Shastri Jayanti: नाना ने स्कूल में शास्त्री जी की जन्मतिथि लिखाई थी 8 जुलाई, काफी दिनों बाद हुआ था 2 अक्टूबर का संशोधन
Shastri Jayanti: इस महापुरुष की जयंती भी दो अक्टूबर को ही मनाई जाती है और वह महापुरुष हैं देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। शास्त्री जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली थी और
Shastri Jayanti: अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद करने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ एक और महापुरुष का नाम भी काफी आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। यह भी अजीब संयोग है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ इस महापुरुष की जयंती भी दो अक्टूबर को ही मनाई जाती है और वह महापुरुष हैं देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। शास्त्री जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली थी और
प्रधानमंत्री के रूप में अपने 19 महीने के कार्यकाल के दौरान नैतिक राजनीति का सर्वोच्च मापदंड स्थापित किया था। उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा और उनकी रहस्यमय मृत्यु का राज आज भी देशवासियों को झकझोर देता है।
शास्त्री जी ने ही देश को जय जवान और जय किसान का वह नारा दिया था जो आज भी काफी लोकप्रिय बना हुआ है। पूरे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ शास्त्री जी की जयंती भी 2 अक्टूबर को ही मनाई जाती है मगर यह बात हैरान करने वाली है कि स्कूली दस्तावेजों में शास्त्री जी की जन्म तिथि 8 जुलाई 1903 दर्ज है। हालांकि शास्त्री जी के बेटों अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री का कहना है कि शास्त्री जी के नाना ने भूलवश स्कूल में उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई लिखा दी थी मगर उनकी असली जन्मतिथि 2 अक्टूबर ही है।
पिता के निधन के बाद नाना बने सहारा
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म बनारस में गंगा के दूसरे किनारे पर मौजूद रामनगर में हुआ था। जब वे मात्र तीन साल के थे तभी 1906 में उनके नायब तहसीलदार पिता का निधन हो गया। पिता के अचानक निधन से परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसी विकट परिस्थिति में शास्त्री जी के नाना मदद के लिए आगे आए और उन्होंने उनकी मां और तीन बच्चों को काफी सहारा दिया।
शास्त्री जी के नाना मुगलसराय के रेलवे बेसिक स्कूल में हेडमास्टर के पद पर तैनात थे। उनकी मदद से परिवार संभल रहा था मगर दो साल बाद ही उनका भी निधन हो गया। शास्त्री जी के नाना के निधन के बाद उनके भाई हनकू लाल रेलवे स्कूल के हेडमास्टर बने और उन्होंने शास्त्री जी के परिवार को काफी मदद की।
नाना ने जन्मतिथि लिखाई थी 8 जुलाई
शास्त्री जी की जन्मतिथि को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। बनारस के बगल में स्थित चंदौली जिले के पीडीडीयू नगर के जिस प्राइमरी स्कूल में शास्त्री जी का पहली बार दाखिला कराया गया था, वहां उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई, 1903 लिखाई गई थी। इसी स्कूल के पूर्व छात्रों के नामांकन रजिस्टर संख्या 958 में शास्त्री जी के अभिभावक के रूप में हनकू लाल का ही नाम दर्ज है।
मुगलसराय में शुरुआती पढ़ाई के बाद 1917 में शास्त्री जी ने आगे का अध्ययन करने के लिए बनारस का रुख किया। बनारस में शास्त्री जी ने हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज और रेलवे इंटर कॉलेज में आगे की पढ़ाई की और यहां भी उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई,1903 ही लिखाई गई। बाद के दिनों में उनकी जन्मतिथि में संशोधन किया गया और उनकी जन्मतिथि सही कराकर दो अक्टूबर,1904 लिखाई गई।
जन्मतिथि लिखाने में हुई भूल
वैसे इस संबंध में शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री का कहना है कि स्कूली दिनों में बाबूजी की जन्मतिथि भूलवश गलत दर्ज करा दी गई थी। उनका कहना है कि बाबूजी की सही जन्मतिथि 2 अक्टूबर ही है। अनिल शास्त्री के मुताबिक पिताजी के नाना ने प्राइमरी स्कूल में दाखिला दिलाने के समय भूलवश उनकी जन्मतिथि 8 जुलाई लिखा दी थी। उनका कहना है कि मुझे आज तक याद है कि गांधी जयंती के दिन एक बार देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बाबू जी को जन्मदिन की बधाई दी थी।
