बड़े संकट की और बढ़ती जिंदगी, फंस गई है लॉक-अनलॉक के पाटों के बीच

पहले अचानक लॉकडाउन उसके बाद उसे कम से कम चार बार बढ़ाना, फिर उसमें ढील से तेजी से बढ़ते संक्रमण के कारण दोबारा पहले के मुकाबले सख्ती से लॉकडाउन - देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक यही कवायद दोहराई जा रही है।

Update:2020-07-17 16:56 IST

नई दिल्ली: पहले अचानक लॉकडाउन उसके बाद उसे कम से कम चार बार बढ़ाना, फिर उसमें ढील से तेजी से बढ़ते संक्रमण के कारण दोबारा पहले के मुकाबले सख्ती से लॉकडाउन - देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक यही कवायद दोहराई जा रही है। लेकिन बार-बार होने वाले लॉकडाउन और अनलॉक की वजह से जीवन बिखरने लगा है। नौकरी, रोजगार, कमाई और पढ़ाई तो दूर की बात है, लोगों के लिए सामान्य जीवन जीना भी दूभर होता जा रहा है।

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बीते महीने से धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही थी लेकिन उसके बाद अचानक कोविड-19 संक्रमण में आए उछाल के बाद असम से लेकर पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल समेत कई राज्यों ने ज्यादा संक्रमित इलाकों में दोबारा सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया है। इससे आम लोगों की धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही जिंदगी एक बार फिर बेपटरी हो गई है।

कोरोना के कारण आमदनी पर असर

पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में 31 जुलाई तक पर्यटन से संबंधित तमाम गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई है। अभी एक सप्ताह पहले ही देशी-विदेशी सैलानियों में मशहूर इस पर्यटन केंद्र को सौ दिनों बाद दोबारा खोला गया था लेकिन संक्रमण की आशंका से गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) ने पर्यटन पर पाबंदी लगाते हुए तमाम पर्यटकों से शीघ्र लौटने को कहा है। जीटीए ने बिना खास जरूरत के इलाके के लोगों को मैदानी इलाकों में आवाजाही नहीं करने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि संक्रमण बढ़ने की वजह से सरकार को मजबूरी में सख्ती करनी पड़ रही है। राज्य में मास्क पहनना अनिवार्य है। बिना मास्क के बाहर निकलने वालों को लौटा दिया जाएगा। कोरोना से उपजी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने मास्क नहीं पहनने वालों पर कोई जुर्माना नहीं लगाने का फैसला किया है।

असम में सख्त लॉकडाउन

पूर्वोत्तर राज्य असम में कामरूप और जोरहाट जिले के विभिन्न इलाके सख्त लॉकडाउन में हैं। राजधानी गुवाहाटी भी कामरूप जिले के तहत ही है. राज्य के कई जिलों ने कामरूप से लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगा दी है. इसकी वजह वहां तेजी से बढ़ता संक्रमण है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तो राज्य में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की आशंका जता चुके हैं।

बेंगलुरु की हालत सबसे संवेदनशील

कर्नाटक की राजधानी और देश के सबसे बड़े तकनीकी हब बेंगलुरु की हालत सबसे संवेदनशील है। जून के मध्य तक वहां हालात बाकी शहरों के मुकाबले बेहतर थे। उस समय मुंबई में 60 हजार संक्रमित थे और 3,167 मौतें हुई थीं. दिल्ली में यह आंकड़ा क्रमशः 44 हजार और 1,837 था और चेन्नई में क्रमशः 34 हजार और 422। लेकिन बंगलुरू में महज 827 पॉजिटिव मामले थे और 43 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन उसके बाद अंतरराज्यीय सीमाएं खोलने की वजह से कोरोना का ग्राफ तेजी से चढ़ रहा है। मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने हालात की समीक्षा करने के बाद सख्त लॉकडाउन लागू किया है। एक केंद्रीय टीम भी राज्य का दौरा कर चुकी है। अब तमाम प्रमुख पर्यटन केंद्रों के होटलों और गेस्ट हाउसों को फिलहाल बंद करने का निर्देश दिया गया है। शुरुआती दौर में बेहतर कोविड-19 प्रबंधन के लिए सुर्खियां बटोरने वाला केरल भी खासकर प्रवासियों की वापसी के बाद कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहा है। राजधानी तिरुअनंतपुरम के अलावा कोच्चि में भी सख्त लॉकडाउन किया गया है।

जीवन पर प्रतिकूल असर

बार-बार होने वाले लॉकडाउन का आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है। नौकरी और रोजगार छिनने की वजह से ज्यादातर लोग पहले से ही मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं। बीते महीने पाबंदियों में ढील से उम्मीद की एक किरण पैदा हुई थी। अब तमाम राज्यों में नए सिरे से पाबंदियां लगाई जा रही हैं। समाजविज्ञानी भी इस स्थिति से चिंता में हैं। एक्स्पर्ट्स का कहना है कि उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच की यह अनिश्चितता बेहद खतरनाक है। आम लोगों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ना तय है। लेकिन इसके सिवा सरकारों के सामने दूसरा कोई चारा भी नहीं है।

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लोग खुद जिम्मेदार

समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस स्थिति के लिए काफी हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं। लॉकडाउन में ढील मिलते ही लोगों की भीड़ बाजारों से शॉपिंग मॉल तक उमड़ने लगी थी। अब उसी का खामियाजा भरना पड़ रहा है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बावजूद लोग मास्क के इस्तेमाल और सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। या तो उनमें जागरूकता का अभाव है या फिर वे हद दर्जे तक लापरवाह हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लोगों ने अपना रवैया नहीं बदला, तो आगे लंबे समय तक इसी तरह लॉकडाउन और अनलॉक के दो पाटों के बीच पिसते रहना पड़ सकता है।

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