नूपुर शर्मा पर सख्त रुख अपनाने वाले जस्टिस पारदीवाला पहले भी रहे हैं चर्चित, आरक्षण पर दिया था यह बयान

JB Pardiwala: जस्टिस पारदीवाला 2015 में आरक्षण के विरूद्ध टिप्पणी करके बुरी तरह घिर गए थे, उन्हें अपनी टिप्पणियां हटानी पड़ी थी।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update: 2022-07-01 13:29 GMT

Justice JB Pardiwala (Image credit: Social Media)

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Justice JB Pardiwala: एक टीवी शो में डिबेट के दौरान इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद पर कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट से आज तगड़ा झटका लगा। देश की सर्वोच्च अदालत ने न केवल उनकी याचिका को ठुकरा दिया बल्कि उन्हें जमकर डांट भी पिलाई। बीजेपी से निलंबित की जा चुकीं नूपुर को कड़ी फटकार लगाने वाले जस्टिस जेबी पारदीवाला इसके बाद से सुर्खियों में है। बीजेपी विरोधी खेमा उनकी खूब तारीफें कर रहा है।

हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं है जब वह अपनी टिप्पणियों के कारण विवादों और सुर्खियों में रहे हैं। जस्टिस पारदीवाला 2015 में आरक्षण के विरूद्ध टिप्पणी करके बुरी तरह घिर गए थे, उन्हें अपनी टिप्पणियां हटानी पड़ी थी। वहीं मई 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान उन्होंने गुजरात की भाजपा सरकार को मिसमैनेजमेंट के लिए फटकार लगाई थी। जिससे तत्कालीन विजय रूपाणी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।

आरक्षण पर बोलकर जब फंस गए थे जस्टिस पारदीवाला

साल 2015 की बात है, गुजरात में उस दौरान हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण आंदोलन जोरशोर से चल रहा था। जस्टिस पारदीवाला उस दौरान गुजरात हाईकोट में जज हुआ करते थे। जस्टिस पारदीवाला ने उस दौरान पाटीदार आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ देशद्रोह के मामले में दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए कहा था कि, यदि कोई मुझसे से दो चीजों का नाम मांगें, जिसने इस देश को तबाह कर दिया या यूं कहें कि देश को सही दिशा में आगे बढ़ने नहीं दिया, तो वो है – आरक्षण और भ्रष्टाचार।

उन्होंने आगे कहा कि इस देश के किसी भी नागरिक के लिए आजादी के 65 साल बाद आरक्षण मांगना बहुत ही शर्मनाक है। जब हमारा संविधान बनाया गया था, तो यह समझा गया था कि आरक्षण आरक्षण केवल 10 साल की अवधि के लिए रहेगा। मगर दुर्भाग्य से ये आजादी के 65 साल बाद भी जारी है। उनके इस टिप्पणी के बाद देश में बवाल खड़ा हो गया। उसी साल राज्यसभा के कम से कम 58 सदस्यों ने तत्तकालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी से जस्टिस पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की मांग की थी। उनका आरोप था कि जस्टिस पारदीवाला ने आरक्षण को लेकर असंवैधानिक टिप्पणी की है। विवाद के मद्देनजर न्यायमूर्ति पादरीवाला ने टिप्पणियों को हटा दिया और उन्हें अनावश्यक बताया।

कौन हैं जस्टिस जेबी पादरीवाला

जस्टिस जेबी पादरीवाला का जन्म 12 अगस्त 1965 को मुंबई में हुआ था। उनका परिवार मूलरूप साउथ गुजरात के वलसाड शहर से था। एक वकील परिवार में जन्मे पादरीवाला ने जेपी आर्ट्स कॉलेज, वलसाड से 1985 में स्नातक किया। वलसाड के ही के एम लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। उन्होंने अपनी वकालत वलसाड से ही 1989 में शुरू की थी। मगर सितंबर 1990 में उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। 17 फरवरी 2011 को उन्हें गुजरात उच्च न्यायलय में एडिशनल जज के रूप में प्रमोट किया गया और 28 जनवरी 2013 को वो स्थायी जज बन गए। 9 मई 2022 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रमोट किया गया।

जस्टिस जेबी पादरीवाला सुप्रीम कोर्ट में जज बनने वाले केवल पारसी समुदाय के केवल चौथे सदस्य हैं। मई 2028 में अगले दो साल और तीन महीने के कार्यकाल के लिए वो भारत के चीफ जस्टिस बनने की कतार में हैं। उनका कार्यकाल 11 अगस्त, 2030 तक उनकी सेवानिवृत्ति तक रहेगा।

दादा, परदादा भी रहें हैं वकील

जस्टिस जेबी पादरीवाला अपने परिवार में चौथी पीढ़ी थे, जिन्होंने वकालत का पेशा अपनाया। उनके परदादा नवरोजजी भीखाजी पारदीवाला ने 1894 में वलसाल में अपनी वकालत शुरू की थी, जबकि दादाजी कावासजी नवरोजजी पारदीवाला 1929 में वलसाड में बार में शामिल हुए और 1958 तक वकालत किया। उनके पिता बुर्जोरजी कावासजी पारदीवाला 1955 में बार में शामिल हुए थे और वलसाड जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए थे। उन्होंने राजनीति में भी हाथ आजमाया। कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने जाने के बाद उन्होंने सातवीं गुजरात विधानसभा (1989-1990) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। 

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