ISRO रचेगा इतिहास, पहली बार लॉन्च करेगा मेड इन इंडिया स्पेस शटल

Update: 2016-05-15 08:55 GMT

तिरुअनंतपुरम: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने अब तक के सफर में पहली बार एक ऐसी अंतरिक्षीय उड़ान भरने जा रहा है, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होगीे। इसरो अपने अब तक के सफ़र में पहली बार स्पेस शटल के स्वदेशी स्वरूप को लांच करने के लिए तैयार है। इसरो ये लॉन्चिंग रियूजेबल व्हीकल के जरिए करने वाला है। यह पूरी तरह से मेड-इन-इंडिया प्रयास हैे।

श्रीहरिकोटा में दिया जा रहा अंतिम रूप

-एक एसयूवी वाहन के वजन और आकार वाले इस शटल को रविवार को श्रीहरिकोटा में अंतिम रूप दिया जा रहा है।

-कई देश रियूजेबल लॉन्च व्हीकल के आइडिया को खारिज कर चुके हैं।

-इसरो के इंजीनियर्स का मानना है कि सैटेलाइट्स को ऑर्बिट में स्थापित करने की लागत कम करने के लिए रियूजेबल रॉकेट काफी कारगर साबित हो सकता है।

पहली बार डेल्टा पंखों से लैस यान

-इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है रियूजेबल टेक्नोलॉजी के यूज से स्पेस में भेजे पेलोड की कीमत 2000 डॉलर/किलो (1.32 लाख/किलो) तक कम हो जाएगी।

-सब ठीक चलने पर, भारत में मानसून आने से पहले ही आंध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित भारतीय अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर यानी आरएलवी-टीडी का प्रक्षेपण हो सकता है।

-यह पहला मौका होगा जब इसरो डेल्टा पंखों से लैस अंतरिक्षयान को लांच करेगा।

-लौन्चिंग के के बाद यह बंगाल की खाड़ी में लौट आएगा।

इसकी डिजाइनिंग है तैरने लायक नहीं

-आरएलवी-टीडी को इस प्रयोग के दौरान समुद्र से बरामद नहीं किया जा सकता।

-ऐसी संभावना है कि पानी के संपर्क में आने पर यह वाहन बिखर जाएगा क्योंकि इसकी डिजाइनिंग तैरने के अनुकूल नहीं है।

-इस प्रयोग का उद्देश्य इसे तैराना नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य इसे उतारना और ध्वनि की गति से पांच गुना वेग पर एक तय पथ से बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर पर उतारना है।

6.5 मीटर लंबा और 1.75 टन भारी यान

-भारत ने 15 साल से भी पहले से अपनी स्पेस शटल बनाने के विचार को अपना लिया था लेकिन इसकी शुरुआत लगभग पांच साल पहले ही हुई।

-तब इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के एक समर्पित दल ने आरएलवी-टीडी को हकीकत में बदलना शुरू किया।

-‘एयरोप्लेन’ के आकार के 6.5 मीटर लंबे और 1.75 टन भारी इस अंतरिक्ष यान को एक विशेष रॉकेट बूस्टर की मदद से वायुमंडल में भेजा जाएगा।

छह गुना छोटा है आरएलवी-टीडी

-आकार-प्रकार में अमेरिकी स्पेस शटल से मेल खाने वाले जिस आरएलवी-टीडी का परीक्षण किया जा रहा है।

-आरएलवी-टीडी के जिस मॉडल का एक्सपेरिमेंट किया जाएगा, वह इसके अंतिम रूप से 6 गुना छोटा है।

-आरएलवी-टीडी का फाइनल वर्जन बनने में 10-15 साल लगेंगे।

Tags:    

Similar News