मुंबई: महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के कार्यकाल में विधानसभा में गुरुवार को एक ऐतिहासिक कानून पारित किया। विधानसभा में सर्वसम्मति से सामाजिक बहिष्कार (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2016 पारित किया गया। इस अधिनियम के पारित होते ही महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ क़ानून लाने वाला पहला राज्य बन गया है। महाराष्ट्र में जाति पंचायतों पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार ने यह क़ानून बनाया है।
क्या है यह क़ानून
विधानसभा में पारित किए गए इस अधिनियम के अनुसार जाति पंचायतों के निर्णय गैरकानूनी माने जाएंगे। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को तीन साल की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
महाराष्ट्र में पिछले काफी समय से जाति पंचायतों के अमानवीय न्याय के खिलाफ आवाजें उठती रही हैं। राज्य में कई ऐसी घटनाएं देखने को मिली जिनमे जाति पंचायतों ने लोगों को जाति से ही बहिष्कृत कर दिया। उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया। उन्हें सामूहिक रूप से मानसिक और शारीरिक प्रताड़ित किया। ज्यादातर ऐसे फरमान अंतरजातीय विवाह करने पर जारी किए जाते हैं। महाराष्ट्र में किसी को भी समाज से बहिष्कृत करने की सबसे अधिक घटनाएं कोकण के रायगढ़ जिले में होती हैं।
फडणवीस ने पूरा किया अपना वादा
विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बात का आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार बनने पर छह माह के भीतर जाति पंचायत विरोधी कानून बनाया जाएगा। भले ही यह क़ानून पारित करने में सरकार को छह महीनों से अधिक समय लग गया हो लेकिन फडणवीस ने यह विदेश्यक पारित कर अपना वादा जरूर पूरा किया।