फिराक गोरखपुरी: उर्दू के अलहदा शायर, नेहरू से थे खास संबंध

फिराक इंग्लिश में भी बेहद अच्छे थे। वो खूब पढ़े-लिखे आदमी थे और एशिया और यूरोप के मामलों पर गहरी पकड़ रखते थे। उन्हें अपने विद्वान होने पर काफी गर्व भी था। 

Update: 2021-03-03 10:42 GMT
फिराक गोरखपुरी: उर्दू के अलहदा शायर, नेहरू से थे खास संबंध

लखनऊ: फिराक गोरखपुरी, उर्दू के एक ऐसे अलहदा शायर जिन्हें आज तक दुनिया भूल न पाई। भले ही वो वो इस दुनिया में न हों, लेकिन उनकी शायरी आज भी उनके होने का एहसास कराती हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कायस्थ परिवार में जन्म लेने वाले फिराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय था।

फिराक गोरखपुरी ने उर्दू गजल के क्लासिक मिजाज को नई ऊंचाईयां देने का काम किया। उन्होंने हर विधा में लिखा। मूलत: वो प्रेम और सौन्दर्य के कवि थे। इन्होंने स्वराज्य आंदोलन में भी हिस्सा लिया और डेढ़ साल की जेल की सजा भी काटी।

जब जेल से छूटे तो अखिल भारतीय कांग्रेस के ऑफिस में अवर सचिव पद पर काम करने लगे। ये जॉब उन्हें जवाहरलाल नेहरू ने दिलाई थी। लेकिन जब नेहरू यूरोप चले गए तो फिराक गोरखपुरी ने अवर सचिव का पद छोड़ दिया। फिर उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इंग्लिश के प्रोफेसर थे।

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नेहरू से थे बहुत अच्छे संबंध

यहां आपको बताते चलें कि फिराक गोरखपुरी के नेहरू से बहुत ही अच्छे संबंध थे। फिराक के भांजे अजयमान सिंह ने उन पर एक किताब लिखी है। फिराक गोरखपुरी- अ पोएट ऑफ पेन एंड एक्सटसी। इसमें उन्होंने एक किस्सा साझा किया है। ये किस्सा तब का है जब फिराक नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे मिलने पहुंचे थे।

दऱअसल, प्रधानमंत्री बनने के बाद जब नेहरू एक बार इलाहाबाद आए थे, तो उनके घर फिराक पहुंच गए। तब वहां पर मौजूद रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें पर्ची पर नाम लिख कर देने को कहा। इस पर उन्होंने अपना नाम रघुपति सहाय लिख दिया। जिसके बाद रिसेप्शनिस्ट ने आगे आर सहाय लिखकर पर्ची अंदर भेज दी। फिराक नेहरू के इंतजार में बैठे रहे, लेकिन कोई बुलावा नहीं आया।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

जब भड़क गए फिराक

जब इंतजार करते करते 15 मिनट गुजर गए तो फिराक भड़क उठे और चिल्लाने लगे। शोर की आवाज सुन जब नेहरू बाहर आए। जब उन्होंने माजरा समझा तो बोले कि मैं तीस 30 से तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं, मुझे क्या पता ये आर सहाय कौन है? फिर दोनों अंदर चले गए। अंदर लाने के बाद नेहरू ने उनकी सूरत देखकर पूछा कि नाराज हो? इसका जवाब फिराक ने शेर से दिया। उन्होंने कहा-

“तुम मुखातिब भी हो, करीब भी

तुमको देखें कि तुमसे बात करें”

इंग्लिश में थी अच्छी पकड़

बता दें कि फिराक इंग्लिश में भी बेहद अच्छे थे। वो खूब पढ़े-लिखे आदमी थे और एशिया और यूरोप के मामलों पर गहरी पकड़ रखते थे। उन्होंने महजब पर भी लिखा और राजनीति पर भी। उनके आलोचनात्मक लेख भी पढ़ने मिलते हैं। फिराक को विद्वान कहा जाए तो गलत नहीं होगा और उन्हें इस बात का गर्व बी था। वो अक्सर मजाक में कहा करते थे,

“हिंदुस्तान में सही अंग्रेजी सिर्फ ढाई लोगों को आती है। एक मैं, एक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आधा जवाहरलाल नेहरू।”

ये हैं फिराक गोरखपुर के कुछ शेर

“आए थे हंसते खेलते मय-खाने में ‘फिराक’

जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए”

 

“अब तो उन की याद भी आती नहीं

कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयां”

 

“एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं”

 

“इसी खंडहर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए

इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात”

 

“क्या जानिए मौत पहले क्या थी

अब मेरी हयात हो गई है”

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