लखनऊ: पीयूष गोयल की अध्यक्षता में जीएसटी परिषद की 28वीं बैठक में सैनिटरी नैपकिन पर से जीएसटी हटा लिया गया है। देश भर में सैनिटरी नैपकिन से जीएसटी हटाने की मांग लम्बे समय से उठ रही थी। आम आदमी से लेकर फ़िल्मी सितारों तक सभी ने सैनिटरी नैपकिन से जीएसटी हटाने की मांग का समर्थन किया था। बाद में ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट में चल गया था।
newstrack.com आज आपको पर्दे के पीछे खड़ी जरमीना इशरार खान नाम की उस लड़की के बारे में बताने जा रहा है। जिसने सबसे पहले ये मुद्दा उठाया था।
कौन है जरमीना इशरार खान
जरमीना इशरार खान (27) मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की रहने वाली है। इस समय दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी(जेएनयू) में समाजशास्त्र से पीएचडी की पढ़ाई कर रही है।
वह एक मिडिल क्लास फैमिली से आती है। उनकी शुरूआती पढ़ाई पीलीभीत और उसके आस -पास के जनपदों में हुई। बाद में वह हायर स्टडीज की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई।
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कोर्ट जाने की ये है वजह
जरमीना ने बताया ''मैं उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जैसी छोटी जगह से आती है। उसने देखा है कि ग़रीब औरतें कैसे मासिक धर्म के दौरान अख़बार की कतरनों, राख और रेत का इस्तेमाल करती हैं।
मैं उनका दर्द समझती हूं। मैं ख़ुद एक लड़की हूं और समाजशास्त्र की छात्रा हूं। मैं समाज में औरतों के हालात से अच्छी तरह वाकिफ़ हूं। मुझे मालूम है कि ग़रीब तबके की औरतें कैसी तकलीफ़ों का सामना करती हैं''।
यही वजह है कि मैंने दिल्ली कोर्ट में जाने का फ़ैसला किया। जेएनयू में भी इस मुद्दे पर काफ़ी चर्चा होती थी लेकिन कोई आगे बढ़कर पहल नहीं कर रहा था।
अदालत के सामने पेश किया ये तर्क
ज़रमीना ने बताया, "मैंने कहा था कि अगर सिंदूर, बिंदी, काजल और कॉन्डोम जैसी चीजों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जा सकता है तो सैनिटरी नैपकिन्स को क्यों नहीं?"
दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी याचिका का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से सवाल भी किए थे। कोर्ट ने 31 सदस्यों वाली जीएसटी काउंसिल में एक भी महिला के न होने पर हैरानी जताई थी।
कोर्ट ने ये पूछा कि क्या सरकार ने सैनिटरी नैपकिन्स को जीएसटी के दायरे में रखने से पहले महिला और बाल कल्याण मंत्रालय से सलाह-मशविरा किया था।
हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी कहा था कि सैनिटरी नैपकिन्स औरतों के लिए बेहद ज़रूरी चीजों में से एक है और इस पर इतना ज़्यादा टैक्स लगाने के पीछे कोई दलील नहीं हो सकती।
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सरकार ने दी थी ये दलील
ज़रमीना के वकील अमित के मुताबिक़ सरकार की दो दलीलें थीं। एक तो उनका कहना था कि सैनिटरी नैपकिन्स पर पहले से सर्विस टैक्स था और उन्होंने इसे हटाकर इसके दाम घटा दिए थे।
यह तर्क तथ्यात्मक रूप से भ्रामक था क्योंकि कई राज्यों में सैनिटरी पैड्स पर लगने वाला सर्विस टैक्स काफ़ी कम था और जीएसटी लगने के बाद इसके दाम और बढ़ गए थे।
दूसरी दलील यह थी कि अगर सैनिटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे से बाहर कर दिया गया था भारत की छोटी कंपनियों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा और बाज़ार चीनी उत्पादों से भर जाएगा।
अमित का मानना है कि चूंकि अब सरकार ने ख़ुद ही अपना फ़ैसला पलट दिया है तो ज़ाहिर है उन्होंने जो दलीलें पेश कीं उनमें दम नहीं था।
हाईकोर्ट में तीन बार हुई थी सुनवाई
अमित ने बताया कि पिछले एक साल में दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर तीन बार सुनवाई हुई थीं। तीन सुनवाइयों के बाद सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफ़र करने की अपील की थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कुछ महीनों के लिए स्टे लगा दिया था।
ऐसा इसलिए क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट में भी इसी मुद्दे पर सुनवाई चल रही थी। फिलहाल पिछले कुछ तीन-चार महीने से यह मामला ठंडे बस्ते में था।
अमित ने कहा कि अब सरकार की तरफ़ से फ़ैसला आ ही गया है तो इस मुद्दे पर दायर की गई याचिकाएं अब वापस ले ली जाएंगी।
सैनिटरी पैड औरतों की जीवन रक्षक दवा जैसी
कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव भी सैनिटरी नैपकिन पर 12 फीसदी जीएसटी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती आई हैं। जीएसटी काउंसिल के फ़ैसले के बाद कहा कि मैं सरकार के फ़ैसले का स्वागत करती हूं।
हम तो पिछले एक साल से यही कहते आ रहे हैं कि सैनिटरी नैपकिन्स इतना रेवेन्यू देने वाला प्रोडक्ट है ही नहीं कि इस पर इतना टैक्स लगाया जाए।
उन्होंने कहा ''सैनिटरी नैपकिन्स महिलाओं के जीवन के अधिकार से जुड़ा है। यह उनके लिए किसी जीवनरक्षक दवा से कम नहीं। इस पर टैक्स लगाना महिलाओं के अधिकारों का हनन है।