Yashwant Sinha: IAS अफसर से राजनेता तक, जानिए कैसा रहा यशवंत सिन्हा का सफर

Yashwant Sinha : विपक्षी दलों की बैठक में आज TMC ने यशवंत सिन्हा का नाम आगे किया। बैठक में मौजूद 19 राजनीतिक दलों के नेताओं की भी इस पर सहमति मिल गई।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-06-21 18:10 IST

Yashwant Sinha (File Photo)

Yashwant Sinha Presidential Candidate : देश में 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा विपक्षी दलों के उम्मीदवार (Yashwant Sinha Opposition's Candidate for Presidential Polls) होंगे। विपक्षी दलों की बैठक में आज यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के नाम पर आम सहमति बन गई। यशवंत सिन्हा 27 जून 2022 को राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करेंगे।

विपक्षी दलों की बैठक में आज टीएमसी (TMC) की ओर से यशवंत सिन्हा का नाम आगे किया गया। बैठक में मौजूद 19 राजनीतिक दलों के नेताओं की सहमति मिलने के बाद यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लग गई।

प्रशासनिक और सियासत दोनों का अनुभव 

विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने वाले यशवंत सिन्हा का प्रशासनिक और सियासी मैदान में लंबा अनुभव रहा है। 1960 में आईएएस अफसर (Yashwant Sinha IAS) के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले यशवंत सिन्हा बाद में सियासी मैदान में उतर पड़े। उन्होंने देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री के महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाली। भारतीय जनता पार्टी (BJP) छोड़कर पिछले साल तृणमूल कांग्रेस (TMC) का दामन थामने वाले यशवंत सिन्हा का सियासी सफर जानना काफी दिलचस्प है।


1960 में मिली IAS परीक्षा में कामयाबी 

यशवंत सिन्हा का जन्म 1937 में पटना में हुआ था। शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए पटना विश्वविद्यालय (Patna University) में दाखिला लिया और 1958 में राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल की। यशवंत सिन्हा मेधावी छात्र थे। उनका सपना आईएएस बनने का था। पोस्ट ग्रेजुएशन के दो साल बाद ही उन्होंने 1960 में आईएएस की परीक्षा में कामयाबी हासिल की। IAS के रूप में उन्होंने 24 साल तक कार्य किया। विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाली। 

सिन्हा ने संभाली कई अहम जिम्मेदारियां 

यशवंत सिन्हा ने जिलाधिकारी के रूप में करीब चार साल तक सेवा की। इसके साथ ही उन्होंने बिहार सरकार में अवर सचिव (Under Secretary In Government of Bihar) और उप सचिव के पद पर भी काम किया। बाद में उन्होंने केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में भी उप सचिव के रूप में अपनी सेवाएं दीं। यशवंत सिन्हा 1971 से 1973 तक जर्मनी के भारतीय दूतावास (Indian Embassy in Germany) में रहे। इस दौरान उन्होंने वाणिज्यिक सचिव का पद संभाला। बाद में 1973-74 के दौरान उन्होंने फ्रैंकफर्ट में महावाणिज्य दूत के रूप में काम किया। इस तैनाती के बाद उन्होंने केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी संभाली।

1984 में सियासी पिच पर उतरे

लंबे समय तक प्रशासनिक सेवा में काम करने के बाद यशवंत सिन्हा ने सियासी मैदान में उतरने का फैसला किया। 1984 में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी में शामिल होकर सियासी पिच पर बल्लेबाजी के लिए उतर गए। 1986 में उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई और 1988 में वे राज्यसभा सदस्य बनने में कामयाब हुए। 1989 में जनता दल का गठन होने पर उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1990-91 में चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने पर यशवंत सिन्हा को देश का वित्त मंत्री बनाया गया। बाद के दिनों में सिन्हा का मन जनता दल में नहीं रमा और उन्होंने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया।


अटल सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री बने

बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद भी यशवंत सिन्हा ने कामयाबी की सीढ़ियां बहुत तेजी से चढ़ीं। हजारीबाग से सांसद का चुनाव जीतने वाले यशवंत सिन्हा को 1996 में भाजपा के प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी गई। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनने पर एक बार फिर उन्हें वित्त मंत्री का पद संभालने का मौका मिला। बाद में उन्होंने अटल सरकार में विदेश मंत्री के रूप में भी भूमिका निभाई। 

पिछले साल थामा था टीएमसी का दामन 

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हजारीबाग संसदीय सीट (Hazaribagh parliamentary seat) से हार का मुंह देखना पड़ा। मगर, 2005 में वे एक बार फिर संसद सदस्य बनने में कामयाब हुए। पार्टी की ओर से उन्हें उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी गई मगर उन्होंने 2009 में उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। बाद के दिनों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा में ताकतवर बनकर उभरने के बाद यशवंत सिन्हा लगातार किनारे होते गए। इस दौरान उन्होंने पार्टी के कई फैसलों को लेकर सवाल भी उठाए। काफी दिनों तक पार्टी नेतृत्व से नाराज रहने और बयानबाजी के बाद उन्होंने पिछले साल टीएमसी का दामन थाम लिया था।


ममता को बताया 'फाइटर नेता' 

टीएमसी का दामन थामने के बाद यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला था। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी सबकी बात सुना करते थे और सर्वसम्मति बनाने पर जोर दिया करते थे। उनका कहना था कि मोदी सरकार सबकी आवाज दबाने में ही विश्वास रखती है। उनका कहना था कि प्रजातंत्र में यकीन करने वाले सभी लोगों को इकट्ठा होकर इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी चाहिए। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (WB CM Mamata Banerjee) को फाइटर छवि वाली नेता बताया था। ममता की तारीफ करते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा था कि मोदी सरकार पर अंकुश लगाने के लिए ममता संघर्ष करने वाली सबसे बड़ी नेता हैं।

राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने पर ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा को बधाई दी है। विपक्षी की बैठक से पहले यशवंत सिन्हा ने राष्ट्रीय कारणों से पार्टी के काम से अलग होने की घोषणा करते हुए इस्तीफा दे दिया था।

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