Jharkhand Election: हेमंत सोरेन के सामने ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती, BJP के इन दिग्गजों ने की घेरेबंदी
Jharkhand Election: भाजपा ने झारखंड के विधानसभा चुनाव की तैयारी समय से पहले ही शुरू कर दी थी। 2019 के चुनाव में हार के बाद पार्टी इस बार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है।
Jharkhand Election: झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। राज्य में दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे जबकि 23 नवंबर को चुनाव नतीजे की घोषणा की जाएगी। चुनाव आयोग ने भले ही मंगलवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया हो मगर राज्य में पिछले कई महीनों से एक-दूसरे को मात देने के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम चल रहा है।
झारखंड का विधानसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। जेल से बाहर आकर दोबारा मुख्यमंत्री बनने वाले हेमंत सोरेन के लिए आगे की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है क्योंकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने सोरेन को सत्ता से बेदखल करने के लिए इस बार तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है।
विवादों से भरा रहा है हेमंत का कार्यकाल
मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन का मौजूदा कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। भूमि घोटाले के आरोपों के बाद ईडी ने गत 31 जनवरी को उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी से ऐन पहले सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद राज्य की कमान झामुमो संस्थापक शिबू सोरेन के करीबी चंपई सोरेन को सौंपी गई थी। पांच महीने तक जेल में रहने के बाद झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर हेमंत सोरेन की रिहाई हुई थी और उन्होंने फिर मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया था।
चंपई सोरेन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था मगर वे भीतर ही भीतर मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने को लेकर नाराज थे। भाजपा नेताओं से चर्चा के बाद उन्होंने गत 28 अगस्त को झारखंड मुक्ति मोर्चा से इस्तीफा दे दिया और 30 अगस्त को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। अब वे भाजपा की ओर से हेमंत सोरेन को घेरने में जुटे हुए हैं और इसलिए आदिवासी वोटों की जंग काफी तीखी हो गई है।
भाजपा ने दिग्गजों को सौंप रखी है कमान
भाजपा ने झारखंड के विधानसभा चुनाव की तैयारी समय से पहले ही शुरू कर दी थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था और इसलिए पार्टी इस बार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। झारखंड में भाजपा की स्थिति मजबूत बनाने की जिम्मेदारी पार्टी के दो प्रमुख चुनाव रणनीतिकारों को सौंपी गई है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से राज्य में भाजपा की चुनाव रणनीति की कमान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपी गई है। इससे साफ हो जाता है कि झारखंड में इस बार सत्ता बदलाव के प्रति भाजपा किस हद तक गंभीर है। दोनों नेता कई बार झारखंड का दौरा कर चुके हैं और सधी हुई सियासी चालों के जरिए झामुमो नीत गठबंधन को मजबूत चुनौती देने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
आदिवासी सीटों पर लगा था भाजपा को झटका
झारखंड में विधानसभा के 81 सीटें हैं और इनमें से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। राज्य की सत्ता का फैसला करने में इन सीटों की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले गठबंधन ने इनमें से 26 सीटों पर जीत हासिल करते हुए भाजपा को करारा झटका दिया था। भाजपा आदिवासियों के लिए सुरक्षित सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी। इस साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा था। झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए पांच लोकसभा सीटें आरक्षित है और इन सभी पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इन सभी सीटों पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल करते हुए भाजपा को करारा झटका दिया।
चंपई सोरेन बनेंगे कितने मददगार
वैसे इस बार विधानसभा चुनाव में सियासी हालात कुछ बदले हुए नजर आ सकते हैं। कोल्हान बेल्ट में विधानसभा की 14 सीटें हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का इस इलाके में खाता तक नहीं खुला था। संथाल परगना में भी 18 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 14 पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन काबिज है। कोल्हान इलाके को चंपई सोरेन का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है अब चौपाई सोरेन झामुमो से बगावत करने के बाद भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
सियासी जानकारों का मानना है कि आदिवासी बेल्ट में वोट हासिल करने के लिए ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल किया है। भाजपा को भरोसा है कि चंपई सोरेन के दम पर इस बार को कोल्हान बेल्ट में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब हो सकती है। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में चंपई सोरेन की सियासी ताकत की भी परीक्षा होगी। सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि चंपाई सोरेन भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को मजबूत बना पाते हैं या झामुमो नेता हेमंत सोरेन के सामने फुस्स साबित होते हैं।