Katchatheevu Issue: नेहरू चाहते थे जल्द से जल्द देना, कच्चाथीवू द्वीप पर जयशंकर ने दिखाया कांग्रेस व DMK को आईना
Katchatheevu Issue: पिछले पांच वर्षों में कच्चाथीवू मुद्दा और मछुआरों का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है। यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है। तत्कालीन सीएम तमिलनाडु सरकार ने मुझे कई बार लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि वर्तमान सीएम को मैंने इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दिया है।
Katchatheevu Issue: देखते ही देखते तमिलनाडु का कच्चाथीवू द्वीप मामला अब राष्ट्रीय मुद्दा बना गया है। भाजपा की लोकसभा चुनाव रैली में कच्चाथीवू द्वीप की गूंज सुनाई देने लगी है। कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ में भाजपा के चुनावी शंखनदा रैली में कच्चाथीवू द्वीप का जिक्र करके इसको राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी तो वहीं सोमवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर कच्चाथीवू द्वीप के इतिहास पर और इसके मुद्दे पर पूरे विस्तार से जानकारी मीडिया के सामने प्रस्तुत की। कच्चाथीवू द्वीप पर उन्होंने कहा कि डीएमके ने तमिलनाडु के लिए कुछ नहीं किया। आंकड़ों से डीएमके का दोहरा चरित्र दिखता है।
कच्चाथीवू द्वीप पर विदेशी मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस
पीएम मोदी द्वारा उठाए गए कच्चाथीवू द्वीप मामले के बाद यह चर्चा का विषय बना गया है। इस मुद्द पर पहली बार विदेश मंत्रालय का बयान आया है। खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चाथीवू द्वीप के मुद्दे को लेकर सोमवार को मीडिया के सामने आए। उन्होंने कहा कि मैं सबसे पहले समझा दूं कि आखिर कच्चाथीवू द्वीप का मामला है क्या और आज के समय ये क्यों प्रासंगिक है। जून 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ, जहां दोनों देशों ने समुद्री सीमा तय किए और सीमा तय करते हुए भारत ने श्रीलंका को कच्चाथीवू द्वीप सौंप दिया।
उदासीनता के चलते गहराता चला गया विवाद
उन्होंने कहा कि इस समझौते में तीन खंड हैं। पहले खंड में दोनों देश समुद्री सीमा की संप्रभुता का पालन करेगी। यानी दोनों देश एक-दूसरे देशों की समुद्री सीमा को नहीं लांघेंघे। दूसरा खंड में भारत के मछुआरे कच्चाथीवू द्वीप जाकर मछलियां पकड़ेंगे, उन्हें किसी तरह के कागजात की जरूरत नहीं पड़ेगी। तीसरा खंड में यह है कि दोनों देशों के जहाज इस रूट से आवाजाही करते रहेंगे। जून 1974 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। तब केंद्र सरकार ने संसद में कहा था कि इस समझौते से भारत के मछुआरों के अधिकारों को नहीं छीना गया, लेकिन दो बाद यानी 1976 में सरकार ने फैसला कर लिया कि भारतीय मछुआर श्रीलंका सीमा में दाखिल नहीं होंगे। इसको लेकर दोनों देश के बीच चिट्ठी लिखी गई। सरकार के इसी रवैये के चलते यह विवाद गहराता चला गया।
21 बार दिया जवाब
विदेशी मंत्री ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका द्वारा जब्त किए गए। पिछले पांच वर्षों में कच्चाथीवू मुद्दा और मछुआरों का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है। यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है। तत्कालीन सीएम तमिलनाडु सरकार ने मुझे कई बार लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि वर्तमान सीएम को मैंने इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दिया है।
नेहरू ने नहीं दी तव्जो
जयशंकर ने इस मुद्दे को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया। वह इसको ज्यादा तव्जो नहीं देना चाहते थे, बस जल्दी से जल्दी हल चाहते थे। आज लोगों को ये जानना और समझना जरूरी है कि इस मामले को इतने लंबे समय तक लोगों से छिपाकर क्यों रखा गया? हमें पता है कि ये किसने किया है लेकिन हमें ये नहीं पता है कि इसे किसने छिपाया। लोगों को इस मुद्दे की वास्तविकता जानने का पूरा हक है। यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जो अचानक सामने आ गया हो। यह एक जीवंत मुद्दा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो संसद और तमिलनाडु हलकों में इस पर बहुत बहस हुई है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पत्राचार का विषय रहा है। अब तमिलनाडु में हर राजनीतिक दल ने इस पर अपना रुख अपनाया है। एस जयशंकर ने कहा कि, कांग्रेस और द्रमुक ने कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा ऐसे उठाया है जैसे कि उनकी इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं है।
क्या है कच्चाथीवू द्वीप विवाद?
बता दें कि कच्चाथीवू द्वीप आजादी से पहले भारत के हिस्से में था। श्रीलंका इस द्वीप पर लगातार अपना दावा ठोकता रहा। साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच कच्चाथीवू द्वीप को लेकर दो बैठके हुईं। इसके बाद यह फैसला लिया गया कि कच्चाथीवू द्वीप औपचारिक रूप से श्रीलंका को सौंप दिया जाए, तब इस द्वीप पर श्रीलंका का औपचारिक रूप से कब्जा है। यह द्वीप रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर दूर है।
इस वजह हिरासत में लिए जाते मछुवारे
इस बैठकों में कुछ शर्तें रखी गईं। भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे। बिना वीजा के द्वीप में जाने की इजाजत होगी। हालांकि ये भी शर्त थी कि भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की इजाजत नहीं दी गई थी। दरअसल, भारतीय जल हिस्से में मछलियां खत्म हो गई हैं। इसलिए तमिलनाडु के रामेश्वरम जैसे जिलों के मछुआरे कच्चातिवु द्वीप की तरफ जाते हैं तो उन्हें ये सीमा पार करनी पड़ती है और श्रीलंका नौसेना उन्हें पकड़ लेती है। यही विवाद की जड़ बनी हुई है।