सिर्फ यहां : 'जयेंद्र सरस्वती' के बारे में वो सब, जो आप जानना चाहते हैं

Update: 2018-02-28 15:19 GMT

नई दिल्ली : भारत में हिंदू धर्म के प्रचारकों की बड़ी संख्या के बीच हिंदू धर्म की रक्षा और हिंदुत्व का परचम लहराने वाले कांची मठ के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती महाराज के बुधवार को निधन से हिंदू धर्म को भारी क्षति पहुंची है।

चारों वेद और उपनिषदों का ज्ञान अपने मस्तिष्क में समेटे स्वामी जयेंद्र सरस्वती के सानिध्य में जाने वाला शख्स उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। उन्हें सनातन धर्म के ध्वजवाहक, वेद-व्याख्या विभूति, ज्ञान का अकूत आगार और विनम्रता की जाग्रत पीठ के रूप में जाना जाता था।

18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में जन्मे सुब्रमण्यम महादेव अय्यर को पूरा भारत शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के नाम से जानता है। अपने ज्ञान और हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा ने उन्हें हिंदू धर्म के योद्धा के रूप में स्थापित किया। बचपन से ही तेज बुद्धि और दूसरे बच्चों से कुछ अलग जयेंद्र कम उम्र में ही कांची मठ आ गए थे। धर्म के प्रति निष्ठा और वेदों के गहन ज्ञान को देखते हुए मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्हें 22 मार्च 1954 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ का 69वां पीठाधिपति घोषित किया गया।



पीठाधिपति घोषित किए जाने के बाद ही उनका नाम जयेंद्र सरस्वती पड़ा। उन्हें कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरन सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। कांचीपुरम द्वारा स्थापित कांची मठ एक हिंदू मठ है, जो पांच पंचभूतस्थलों में से एक है। मठ द्वारा कई स्कूल और आंखों के अस्पताल चलाए जाते हैं।

23 साल तक पीठाधिपति रहने के बाद उन्होंने वर्ष 1983 में शंकर विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा और ज्ञान को देखकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके कायल हो गए थे।

शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती का विवादों से भी गहरा नाता रहा। जिसमें सबसे पहले छह दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद अयोध्या विवाद को हल करने की उनकी पहल ने राजनेताओं के बीच अहम स्थान दिया। जिसके चलते वाजपेयी ने उनकी प्रशंसा की लेकिन इसकी वजह से उन्हें दूसरे राजनेताओं और दलों की आलोचना झेलनी पड़ी थी।



इसके अलावा उन्हें सबसे ज्यादा आलोचनाओं का शिकार तब होना पड़ा जब सरस्वती पर कांची मठ के प्रबंधक शंकर रमण की हत्या के आरोप लगे और 11 नवंबर 2004 को 'त्रिकाल संध्या' करते वक्त पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

सरस्वती के प्रशंसकों में दिग्गज नेताओं की कमी नहीं थी। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता एक समय जयेंद्र सरस्वती को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं। जिस वक्त जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार किया गया उस समय राज्य में जयललिता की ही सरकार थी।

करीब नौ साल तक चले मामले में आखिर पुडुचेरी की अदालत ने 27 नवंबर 2013 को प्रबंधक शंकर रमण हत्या मामले में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, उनके भाई विजयेंद्र समेत सभी 23 आरोपियों को बरी कर दिया था।



खबरों के मुताबिक मृतक शंकर रमण की पत्नी सुनवाई के दौरान आरोपियों को पहचानने में विफल रही थीं साथ ही इस मामले के कई गवाह अपने बयान से मुकर गए थे जिसके बाद सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

जयेंद्र सरस्वती को सभी वर्गो के हितैषी के रूप में भी देखा जाता है उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश देने का अभियान चलाया और धर्म परिवर्तन का पुरजोर विरोध किया। वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो पिछले चार दशकों से तमिलनाडु सरकारों के कामकाज की खुलकर आलोचना किया करते थे।

अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर पुहंचे 82 वर्ष के जयेंद्र लंबे समय से बीमार थे और उन्हें पिछले महीने भी सांस की बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। हाल ही में उन्हें कुछ दिनों से बेचैनी की शिकायत होने लगी थी जिसके बाद उन्हें दोबारा से एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन बुधवार को कांची शंकर मठ के प्रमुख शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया।

जयेंद्र सरस्वती के निधन के साथ ही हिंदू धर्म के एक कद्दावर युग का अंत हो गया। जिसे हिंदू मठों और हिंदू धर्म के प्रचारकों के बीच हमेशा याद किया जाएगा।



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