दुर्गेश पार्थसारथीजालंधर : इसे वक्त का तकाजा ही कहा जाएगा कि जिस कलाकार के मंच पर आते ही लोग तालियां और सीटी बजाया करते थे, आज वही कलाकार अपनी तकदीर के सुराख पर पंक्चर लगा रहा है। कला के प्रति उसकी दीवानगी को देख उस समय लोगों ने उसे पागल दीवाना तक कहना शुरू कर दिया था, लेकिन आज वही कलाकार गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। यह कहानी है तूतीकोरन के रहने वाले 47 वर्षीय मद्दी की। उस मद्दी की जिसे कभी राजनीति की गलियारों से लेकर सिनेमा के सितारों तक ने सराहा था। वक्त बदलने के साथ आज वही मद्दी जालंधर की काजी मंडी में साइकिल के पंक्चर बना रहे हैं।
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ऐसे शुरू हुआ था सफर
अब 47 साल के हो चुके मद्दी मद्रासी कहते हैं कि एक बार उन्होंने तोतीकोरम में एक सर्कस देखा था। उस समय उनकी उम्र करीब 17 वर्ष थी। सर्कस में एक कलाकार अपने शरीर पर सैकड़ों ट्यूबलाइट्स तोडऩे के साथ सिर से कांच की बोतलें और सीने से पत्थर तोड़ रहा था। यह देखकर लोग तालियां बजाते थे। मद्दी कहते हैं कि बस यहीं से उन्होंने भी ठान लिया कि वह भी कुछ ऐसा ही करेंगे कि जब वो स्टेज पर आएं तो लोग तालियों से उनका स्वागत करें। पहले माता-पिता से छिप-छिपकर और बाद में सार्वजनिक रूप से आए दिन खतरों से खेलना शुरू हो गया।
कर चुके हैं एक हजार से अधिक शो
माता मरिअम्मा के अनन्य भक्त मद्दी एक हजार से अधिक शो कर चुके हैं। वे कहते हैं कि कार्यक्रम के दौरान जब स्टेज पर हीर रांझा का गीत ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, बजता था तो वे पांच मिनट के गाने पर करीब पांच सौ से अधिक ट्यूबलाइट अपने शरीर से तोड़ देते थे। इसके अलावा लैला मजनू का गीत कोई पत्थर से न मारे दीवाने को, बजता था तो सिर से शराब की बोतलें और सीने से पत्थर तोड़ा करते थे।
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लोगों की तालियां बढ़ाती थीं हौसला
मद्दी मद्रासी कहते हैं कि गाने के एक-एक शब्द और अंतरे को ध्यान में रखकर एक्टिंग के साथ जब स्टंट करते थे तो पूरा पंडाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठता था। वो कहते हैं कि उनके पिता मना करते थे। कहते थे कि तू खतरों से खेलता है तो मेरा कलेजा फटता है, लेकिन मैं कहां मानने वाला था। मुझ पर तो लोगों की तालियों का नशा था। पिता की रोक के बावजूद स्टंट का खेल जारी रहा।
मद्दी कहते हैं कि मुझे पैसा और शोहरत सबकुछ हासिल हुआ। लेकिन कहते हैं कि सबकुछ अच्छा नहीं होता। कुछ ऐसा ही मद्दी के साथ भी हुआ। वे कहते हैं कि गुरुगन स्वामी और माता मरिअम्मा के मेले में एक बार शो कर था। एमएलए मनोरंजन कालिया मुख्य अतिथि थे। शो देखकर उन्होंने कहा कि मद्दी तुझे डर नहीं लगता। यह खतरनाक काम है, जान भी जा सकती है।
ठुकरा दिया फिल्मों का ऑफर
बिल्कुल मिथुन दा की स्टाइल में सिर पर सफेद पट्टी बांध स्टंटमैन मद्दी कहते हैं कि 1996-97 में उन्हें हिंदी और पंजाबी फिल्मों से कई ऑफर आए मगर वे गए नहीं। शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचकर काम छोडऩे के बारे में वे कहते हैं कि जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं कि मन खिन्न हो गया। पूरा परिवार ही बिखर गया। मैंने यह काम करीब 12 वर्ष पहले ही छोड़ दिया। 2018 में छोटे बेटे की हत्या हो गई। इसके बाद मैं टूट सा गया।
अब बनाते हैं साइकिल का पंक्चर
वे कहते हैं कि सब दिन एक समान नहीं होते। आदमी जैसा सोचता है, वैसा नहीं होता। पहले हमारे साथ दस लोगों की टीम होती थी। पैसे की कभी परवाह नहीं की, लेकिन अब अकेला हूं। बिल्कुल अकेला। मद्दी इन दिनों घर चलाने के लिए साइकिल रिपेयर की दुकान चला रहे हैं। वे दिनभर साइकिलों का पंक्चर बनाते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या आप दोबारा यह काम शुरू कर सकते हैं, तो वे कहते हैं कि मन के सारे अरमान बिखर गए। इसलिए अब ये शोहरत, ये पैसा और तालियों की गडग़डाहट सब बेमानी लगती है मगर यह भी सही है कि बंदर कभी गुलाटी मारना नहीं भूलता।