अंग्रेजों ने बोये थे झगड़े के बीज

भारत-चीन के बीच वर्तमान विवाद और झगड़े के बीज भारत में ब्रिटिश के दौरान बो दिये गए थे। वो बीज अब भारी भरकम पेड़ में तब्दील हो चुके हैं और जिसकी जड़ें बहुत गहरे फैल चुकीं हैं।

Update:2020-06-17 12:46 IST

लखनऊ: भारत-चीन के बीच वर्तमान विवाद और झगड़े के बीज भारत में ब्रिटिश के दौरान बो दिये गए थे। वो बीज अब भारी भरकम पेड़ में तब्दील हो चुके हैं और जिसकी जड़ें बहुत गहरे फैल चुकीं हैं।

वर्ष 1800 के उत्तरार्ध में ब्रिटिश हुक्मरानों ने भारत और चीन के बीच दो सीमाओं का रेखांकन किया – एक वेस्टर्न सेक्टर में जो कश्मीर में था और दूसरा हजारों मील दूर ईस्टर्न सेक्टर में। लेकिन चीन और उस समय के आज़ाद तिब्बत को ब्रिटिश हुक्मरानों का ये प्रस्ताव मंजूर नहीं था।

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मैकमोहन लाइन

1914 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया। चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया। उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है। मैकमोहन रेखा ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर हेन्री मैकमोहन के नाम पर है।

बहरहाल, 1935 तक मैकमोहन लाइन को आधिकारिक नक्शे में शामिल नहीं किया गया। ब्रिटिश शासनकाल से ले कर आज तक भारत-चीन में इस रेखा पर मंजूरी नहीं बन सकी है। वेस्टर्न और ईस्टर्न सेक्टर में सीमा का कोई भौतिक रेखांकन आज तक नहीं हो पाया है। यही वजह है कि 3488 किलोमीटर लंबी सीमा का सवाल आज तक खुला पड़ा है जिसके अपने अपने जवाब हैं।

आज़ादी के बाद

1947 में ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी पा लेने के बाद भारत ने ऐलान किया कि ब्रिटिश शासकों ने जो सीमा खींची थी वह पक्के तौर पर मानी जाएगी। भारत ने ये कहा कि गलवान घाटी के पास का अकसाई चिन इलाके समेत कुछ और क्षेत्र भारत का ही है। चीन ने उस समय भारत के दावों को स्वीकार भी किया था लेकिन बाद में अपनी ही बात से पलटता गया। चीन की यही दोहरी चाल झगड़े की सबब बनती रही है। मिसाल के तौर पर चीन ने 1957 में वेस्टर्न सेक्टर में भारत के क्षेत्र के भीतर एक सड़क बना डाली।

संघर्ष की शुरुआत

सीमा के विवाद के बावजूद भारत और चीन के संबंध आमतौर पर ठीक ठाक बने रहे लेकिन आगले कुछ बरसों में सीमा की समस्या के चलते ये बिगड़ते गए। भारत और चीन के गश्ती दलों के बीच पहली बार 1959 में संघर्ष शुरू हुआ जो बढ़ता चला गया और अक्तूबर 1962 में चरम पर पहुँच गया जब चीनी सेनाएँ भारतीय क्षेत्र में घुस आयीं। 32 दिन के युद्ध के बाद चीन ने वेस्टर्न सेक्टर में अपना कंट्रोल बढ़ा लिया और ईस्टर्न सेक्टर में भारतीय सेना को 12 मील तक पीछे कर दिया। इसके बाद 1967 में फिर एक संघर्ष हुआ जिसमें चीन को भारी नुकसान झेना पड़ा।

वास्तविक नियंत्रण रेखा

युद्ध के बाद दोनों देशों ने आखिरकार एक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सहमति जताई। यानी जमीनी नियंत्रण के आधार पर एक अर्ध-आधिकारिक सीमा को मान लिया गया। ये कागजी रेखा हजारों किलोमीटर के विवादित क्षेत्र में फैली हुयी थी। आज तक वास्तविक नियंत्रण रेखा का अधिकांश हिस्सा खुला हुआ और बिना किसी भौतिक रेखांकन के है। ये ऐसी नियंत्रण रेखा जिसने झगड़ा सुलझाने में रत्ती भर मदद नहीं की है। दोनों हे देश वास्तविक नियंत्रण रेखा की असली लंबाई पर तक सहमत नहीं हैं।

एक अदृश्य सीमा

भारत और चीन के बीच नियंत्रण रेखा होने के बावजूद दोनों देशों के बीच तनाव सुलगता रहता है। सितंबर 2014 में चीनी शी जिनपिंग के पहले दौरे के कुछ दिनों पूर्व 200 चीनी सैनिक वेस्टर्न सेक्टर में भारतीय क्षेत्र सड़क बनाने के लिए घुस आए थे। भारतीय सेना ने उनका सामना किया और उनको पीछे खदेड़ दिया।

2017 में चीनी इंजीनियरों ने भूटान से लगे डोकलम क्षेत्र में सड़क बनाने की कोशिश की। भारतीय सेना ने तत्काल हस्तक्षेप किया और चीनी दल को पीछे धकेल दिया। डोकलम वो इलाका है जिस पर भूटान और चीन दोनों अपना हक जताते हैं। भले ही चीन ने सड़क का प्रोजेक्ट बंद करने और भारत ने सेना पीछे हटाने पर सहमति जताई लेकिन सीमा के आर पार सैन्य जमावड़ा काफी बढ़ गया है।

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सीमा पर चीन की घुसपैठ

चीन अपनी हरकतों से आज तक बाज नहीं आया है। 2016 से 2018 के बीच ही चीन ने भारतीय सीमा में एक हजार बार घुसपैठ की है लेकिन ये भी सच्चाई है कि 1975 के बाद से दोनों देशों के बीच एक गोली तक नहीं चली है। वैसे 1990 के दशक का भारत-चीन के बीच एक करार भी है जिसपर दोनों ने पर हस्ताक्षर किए थे और जिसमें कहा गया था कि दोनों देश आपसी तकरार में हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

एक्स्पर्ट्स के मुताबिक मसला जमीन पर कब्जे से कहीं आगे का है। चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के हिस्सों पर अपना व्यापक कंट्रोल चाहता है लेकिन भारत जैसे विशाल देश और अमेरिका से उसकी निकटता के चलते चीन को अपने इरादों में कामयाबी नहीं मिल रही है।

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