नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में भाजपा अपनी ही साझीदार सरकार की मुखिया महबूबा मुफ्ती से सख्त नाराज है। इसकी वजह है, महबूबा द्वारा चीन के उस प्रस्ताव पर हामी भरना। जिसके अनुसार चीन द्वारा कश्मीर घाटी से चीन को जोड़ने वाले प्राचीन रूट को दोबारा खोलना है। चीन इसे भारत पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग के नाम पर वन बेल्ट वन रूट की शुरुआत का नाम दे रहा है।
यहां केंद्र सरकार के हल्कों में इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया जा रहा है कि महबूबा यह सब जानते हुए कर रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही इस प्रस्ताव को सिरे से नकार चुके हैं। चूंकि यह रास्ता पाक के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है और इससे भारत की अखंडता पर संकट खड़ा हो सकता है इसलिए मोदी सरकार इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं कर सकता।
महबूबा ने केंद्र सरकार के इनकार के बावजूद इस बात को दोबारा अपने ट्वीट में दोहराकर केंद्र को नाराज कर दिया है। वे अपनी बात पर जोर देते हुए कहती हैं कि इस सिल्क रूट का हाईवे खुलने से एशिया, अफ्रिका और यूरोप को जोड़ने वाले नए रास्ते की खोज से कश्मीर का परंपरागत रास्ता दोबारा पुर्नस्थापित हो सकेगा। वे इसे कश्मीर को जोड़ने वाले मुल्कों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान की कड़ियों को जोड़ने की भी एक बड़ी शुरुआत के तौर पर देखती हैं।
ज्ञात रहे कि चीन पाकिस्तान के बीच बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट को जोड़ने वाला आर्थिक गलियारा भी इस मार्ग में आता है। इसलिए भारत सरकार किसी भी सूरत में चीन पाकिस्तान के सामरिक रणनीतिक मंसूबों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करना चाहती है।
भारत में चीन के राजदूत लून ज्याहउ ने दिल्ली के जेएनयू में पिछले सप्ताह एक व्याख्यान में कहा कि पाकिस्तान-चीन के बीच बन रहे कॉरिडर को नया नाम देने और कश्मीर के रास्ते नए वैकल्पिक मार्ग के बाबत सहभागी बने ताकि इस मामले में भारत की सभी तरह की चिंताओं को निजात मिल सके।
चीन पाकिस्तान के इस कॉरिडर को सीवीइसी कहा जाता है। जो दोनों देशों के बीच ओबीओआर प्रोजेक्ट के तौर पर जाना जाता है। बलूचिस्तान के बंदरगाह को जोड़ने और इस पूरे क्षेत्र में जिसमें पाक के कब्जे वाला कश्मीर भी शामिल है में चीन 60 बिलीयन डॉलर खर्च करेगा। इसमें दर्जन भर पावर प्रोजेक्ट के अलावा रोड, रेलवे, औद्योगिक जोन, टाउनशिपें और इस्लामबाद तक फाईबर ऑप्टिक बिछाने का काम शामिल है।