शास्त्री जी के एक और बेटे सुनील शास्त्री का भी कहना है कि बाबू जी की जन्मतिथि के संबंध में कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि उनकी असली जन्म तिथि 2 अक्टूबर ही थी। सुनील शास्त्री का कहना है कि एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बाबूजी से खुद जन्मदिन न मनाने का कारण पूछा था। इस पर बाबूजी ने जवाब दिया था कि आपके जन्मदिन का जश्न मना लेने के बाद मुझे अपना जन्मदिन मनाने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं होती।
शास्त्री की सादगी-ईमानदारी बनी मिसाल
बनारस के रामनगर से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले शास्त्री जी तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे। यह उनकी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति का ही कमाल था कि वह देश के प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचने में कामयाब हुए।
उनकी सादगी और ईमानदारी की आज भी मिसाल दी जाती है और इसी कारण उनका नाम काफी सम्मान के साथ ही याद किया जाता है। अपने 19 महीने के कार्यकाल के दौरान उन्होंने पूरी दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया।
1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद में जब देश सूखे की विपदा से घिरा तो इन विषम परिस्थितियों से उबरने के लिए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने का अनुरोध किया था। उन्होंने देश को जय जवान और जय किसान का नारा दिया और महिलाओं को रोजगार देने की दिशा में सबसे पहले काम किया। इससे पहले देश की आजादी की लड़ाई में भी शास्त्री जी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
आजादी की लड़ाई में काटी जेल
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी की यात्रा की थी। गांधी जी के इस कदम ने पूरे देश में क्रांति की ज्वाला जला दी थी। आजादी की लड़ाई में लालबहादुर शास्त्री ने भी पूरी ऊर्जा के साथ हिस्सा लिया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई अभियानों का नेतृत्व किया जिसके कारण उन्हें करीब 7 वर्ष तक जेल की सजा काटनी पड़ी। फिर भी वे कभी नहीं झुके। आजादी के संघर्ष ने उन्हें पूर्ण रूप से परिपक्व बना दिया था।
1942 में देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर शास्त्री जी भी इस आंदोलन में कूद पड़े थे। क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए वे रूप बदल करने नैनी जा रहे थे, लेकिन मुखबिरी होने के बाद 19 अगस्त 1942 को उन्हें अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। अंग्रेज पुलिस की दमनपूर्ण कार्रवाई के बावजूद वे कभी अंग्रेजों के सामने नहीं झुके।
नैतिकता का स्थापित किया मानक
लाल बहादुर शास्त्री ने नैतिकता का ऐसा मानक स्थापित किया जिसे आज भी याद किया जाता है। एक रेल दुर्घटना में कई लोगों के मारे जाने के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी इस अभूतपूर्व पहल को देश और संसद में काफी सराहना मिली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी देश की संसद में इस मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने संसद में शास्त्री जी की ईमानदारी और उच्च आदर्शों की खुलकर सराहना की थी। पंडित नेहरू का कहना था कि मैंने शास्त्री जी का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि वे इस रेल दुर्घटना के लिए जिम्मेदार हैं बल्कि मैंने उनका इस्तीफा इसलिए स्वीकार किया है कि उनके इस कदम से संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी।
इस रेल दुर्घटना पर संसद में लंबी बहस हुई थी और बाद में इस बहस का जवाब देते हुए शास्त्री जी ने कहा था कि मेरी लंबाई कम होने और मेरे नम्र स्वभाव के कारण लोगों को ऐसा महसूस होता है कि मैं दृढ़ नहीं हो पा रहा हूं। यह सच्चाई है कि मैं शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत तो नहीं हूं, लेकिन मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूं। शास्त्री जी पूरा जीवन सादगी और नैतिकता की उच्च मिसाल वाला माना जाता रहा है। यही कारण है कि आज भी नैतिकता की दुहाई देने वाले सभी नेता काफी सम्मान के साथ शास्त्री जी को याद करते हैं।