गोवर्धन पूजाः अन्नकूट भी कहते हैं, गाय, गोवर्धन पर्वत और कृष्ण की होती है ऐसे पूजा

दीपावली का अगला दिन भी महत्वपूर्ण है। इस दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट, चित्रगुप्त पूजा के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय समाज के जीवन में काफी महत्व है।

Update:2020-11-14 10:21 IST
गोवर्धन पूजाः अन्नकूट भी कहते हैं, गाय, गोवर्धन पर्वत और कृष्ण की होती है ऐसे पूजा (Photo by social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: दीपावली का पर्व कोई एक पर्व नहीं पर्वों का समूह है। साधकों के लिए वरदान है। सही और सच्चे रूप में मानव धर्म का पाठ पढ़ाता है। इसलिए धनतेरस, नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, काली चौदस, भूत पूजा, कृष्ण चतुर्दशी के बाद दीपावली का पर्व आता है। जो कि दूसरों के जीवन में प्रकाश लाने की प्रेरणा देता है। अंधकार का पूरे ब्रहाण्ड में साम्राज्य है लेकिन एक दीपक अंधकार को चीर देता है। हमें अपने सबके जीवन को आलोकित करने की प्रेरणा देता है ये पर्व।

दीपावली का अगला दिन भी महत्वपूर्ण है। इस दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट, चित्रगुप्त पूजा के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय समाज के जीवन में काफी महत्व है।

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गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। गाय में 33 कोटि देवताओं का वास कहा गया है।

पुराणों के मुताबिक गाय के मुख में चारों वेदों का निवास होता है

पुराणों के मुताबिक गाय के मुख में चारों वेदों का निवास होता है। गाय के सींगों में भगवान शिव जी का वास माना जाता है। गाय के उदर में भगवान शिव जी के बड़े बेटे कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के आगे वाले भाग में भगवान इन्द्र, कानों में अश्विनीकुमार, आंखों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती निवास करती है।

गाय के अपान में सारे तीर्थ और मूत्र स्थान में गंगा जी, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प का वास होता है।

गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी और थनों में समुद्र विराजमान होता है। इसके अलावा गाय के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक लगाने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है।

यदि गाय की मृत्यु हो जाए तो उसके बाद भी जिस स्थान पर उसे दफनाया जाए उसके आसपास की बंजर जमीन भी उपजाऊ हो जाती है।

देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इसी लिए गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

इस संबंध में एक कथा है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे।

govardhan puja (Photo by social media)

मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं

श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।

मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है।

भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से ऐसा हुआ है।

तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया।

इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं।

प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा

ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।

इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

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गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन प्रात प्रात काल शरीर पर तेल की मालिश करने के बाद में स्नान करने का प्राचीन परंपरा है. इस दिन आप सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करिए पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से तैयार कीजिए।

इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। यदि आप से ठीक तरीके से नहीं बने तो आप चाहे जैसा बना लीजिए। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप इसे तैयार कर लीजिए फूल, पत्ती, टहनीयो एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए। फिर इसकी पूजा कीजिए। भगवान की कृपा बरसेगी।

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