भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों उपजाता है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय?

प्रो. मेनन ने कहा-'मेरे तो विभाग में भी उल्टा नक्शा लगा है। मुझे इस नक्शे में कोई भारत माता नजर नहीं आती है। रही बात नक्शे की, तो दुनिया गोल है और नक्शे को कैसे भी देखा जा सकता है। सेना के जवान देश सेवा के लिए नहीं, रोटी के लिए काम करते हैं। उन्हें सियाचीन में भेजकर क्यों मरवा रहे हैं।

Update:2017-02-04 16:40 IST

संजय तिवारी

लखनऊ: जवाहर लाल नेहरू के नाम पर बने विश्वविद्यालय में ही भारत विरोधी बातें क्यों होती हैं ? उसी विश्वविद्यालय में भारत के मानचित्र को उलटा क्यों लटकाया जाता है ? उसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को यह किसने आज़ादी दे रखी है कि वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में जाकर भारत के खिलाफ जहर उगलें ?

उन्हें भारत माता नहीं पसंद हैं, उन्हें राष्ट्रीय ध्वज नहीं पसंद है, उन्हें चरित्र नहीं पसंद है, उन्हें भारतीय होना नहीं पसंद है, फिर वे भारत के लोगों के कर से उपजी धनराशि को वेतन के रूप में क्यों लेते हैं? उन्हें फिर जनता की मेहनत की कमाई का धन सरकार देती क्यों है ? इनको यह आज़ादी किसने दे रखी है कि ये जब जहां चाहें देश को गालियां दे दें और कोई इनके खिलाफ कार्रवाई तक नहीं हो ? ऐसे संस्थान, जहां राष्ट्रविरोधी तत्व पाले पोसे जा रहे हैं, ख़त्म क्यों नहीं कर दिए जाते ?

इसी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति विभाग की प्रोफ़ेसर हैं नवोदिता मेनन। इनको प्रोफ़ेसर कहने में भी कम से कम मुझको तो शर्म ही आ रही है। इनके विचार और इनकी मंशा जानकार आपको भी जरूर घृणा हो जायेगी इनसे। ये इसी भारत के लोगों के खून पसीने से कमाई गयी रकम में से दो ढाई लाख रुपये हर महीने लेकर देश के खिलाफ जहर बो रही हैं।

प्रोफेसर निवोदिता मेनन ने जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी में देश की सेना, राष्ट्रीय ध्वज और भारता माता की तस्वीर के लिए इतनी विवादित बातें बोलीं कि यहां एकाएक माहौल गर्मा गया और आयोजक भी परेशान हो गए। जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के कुलपति आर पी सिंह ने कहा, ‘‘हमने मेनन और सेमिनार के आयोजन सचिव राज श्री राणावत के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। हमने एक जांच टीम का भी गठन किया है जो पूरे मामले की छानबीन करेगी।’’

छात्रों एवं एबीवीपी कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद यह कार्रवाई की गई। निवेदिता मेनन को यहां अंग्रेजी विभाग की ओर से आयोजित एक संगोष्ठी में बुलाया गया था। जब प्रो. मेनन मंच पर आईं तो उन्होंने खुद को देशविरोधी बताते हुए अपना परिचय दिया। उन्होंने अपने विषय पर स्लाइड के साथ बोलना शुरू किया तो पीछे प्रोजेक्टर से देश का नक्शा उल्टा दिखाया जा रहा था।

कुछ देर तो हॉल में मौजूद प्रतिभागियों ने सोचा कि शायद गलती से लग गया है लेकिन बाद में प्रो. मेनन ने कहा-'मेरे तो विभाग में भी उल्टा नक्शा लगा है। मुझे इस नक्शे में कोई भारत माता नजर नहीं आती है। रही बात नक्शे की, तो दुनिया गोल है और नक्शे को कैसे भी देखा जा सकता है। सेना के जवान देश सेवा के लिए नहीं, रोटी के लिए काम करते हैं। उन्हें सियाचीन में भेजकर क्यों मरवा रहे हैं। भारत माता की फोटो ये ही क्यों है। इसकी जगह दूसरी फोटो होनी चाहिए। भारत माता के हाथ में जो झंडा है, वह तिरंगा क्यों है। यह झंडा देश के आजाद होने के बाद का है, पहले ऐसा नहीं था। पहले इसमें चक्र नहीं था। मैं नहीं मानती इस भारत माता को।'

लोगों ने आपत्ति भी की। उनकी बातें सुन कर हर कोई हैरान रह गया। इस पर वहां मौजूद इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर एनके चतुर्वेदी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि आपने देश को बहुत कोस लिया, अब अपना भाषण समाप्त करें। बहस ब़़ढती देख आयोजकों ने टी ब्रेक की घोषणा कर दी। बाद में आयोजक डॉ. राजश्री राणावत ने सिंडिकेट सदस्य प्रो. चंद्रशेखर चौधरी को सफाई दी कि प्रो. मेनन ने ऐसी स्पीच के बारे में पहले ऐसा कुछ नहीं बताया था।

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