प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा गरमाया! SC के फैसले पर LJP और कांग्रेस ने उठाए सवाल

कांग्रेस ने सरकारी नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का संसद में विरोध करेंगे।

Update: 2020-02-09 16:25 GMT

नई दिल्ली: कांग्रेस ने सरकारी नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का संसद में विरोध करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) देश से आरक्षण खत्म करना चाहती है।

खड़गे ने बेंगलुरु में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इस फैसले ने हाशिए के समुदायों को चिंतित किया है। हम इसके खिलाफ संसद के भीतर और बाहर विरोध करेंगे। बीजेपी और आरएसएस लंबे समय से आरक्षण को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।

एलजेपी भी असहमत

इससे पहले लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने भी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले के प्रति नाराजगी जाहिर की। एलजेपी सांसद चिराग पासवान ने ट्वीट कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 फरवरी 2020 को दिए गए निर्णय जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरी/पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है।



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अपने अगले ट्वीट में एलजेपी सांसद ने लिखा है कि लोक जनशक्ति पार्टी उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से सहमत नहीं है। यह निर्णय पूना पैक्ट समझौते के खिलाफ है। पार्टी भारत सरकार से मांग करती है कि तत्काल इस संबंध में कदम उठाकर आरक्षण/पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था जिस तरीके से चल रही है उसी तरीके से चलने दिया जाए।

हाईकोर्ट के फैसले को SC ने बदला

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से कहा था कि वह एससी/एसटी कैटिगरी में प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए क्वॉन्टिटेटिव डेटा एकत्र करे। हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसे पलट दिया गया है। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि डेटा एकत्र कर पता लगाया जाए कि एससी/एसटी कैटिगरी के लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं ताकि प्रमोशन में रिजर्वेशन दिया जा सके।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को रिजर्वेशन देने के लिए निर्देश जारी नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रमोशन में आरक्षण का दावा करे। कोर्ट इसके लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता कि राज्य सरकार आरक्षण दे।

सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी जजमेंट (मंडल जजमेंट) का हवाला देकर कहा कि अनुच्छेद-16 (4) और अनुच्छेद-16 (4-ए) के तहत प्रावधान है कि राज्य सरकार डेटा एकत्र करेगी और पता लगाएगी कि एससी/एसटी कैटिगरी के लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं ताकि प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सके। लेकिन ये डेटा राज्य सरकार द्वारा दिए गए रिजर्वेशन को जस्टिफाई करने के लिए होता है कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। लेकिन ये तब जरूरी नहीं है जब राज्य सरकार रिजर्वेशन नहीं दे रही है।

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कोर्ट ने कबा कि राज्य सरकार इसके लिए बाध्य नहीं है। और ऐसे में राज्य सरकार इसके लिए बाध्य नहीं है कि वह पता करे कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं। ऐसे में उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेश खारिज किया जाता है और आदेश कानून के खिलाफ है।

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