Kargil Vijay Diwas 2022: कारगिल विजय में एक गड़रिये ने निभाई थी बड़ी भूमिका

Kargil Vijay Diwas 2022: दरअसल, लद्दाख के पशुपालक ताशी नामग्याल पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने पहली बार कारगिल की पहाड़ियों में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को देखा था। ये वाकया है 3 मई 1999 का।

Update:2022-07-25 19:21 IST

Kargil Vijay Diwas 2022 (Image: Newstrack)

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Kargil Vijay Diwas 2022: कारगिल युद्ध में एक याक और उसके मकिल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अगर ये याक और उसका मालिक न होते तो क्या स्थिति होती, कुछ कहा नहीं जा सकता है।

दरअसल, लद्दाख के पशुपालक ताशी नामग्याल पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने पहली बार कारगिल की पहाड़ियों में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को देखा था। ये वाकया है 3 मई 1999 का। हुआ ये था कि ताशी का एक नया पहाड़ों में कहीं खो गया था। ताशी नामग्याल अपने एक साथी के साथ कारगिल के बाल्टिक सेक्टर में पहाड़ियों पर चढ़ कर गुरखुन नाले के पास अपनी दूरबीन से देख रहे थे कि उनका याक कहां खो गया है।

ताशी बताते हैं कि अचानक उन्होंने पठान पोशाक में कुछ पुरुषों को बंकर खोदते हुए देखा। उनमें से कुछ हथियारबंद थे। ताशी तुरंत समझ गए कि वे लोग एलओसी के दूसरी तरफ से आए थे। हर जगह बर्फ ही बर्फ थी, जिसे वे लोग साफ कर रहे थे। ताशी तुरंत नीचे उतर आये और भाग कर भारतीय सेना की निकटतम चौकी गए जहाँ सेना की 3 पंजाब रेजिमेंट के जवान यहां तैनात रहते थे। ताशी ने पूरी बात गार्ड कमांडर बलविंदर सिंह को सुनाई। अगली सुबह पांच बजे ताशी को बटालिक सेक्टर ले जाया गया जहाँ सेना के एक अधिकारी ने उनसे पूरी बात पूछी। इसके बाद सेना 20 - 25 जवान ताशी के साथ भेजे गए।

ताशी उन्हें उस स्थान पर ले गए जहां घुसपैठियों को देखा गया था। सेना के जवान उन घुसपैठयों को पकड़ने के लिए दूसरी तरफ से गए लेकिन वहां पहले से ही पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी हर जगह पर मौजूद और तैयार थे। ताशी बताते हैं की उनकी रिपोर्ट के आठ दिन बाद ही युद्ध शुरू हो गया था।

अब 58 वर्ष के हो गए ताशी बताते हैं - उस समय मैंने वो याक 12 हजार रुपये में ख़रीदा था। ऐसे में जब पहाड़ों में मेरा याक खो गया तो मैं परेशान हो गया। सामान्य तौर पर याक शाम तक वापिस आ जाते हैं। लेकिन ये एक नया याक था जिसकी वजह से मुझे उसकी तलाश में जाना पड़ा। युद्ध शुरू होने के बाद ताशी अपने बच्चों को लेकर खलसी गांव की ओर चले गए। उस समय गोलों की बरसात हो रही थी। तीन महीने तक स्थानीय लोगों ने हथियारों को लाने में सेना की मदद की।

कारगिल से साठ किलोमीटर की दूरी पर सिंधु नदी के किनारे ताशी गारकौन नामक गांव में रहते हैं। ताशी और इस गांव के दूसरे लोग गर्व के साथ बताते हैं कि उन्होंने अपने स्तर पर इस युद्ध में भारत को हासिल हुई जीत में अपनी भूमिका निभाई है। ताशी को इस बात का दुःख है कि उनको कोई आर्थिक मदद नहीं मिली और किसी से कोई सम्मान भी नहीं मिला।

26 जुलाई को कारगिल युद्ध के नायकों के बलिदान और योगदान को याद करके कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष भारत 23वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है, जो कि 17 जून को उत्तरी कमान से शुरू हुआ था और महत्वपूर्ण बिंदुओं को पार करने के बाद द्रास पहुंचेगा जहां इसे 26 जुलाई 2022 को कारगिल युद्ध स्मारक ज्वाला में समाहित किया जाएगा। कारगिल विजय दिवस और युद्ध स्मारक का उत्सव हमें याद दिलाता है कि हम युद्ध नायकों के प्रति कृतज्ञता के ऋणी हैं जिन्हें चुकाया नहीं जा सकता।

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