Jan Vishwas Bill 2022: छोटे जुर्मों पर अब सिर्फ लगेगा जुर्माना, नहीं जाना होगा जेल, जानिए क्या जन विश्वास बिल

Jan Vishwas Bill 2022: जन विश्वास संसोधन बिल 2022 पर केंद्रीय कैबिनेट की मुहर लग गई है। जनविश्वास बिल कारोबार में सुगमता लाने के लिए लाया गया है।

Update:2023-07-13 14:38 IST
संसद भवन ( सोशल मीडिया)

Jan Vishwas Bill 2022: जन विश्वास संसोधन बिल 2022 पर केंद्रीय कैबिनेट की मुहर लग गई है। जनविश्वास बिल कारोबार में सुगमता लाने के लिए लाया गया है। पहले होता था कि छोटे अपराधों में भी लोगों को जेल भेज दिया जाता था, लेकिन अब इस बिल के आ जाने से ऐसा नहीं होगा। छोटे अपराधों में केवल अब जुर्माना या अर्थदंड लगाया जाएगा और जेल नहीं भेजा जाएगा। ऐसे कई मामले में जिनमें बदलाव किया जाएगा, तो आइए समझते हैं कि आखिर जन विश्वसास बिल क्या है, और इससे क्या-क्या फायदे होने वाले हैं।

क्या है जन विश्वास (संसोधन) बिल

जनविश्वास बिल को आगामी मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है। इस बिल के जरिए 19 मंत्रालयों से जुड़े 42 कानूनों के 183 प्रावधानों में संशोधन करके छोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। केंद्र सरकार ने इस बिल को 22 दिसंबर 2022 में लोकसभा में पेश किया था। जिसे संयुक्त संसदीय समित (जेपीसी) के पास भेज दिया गया था। जेपीसी ने मंत्रालयों और विधि मामलों के विभागों के साथ चर्चा की। चर्चा के बाद बिल को इसी साल मार्च में अंतिम रूप दिया गया। मार्च में बजट सत्र के दौरान इस दोनों सदनों में पेश किया गया था।

जेपीसी ने दिए ये सुझाव

संयुक्त संसदीय समित (जेपीसी) ने सुझाव देते हुए कहा था कि सरकार को पिछली तारीखों से प्रावधानों में संशोधन करना चाहिए, ताकि अदालतों में लंबित पड़े मामलों का निपटारा किया जा सके। इसके अलावा समित ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुकदमों में बढ़ोत्तरी से बचने के लिए जहां भी संभव हो कारावास को हटाकर नियम का उल्लंघन करने पर अर्थदंड लगाया जाना चाहिए। छोटे मोटे जुर्मों को अपराध मुक्त किया जाना चाहिए और गंभीरता के आधार पर अर्थदंड को लागू करना चाहिए।

जुर्माना और अर्थदंड़ में अंतर

बिल में कई अपराधों में लगने वाले जुर्माने की जगह अर्थदंड का उपयोग किया गया है। बता दें कि जुर्माना लगाने के लिए कोर्ट के आदेश की जरुरत होती है, जबकि अर्थदंड अधिकारी स्तर पर लगाया जा सकता है। इसका मतलब साफ ये है कि अब सजा के लिए कोर्ट कार्यवाही की जरुरत नहीं पड़ेगी।

इन कानूनों में बदलाव करने का प्रस्ताव

-आईटी एक्ट 2000 के संशोधन के प्रावधान के तहत निजी जानकारी सार्वजनिक करने पर तीन साल की की सजा या पांच लाख तक का जुर्माना दोनों हो सकते हैं। अब जेल की सजा को खत्म करके केवल 25 लाख रुपए अर्थदंड देने का प्रस्ताव लाया गया है।
पेटेंट कानून 1970 के तहत भारत में पेटेंट होने का झूठा दावा कर किसी वस्तु को बेच देना अपराध की श्रेणी में आता था, अब दस लाख रूपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
- कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 के तहत नकली ग्रेड पदनाम चिंह के इस्तेमाल पर तीन वर्ष की जेल और पांच हजार जुर्माने का प्रावधान है। विधयेक में आठ लाख रूपए अर्थदंड का प्रावधान किया गया है।
-पोस्ट आफिस एक्ट 1898 के तहत प्रत्येक जुर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रस्ताव है।

इन कानूनों में होगा संसोधन

- सार्वजनिक ऋण अधिनियम1944
- फार्मेसी अधिनियम 1948
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952
- कॉपीराइट अधिनियम 1957
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940
- मोटर वाहन अधिनियम 1988
- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006
- मनी लांड्रिंग निरोधक अधिनियम 2002
- ट्रेड मार्क्स अधिनियम 1999
- रेलवे अधिनियम 1989
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000
- पेटेंट अधिनियम 1970, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986
- मोटर वाहन अधिनियम 1988 समेत 42 कानूनों में संसोधन किया जाएगा।

Tags:    

Similar News