मजदूर दिवस स्पेशल: वो सिर्फ मजदूर नहीं, हमारे इमारतों के रचनाकार भी है...
दुनिया बदली, सत्ता बदली, गांव बदले पर गरीब का हाल न बदला । 365 दोनों में एक भी दिन मजदूर छुट्टी नहीं लेते हैं, चाहे दिन हो या रात हर वक्त अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करते रहते हैं। हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है।शायर मन्नोवर राणा ने कहा है कि 'मजदूर फूटपाथ पर भी अखबार बिछाकर, बिना नींद की गोली खाएं चैन की नींद सोता है'
जयपुर: दुनिया बदली, सत्ता बदली, गांव बदले पर गरीब का हाल न बदला । 365 दोनों में एक भी दिन मजदूर छुट्टी नहीं लेते हैं, चाहे दिन हो या रात हर वक्त अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करते रहते हैं। हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है।शायर मन्नोवर राणा ने कहा है कि 'मजदूर फूटपाथ पर भी अखबार बिछाकर, बिना नींद की गोली खाएं चैन की नींद सोता है'
किसी भी देश के विकास में मजदूरों की सबसे बड़ी भूमिका है। ये मजदूर ही हैं, जिनके खून-पसीने से विकास की प्रतीक गगनचुंबी इमारतों की तामीर होती है। ये मजदूर ही हैं, जो खेतों में काम करने से लेकर किसी आलीशान इमारत को चमकाने का काम करते हैं। इस सबके बावजूद सरकार और प्रशासन से लेकर समाज तक इनके बारे में नहीं सोचता। बजट में भी सबसे ज्यादा इन्हीं की अनदेखी की जाती है। सियासी दल भी चुनाव के वक्त तो बड़े-बड़े वादे कर लेते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल जाते हैं। रोजगार की कमी की वजह से लोगों को अपने पुश्तैनी गांव-कस्बे छोड़कर दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ता है। अपने परिजनों से दूर ये मजदूर बेहद दयनीय हालत में जीने को मजबूर हैं।
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इतिहास में मजदूर
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 से हुई. इस दिवस को मनाने के पीछे उन मजदूर यूनियनों की हड़ताल है जो कि आठ घंटे से ज्यादा काम ना कराने के लिए की गई थी. इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेय मार्केट में बम ब्लास्ट हुआ था. जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें सात मजदूरों की मौत हो गई.पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गई। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत शिकागो में ही 1886 से की गई थी।भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर मनाया जाता था भारत समेत लगभग 80 मुल्कों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है।
इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए. साथ ही अमेरिका में मात्र 8 घंटे ही काम करने की इजाजत दे दी गई।
इस दिन देश के अस्सी देशों में छुट्टी रहती है। लेकिन आज भी कई शहरों मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। देश में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं।जाबकि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण है। आज जरूरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए ताकि उसका सख्ती से पालन हो सके।
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भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा।