घुसपैठ: अब बेरोक टोक कोई नहीं आ सकेगा मेघालय

Update:2019-11-08 16:03 IST

शिलांग: मेघालय देश का पहला राज्य है जिसने ऐसा कानून बनाया है जिसके तहत राज्य में अब बेरोक टोक कोई नहीं आ सकेगा। यूं तो पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था जरूर लागू है लेकिन यह कानून उससे कई मायनों में अलग है। मेघालय के कई संगठन लंबे अर्से से इसकी मांग करते रहे हैं। पड़ोसी असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) लागू होने के बाद संभावित घुसपैठ के अंदेशे से इसके प्रावधानों में बड़े पैमाने पर संशोधन करते हुए इसे नए स्वरूप में लागू किया गया है।

क्या है नया कानून

मेघालय सरकार ने एक नवम्बर को मेघालय रेजिडेंट्स सेफ्टी एंड सिक्योरिटी एक्ट (एमआरआरएसए), 2016 को संशोधित स्वरूप में लागू कर दिया। फिलहाल इसे अध्यादेश के जरिए लागू किया गया है, लेकिन विधानसभा के अगले सत्र में इसे पारित करा लिया जाएगा। मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग बताते हैं, कि ये अधिनियम सरकारी कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा। यह उनके लिए है जो पर्यटन, मजदूर और व्यापार के सिलसिले में मेघालय आएंगे। इस अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी। मेघालय आने वाले बाहरी लोग अगर राज्य में २४ घंटे से ज्यादा रुकना चाहेते हैं तो उन्हें सरकार को सूचित क रना होगा।

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किराएदारों की निगरानी पर था जोर

मेघालय में अवैध अप्रवासियों को रोकने के उपायों के तहत वर्ष 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस अधिनियम को पारित किया था। हालांकि तब इसमें किराएदारों की निगरानी पर ही जोर दिया गया। उस समय तमाम मकान मालिकों को जरूरी कागजात दुरुस्त रखने और किराएदारों के बारे में पारंपरिक सामुदायिक मुखिया को सूचित करने का निर्देश दिया गया था। अब उस अधिनियम में कई बदलाव करते हुए इसे धारदार बनाया गया है। टेनसांग कहते हैं, संशोधित अधिनियम के तहत राज्य में आने वाले लोग ऑनलाइन पंजीकरण भी करा सकते हैं। सरकार ने पंजीकरण के नियमों को पहले के मुकाबले काफी सरल बना दिया है। यह अधिनियम तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। विधानसभा के अगले अधिवेशन में इसे अनुमोदित कर दिया जाएगा।

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अधिनियम में संशोधन से पहले मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने विभिन्न राजनीतिक दलों, गैर-सरकारी संगठनों और दूसरे संबंधित पक्षों की अलग-अलग बैठक बुला कर नए प्रावधानों पर चर्चा की थी। संशोधनों के बाद यह मेघालय आने वाले तमाम लोगों पर लागू होगा। अगर कोई व्यक्ति राज्य में प्रवेश करने से पहले अपनी जानकारी नहीं देता या फिर गलत जानकारी देता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

नागरिकता विधेयक का विरोध

मेघालय की कोनराड संगमा सरकार केंद्र के प्रस्तावित नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध कर रही है। इसके तहत पड़ोसी देशों से बिना किसी कागजात के यहां आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, जैन व पारसी तबके के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। भाजपा भी राज्य सरकार में शामिल है। वैसे तो राज्य के तमाम संगठन पहले से ही स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा के लिए समुचित कानून बनाने की मांग करते रहे हैं। पड़ोसी असम राज्य में एनआरसी लागू होने के बाद वहां से लोगों के भाग कर मेघालय में आने का अंदेशा बढऩे के बाद इस मांग ने काफी जोर पकड़ा था। असम में जारी एनआरसी की अंतिम सूची में 19.06 लाख लोगों को जगह नहीं मिल सकी थी।

बंगालियों के खिलाफ चला था आंदोलन

१९७९ में खासी स्टूडेंट्स यूनियन (केएसयू) ने मेघालय में बंगालियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। हिंसा की घटनाएं हुईं और तमाम लोग राज्य से खदेड़ दिए गए थे। १९८७ में बिहारियों और नेपालियों के खिलाफ भी अभियान चला था। केएसयू दशकों से मांग कर रही है कि मेघालय में बाहरी लोगों को आने से रोकने की व्यवस्था की जाए। इनरलाइन परमिट की व्यवस्था अभी नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल में लागू है।

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भारत के सबसे पूर्वी छोर पर बांग्लादेश की सीमा से लग मेघालय 21 जनवरी 1972 को अस्तित्व में आया था। ईसाई बहुल इस राज्य में सबसे ज्यादा खासी, जयंतिया और गारो जनजाति के लोग रहते हैं। राज्य में खासी की जनसंख्या करीब 34 फीसदी, गारो जनजाति की संख्या 30.5 फीसदी और जयंतिया की संख्या करीब 18.5 फीसदी है। अंग्रेजों के भारत में आने से पहले खासी, जयंतिया और गारो पहाडिय़ों के लोगों का अपना अलग राज्य था। जब अंग्रेज आए, तो ये तीनों राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गए। 1835 में तीनों राज्यों को असम का हिस्सा बना दिया गया। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद मेघालय को पूर्वी बंगाल का हिस्सा बनाया गया और 1912 में जब बंगाल विभाजन का फैसला वापस हुआ, मेघालय फिर से असम का हिस्सा बन गया। 1921 में ब्रिटिश साम्राज्य ने जयंतिया और गारो जनजातियों को पिछड़ा घोषित कर दिया, लेकिन खासी जनजाति को इससे बाहर रखा गया।

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