जानें गणतंत्र के कुछ रोचक सत्य, भारतीयता के मूल में है गणतंत्र
भारत राज्यों का एक संघ है। यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है । जिसे संविधान सभा ने 26 नवंबर ,1949 को ग्रहण किया था। जो 26 जनवरी , 1950 से प्रभाव में आया। हालाँकि संविधान सभा के लिए जुलाई, 1946 में चुनाव हुए थे।
योगेश मिश्रा
(Yogesh Mishra)
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चार साल पहले भले ही यह कहा हो कि अमेरिका सबसे पुराना व भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। पर सच यह है कि भारत ही सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आज़ादी भले 15 अगस्त,1947 को आयी। गणतंत्र भले ही 26 जनवरी , 1950 से लागू हुआ हो। पर इतिहास साक्षी है कि छठवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व भारत में गणराज्य थे।
भारत राज्यों का एक संघ है
भारत राज्यों का एक संघ है। यह संसदीय प्रणाली की सरकार वाला गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है । जिसे संविधान सभा ने 26 नवंबर ,1949 को ग्रहण किया था। जो 26 जनवरी , 1950 से प्रभाव में आया। हालाँकि संविधान सभा के लिए जुलाई, 1946 में चुनाव हुए थे।इसके बाद देश का बँटवारा हुआ। संविधान सभा भी दो हिस्सों में बंट गयी।
संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान रचने की 166 दिन बैठक हुई। 11 सत्र आयोजित किये गये। बैठकों में प्रेस व आम जनता को भाग लेने की छूट थी। संविधान बनाने में 2 साल 11 महीने 17 दिन लगे थे।
26 जनवरी, 1950 को सुबह 10.18 बजे संविधान लागू
संविधान की मूल हस्तलिखित प्रतियों पर 24 जनवरी , 1950 को 308 सदस्यों ने दस्तख़त किए थे। 26 जनवरी, 1950 को सुबह 10.18 बजे संविधान लागू किया गया। हालाँकि कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता या पूर्ण स्वराज मनाने की घोषणा 1930 में ही कर दी गई थी । इसलिए कहा जा सकता है कि पहली बार पूर्ण स्वराज दिवस अथवा पूर्ण स्वतंत्रता दिवस छब्बीस जनवरी 1930 को ही मना किया था । डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने 26 जनवरी, 1950 को ही राष्ट्रपति पद की शपथ सरकारी आवास पर डबर हाल में ली थी। गणतंत्र दिवस के दिन ही भारतीय वायु सेना स्वतंत्र निकाय के रूप में अस्तित्व में आई।
संविधान की केवल दो मूल प्रतियां हैं। जो हस्तलिखित हैं । एक हिंदी में और एक अंग्रेज़ी में। इन प्रतियों को संसद भवन की लाइब्रेरी में नाइट्रोजन गैस युक्त बक्से में सुरक्षित रखा गया है। दो कंट्रोल मीटर इस बक्से की मानिटरिंग करते हैं। भारतीय संविधान की कोई भी मुद्रित या प्रिंटेड कॉपी उपलब्ध नहीं है। अभी तक एक हज़ार कॉपी हाथ से लिखी जा चुकी है।
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दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान
हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। जब लागू हुआ था तब उसमें 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूची, 22 हिस्से थे। जो आज बढक़र 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूची और 25 भाग हैं। ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका , पूर्व सोवियत संघ, आयरलैंड, जापान ,आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्ऱीका, फ्ऱांस और जर्मनी से उपबंध लिये गये है। हालाँकि ब्रिटेन का संविधान अलिखित है। भारत के संविधान का संरचनात्मक भाग भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लिया गया है।
26 नवंबर देश में संविधान दिवस है
प्रेम बिहारी रायज़ादा सक्सेना ने पूरा संविधान हाथ से लिखा। उन्होंने एक पैसा भी नहीं लिया । होल्डर निब से स्याही में डूबा डूबा कर संविधान लिखा गया था। प्रेम फ़ाउंडेशन के मुताबिक़ 432 निब इस्तेमाल हुई। निब 303 नंबर की थी। इसे लिखने में छह महीने का समय लगा था। जब संविधान लिखने को उनसे कहा गया तब उन्होंने जवाहर लाल नेहरू से कहा कि मेरी एक ही शर्त है कि मैं संविधान के हर पेज पर अपना नाम लिखूँगा । अंतिम पेज पर अपने दादा का नाम लिखूँगा । उनके दादा का नाम था राम प्रसाद सक्सेना था।
नंद लाल बोस जी ने भारतीय संविधान को चित्रों से सजाया। ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से होती है। अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं।
भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है। इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है। इस में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है।अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती है। किसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है। मध्य में बैठे हुए गुरु और उनके आसपास उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है।
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मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से
मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से होती है। इस चित्र में भगवान राम रावण को हराकर सीता जी को लंका से वापस ले आ रहे हैं। राम धनुष-वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं। उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं। इस चित्र को लेकर संविधान सभा में विवाद भी हुआ था।
ऐतिहासिक विकास क्रम के अनुसार भगवान कृष्ण को इस चित्र में दर्शाया गया है। कृष्ण के गीता उपदेश की जो तस्वीर सामान्य: हम देखते हैं, उसे ही नंदलाल ने इस भाग में उकेरा है। पांचवें भाग में भगवान गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। महात्मा बुद्ध और उनके चारों ओर उनके पांच शिष्य घेरकर बैठे हुए है। हिरन और बारहसिंहा जैसे जानवरों को भी दर्शाया गया है। अगले भाग में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति को उकेरा गया है।इस चित्र में तत्कालीन भारतीय संस्कृति के हर अंगों को समेटने की कोशिश की गई है। नृत्य करती हुई नर्तकियों के चारों ओर राजाओं का घेरा है। यह चित्र कलात्मक दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ है।
