Kargil Vijay Diwas: जवानों ने ध्वस्त कर दिया था पाक का मंसूबा, जानें कारगिल युद्ध के बारे में 10 महत्वपूर्ण तथ्य

Kargil Vijay Diwas 2022: कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा जमाने वाले पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ भारतीय सेना की ओर से ऑपरेशन विजय चलाया गया था।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-07-26 08:26 IST

भारतीय जवानों ने ध्वस्त कर दिया था पाक का मंसूबा (photo: social media )

Kargil Vijay Diwas 2022: भारत के लिए आज का दिन गर्व करने का दिन है क्योंकि आज ही के दिन 1999 में भारतीय सेना (Indian Army) ने अदम्य साहस दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) को कारगिल की लड़ाई (Kargil War)  में धूल चटा दी थी। उसी समय से 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है। कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा जमाने वाले पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ भारतीय सेना की ओर से ऑपरेशन विजय चलाया गया था। इस ऑपरेशन की शुरुआत 8 मई को हुई थी और पाकिस्तानी जवानों के खिलाफ सफल ऑपरेशन के बाद 26 जुलाई को इस ऑपरेशन को खत्म किया गया था।

भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए इस जंग में जीत हासिल की थी। भारतीय सेना की कार्रवाई में पाकिस्तान के करीब 3000 जवान मारे गए थे। हालांकि पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से 357 जवानों के मारे जाने की ही बात मानी थी। वैसे भारतीय सेना को भी जंग में नुकसान उठाना पड़ा था और भारत के 527 सैन्य कर्मी इस जंग में शहीद हुए थे। भारत के साढ़े तेरह सौ से अधिक जवान इस जंग में घायल हुए थे। कारगिल विजय दिवस के मौके पर उस जंग से जुड़ी 10 उल्लेखनीय बातों को जानना बेहद जरूरी है।

1-कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना की टुकड़ियों ने जबर्दस्त अभियान चलाया था। 8 मई को युद्ध की शुरुआत हुई थी और 11 मई से ही भारतीय वायुसेना की टुकड़ियां ऑपरेशन में जुट गई थीं। युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के करीब 300 विमानों की मदद ली गई थी। कारगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16,000 से 18,000 फीट ऊपर होने के कारण भारतीय वायुसेना के विमानों को 20,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरनी होती थी। इतनी ऊंचाई पर उड़ान भरना काफी खतरनाक होता है क्योंकि हवा का घनत्व करीब 30 फ़ीसदी कम हो जाता है। वायुसेना के पायलटों के लिए यह जोखिम भरा काम था मगर जांबाज पायलटों ने इस ऑपरेशन को बखूबी अंजाम दिया।

2-कारगिल युद्ध के दौरान तोपखानों का जमकर उपयोग किया गया था और दुश्मन सेना पर करीब ढाई लाख से अधिक गोले और रॉकेट दागे गए थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली लड़ाई थी जिसमें किसी दुश्मन सेना के खिलाफ इतनी ज्यादा बमबारी की गई थी। इस युद्ध में भारत में करीब तीन सौ से ज्यादा तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों की मदद ली थी। इनके जरिए दुश्मन सेना पर रोजाना करीब 5000 गोले दागे गए। भारतीय सेना की ओर से किए गए इन ताबड़तोड़ हमलों से दुश्मन सेना के छक्के छूट गए थे।

3-कारगिल की लड़ाई के दौरान भारतीय वायुसेना के मिग-27 और मिग-29 विमानों का इस्तेमाल किया गया था। मिग-27 के जरिए उन स्थानों पर बमबारी की गई थी जहां पर पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था। कारगिल के युद्ध में मिग-29 भारत की जीत में काफी अहम साबित हुआ था। इन विमानों के जरिए आर-77 मिसाइलें दाग कर दुश्मन सेना को ध्वस्त करने में मदद मिली थी।

4-कारगिल का युद्ध शुरू होने से पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने नियंत्रण रेखा पार करने का बड़ा कदम उठाया था। वे हेलीकॉप्टर के जरिए भारतीय क्षेत्र में 11 किलोमीटर भीतर तक आए थे और वहां रात भी बिताई थी। मुशर्रफ के साथ भारतीय भूभाग के भीतर आने वालों में 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी शामिल थे। बाद में एक रिपोर्ट के जरिए पता चला था कि इन दोनों सैन्य अधिकारियों ने अन्य सेना कर्मियों के साथ जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी।

