गोली बारी हुई। इस युद्ध में भारतीय सैनिक 27 लोगों में से 24 लोग मारे गए। टेंढर की इस लड़ाई में नायक यदुनाथ सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1950 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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