मूल संविधान में 15वां भाग चुनाव है
दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। मोहर पर देवनागरी लिपि में नालंदा विश्वविद्यालय लिखा हुआ है। ग्यारहवें भाग में उड़ीसा की मूर्तिकला का एक चित्र है। बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियों को दर्शाया गया है। शेषनाग के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं के चित्र हैं। भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है।चौदहवें भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है। बादशाह अकबर और उनके दरबारी बैठे हुए हैं। पीछे चंवर डुलाती हुई महिलाएं हैं। मूल संविधान में 15वां भाग चुनाव है। इस भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है।
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अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है
सोलहवें भाग में टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को बरतानिया सरकार से लोहा लेते हुए दिखाया गया है। सत्रहवें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगला भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है। सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतिनिधित्व करते इस चित्र में गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं। एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोडक़र खड़े हैं। उन्नीसवें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं। चित्र में अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ है कि इस पवित्र युद्ध में हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। बीसवें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। यह चित्र भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ऊंचाई का प्रतिबिंबन है। अगले भाग में दूर तक फैले रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला।
अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है। एक समय था, जब भारत बर्मा, इंडोनेशिया, मलय जैसे द्वीपों पर अपना अधिकार रखता था। चित्र में एक विशालकाय पानी का जहाज है, जो हमारे गौरवशाली सामुद्रिक विस्तार और हमारी यात्राओं का प्रतीक है।
पहली परेड देखने के लिए जो 15,000 लोग इकठ्ठे हुए थे
गणतंत्र दिवस का राजपथ पर पहली बार आयोजन 1955 में किया गया। पहली परेड देखने के लिए जो 15,000 लोग इकठ्ठे हुए थे उनके बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उनने खड़े होकर परेड देखा था। राजपथ को ही पहले किंग्सवे के नाम से जाना जाता था। 1950 से 1954 तक यह मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम , लाल क़िला, राम लीला मैदान,तथा किंग्सवे में यह समारोह मनाया जाता था। राजपथ परेड के नज़ारे देखने वाले पहले विदेशी मेहमान पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद थे। यह 1955 का साल था। जबकि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णों गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष हैं। यह 1950 का साल था।
प्लाइंग पास्ट सबसे अंत में होता है। जिसकी ज़िम्मेदारी पश्चिमी कमान के पास होती है। 41 हेलीकाप्टर व फाइटर प्लेन इसमें शामिल होते हैं। 2018 में सबसे अधिक दस अतिथि थे। 1952 व 1953 में किसी को आमंत्रण नहीं दिया गया था। 2019 के परेड में पहली बार आज़ाद हिंद फ़ौज के भागमल,ललित राम हीरा सिंह, आनंद यादव शामिल हुए थे। इनकी उम्र 90 साल से अधिक थी।1953 में पहली बार परेड में लोक नृत्य व आतिशबाजी को शामिल किया गया। सेना के जवान इंसास राइफ़ल लेकर चलते हैं जो भारत में बनी है। 23 जनवरी को परेड की रिहर्सल होती है जो बारह किलोमीटर की होती है। पर जब 26 जनवरी को परेड होती है तो वह आठ किलोमीटर ही होती है।
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गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति को 21, तोपों की सलामी
कहा जाता है कि गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति को 21, तोपों की सलामी दी जाती है। पर सच्चाई यह है कि सलामी सेना के केवल 7 तोपों से दी जाती है। जिन्हें पौंडर्स कहा जाता है। हर तोप तीन राउंड फ़ायरिंग होती है। ये तोपें 1941 की बनी हुई है। सेना के सभी कार्यक्रमों में इन तोपों को शामिल करने की परंपरा है। गणतंत्र दिवस की परेड में एक ईसाई गीत "एबाइड विद मी" (Abide with me) भी गाया जाता हैं । ऐसा माना जाता है कि यह गांधी जी को बहुत प्रिय था।
राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया ने डिज़ाइन किया था। पिंगली ने शुरुआत में जो झंडा डिज़ाइन किया वह सिर्फ़ लाल और हरे रंग का था। उन्होंने यह झंडा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के बेज़वाडा अधिवेशन में गाँधी जी के समक्ष पेश किया था। बाद में गांधी जी के सुझाव पर झंड में सफ़ेद पट्टी जोड़ी गई। आगे चलकर चरखे की जगह राष्ट्रीय प्रतीक स्वरूप अशोक चक्र को जगह मिली। राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई , 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। देश में तिरंगे का अर्थ राष्ट्रीय ध्वज है।
गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों का समापन बीटिंग रिट्रीट के साथ
गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों का समापन बीटिंग रिट्रीट के साथ होता है। यह कार्यक्रम रायसिना हिल्स पर होता है। इसके मुख्य अतिथि देश के राष्ट्रपति होते हैं। यह गणतंत्र दिवस के तीसरे दिन शाम को होता है।बीटिंग रिट्रीट में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन बजाते हुए मार्च करते हैं।
संविधान के वास्तुकार डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यह संविधान कितना अच्छा है यह इस पर निर्भर करेगा कि इसका उपयोग करने वाला कैसा है। गणतंत्र में गण आगे है। इंजन है। तंत्र पीछे है। ऐसे में संविधान की श्रेष्ठता गण पर निर्भर करती है। क्योंकि गण ही तंत्र को चुनता है।
( लेखक पत्रकार हैं।)
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