विजयवाड़ा : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर ने रविवार को कहा कि दुनिया के सभी देशों में असमानता देखने को मिलती है लेकिन भारत में कुछ ज्यादा ही असमानताएं रही हैं, जबकि भारतीय संविधान का मूलाधार समानता है। संविधानवाद और सभ्य समाज के विषय पर अपने व्याख्यान में चेलमेश्वर ने कहा, "सभी देशों के अलग-अगल रूपों में और विभिन्न कारणों से असमानता है। लेकिन इस देश में यह ज्यादा है।"
शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश चेलमेश्वर ने कहा कि असमानता धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के मामले में रहती है और इसके ऐतिहासिक कारण भी हैं।
उन्होंने कहा, "असमानता सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि यह हर जगह है। यहां तक कि अमेरिका में भी है, जिसको बहुत सारे लोग स्वर्ग समझते हैं और अमेरिका को लोकतंत्र का प्रतिमान समझा जाता है।"
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शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय संविधान में असमानता दूर करने का तरीका बताया गया है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के तहत सरकार को जीवन के हर क्षेत्र में समानता सुनिश्चित करने के निर्देश का जिक्र करते हुए कहा, "समानता भारतीय संविधान की आधारशिला है।"
उन्होंने कहा, "संविधान कोई अन्य पुस्तक या कुछ आलेखों का संग्रह नहीं है। यह राष्ट्र व समाज की जीवन पद्धति की अभिव्यक्ति है, जिस तरीके से वह रहना पसंद करता है।"
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा कि संविधान राजनीतिक व्यवस्था या शासन के नियमों का संग्रह नहीं है बल्कि इसपर देश का भविष्य निर्भर करता है।
न्यायमूर्ति अपने गृह राज्य आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ कॉलेज में के. रवींद्रराव स्मारक व्याख्यान दे रहे थे।
गौरतलब है कि 12 जनवरी को न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने शीर्ष अदालत के तीन अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ दिल्ली में एक अभूतपूर्व पत्रकार वार्ता के दौरान मामलों के आवंटन संबंधी संवेदनशील मुद्दा समेत सर्वोच्च न्यायालय प्रशासन से जुड़े कई मसलों को सार्वजनिक रूप से उठाया था।