5-कारगिल युद्ध के समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाक सेना की ओर से की गई कार्रवाई को लेकर पाकिस्तान को जमकर लताड़ा था। दरअसल युद्ध से पहले वाजपेयी ने लाहौर की बस यात्रा की थी और इस दौरान उनका जोरदार स्वागत किया गया था मगर पाकिस्तान ने बाद में भारत के भरोसे को तोड़ते हुए कारगिल में सैन्य अभियान छेड़ा था। इसी को लेकर वाजपेयी काफी खफा हुए थे।

उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कहा था कि एक ओर तो पाकिस्तान बुलाकर स्वागत किया गया और दूसरी ओर भारतीय विश्वास को तोड़ते हुए युद्ध छेड़ने का काम किया गया। उन्होंने इसे भरोसा तोड़ने वाला कदम बताया था। वाजपेयी को पाकिस्तान यात्रा के लिए लोगों की खूब आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी थीं।

6-कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने काफी मुश्किलों का सामना करते हुए विजय हासिल की थी। दरअसल इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंची पहाड़ियों पर डेरा जमा रखा था जबकि भारतीय सैनिकों को गहरी खाई में रहकर दुश्मनों का मुकाबला करना था। पाकिस्तानी सैनिकों के लिए भारतीय सैन्य कर्मियों को निशाना बनाना काफी आसान काम था जबकि भारतीय सेना के लिए दुश्मनों को मार गिराना काफी मुश्किल काम।

ऐसे हालात में भी भारतीय सैनिकों ने गजब का साहस और रणकौशल दिखाया। वे आड़ लेकर या रात के समय चढ़ाई चढ़कर ऊपर पहाड़ियों पर पहुंचते थे। यह काफी जोखिम भरा काम था मगर भारतीय सैनिकों ने इसे बखूबी अंजाम दिया।

7-कारगिल की पहाड़ी करीब 18000 फीट की ऊंचाई पर है और इस पहाड़ी पर पाकिस्तान के साथ युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई थी। यह भी बड़ी हैरानी की बात है कि भारतीय सेना को पाकिस्तानियों की ओर से की जा रही घुसपैठ की जानकारी एक चरवाहे से मिली थी। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान की ओर से की गई घुसपैठ से अनजान थी मगर इस चरवाहे ने भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना की साजिश से अवगत कराया था।

8-कारगिल की लड़ाई से पहले बोफोर्स तोपों को लेकर देश में बड़ा सियासी संग्राम हो चुका था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इन तोपों की खरीदारी में कमीशन को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बड़ा हमला बोला था। वैसे कारगिल की लड़ाई में बोफोर्स तोपें भारतीय सेना की काफी मददगार बनीं। इन तोपों के जरिए भारतीय सेना के जांबाजों ने दुश्मन सेना के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया था।

9-कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना में आपसी विवाद भी उजागर हुआ था। दरअसल पाकिस्तानी वायुसेना के चीफ को पहले इस ऑपरेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। बाद में जब भारतीय सेना की ओर से मुंहतोड़ जवाब दिया गया तो पाकिस्तानी एयर चीफ को इस बारे में बताया गया। इस बात को लेकर वे इतना खफा हुए थे कि उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी का साथ देने तब से मना कर दिया था। उन्हें मनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।

10-कारगिल पहाड़ी पर कब्जा जमाने वालों को पहले घुसपैठिया बताया जा रहा था। भारतीय सेना की ओर से की गई कार्रवाई में कई के मारे जाने के बाद जब शवों की तलाशी ली गई तो उनके पास से पाकिस्तानी पहचान पत्र निकले। बाद में सच्चाई उजागर हुई कि कारगिल की जंग में मारे गए अधिकांश पाकिस्तानी नॉर्दन लाइट इन्फेंट्री के जवान थे। यह पाकिस्तान का अर्धसैनिक बल था मगर कारगिल की लड़ाई के बाद इसे पाकिस्तान की नियमित रेजीमेंट बना दिया गया।

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