Mahatma Gandhi Death Anniversary: गांधी चाहते थे जाति प्रथा का उन्मूलन
Mahatma Gandhi Death Anniversary: जाति के प्रश्न पर गाँधी जी अम्बेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उनके प्रति गहरा जुड़ाव रखते थे।
Mahatma Gandhi Death Anniversary: महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व, दुनिया भर के औपनिवेशिकता और नस्लवाद विरोधी आंदोलनों की प्रेरणा बना। वे भारत में सामाजिक समानता की स्थापना के पैरोकार थे और जाति प्रथा का उन्मूलन उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था।अपने जीवन के शुरूआती दौर में गांधीजी ने काम पर आधारित वर्णाश्रम धर्म की वकालत की। उन्होंने मैला साफ़ करने के काम का महिमामंडन किया और दलितों को हरिजन का नाम दिया। कई दलित बुद्धिजीवी और नेता मानते हैं कि गांधीजी ने मैकडोनाल्ड अवार्ड के अंतर्गत दलितों को दिए गए पृथक मताधिकार का विरोध कर दलितों का अहित किया।
गाँधी इस निर्णय को भारतीय समाज को विभाजित करने की चाल मानते थे। उनका ख्याल था कि इससे भारतीय राष्ट्रवाद कमज़ोर पड़ेगा। इसलिए उन्होंने इसके खिलाफ आमरण अनशन किया जो तभी समाप्त हुआ जब अम्बेडकर ने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जहाँ कई नेता और बुद्धिजीवी इसे महात्मा गाँधी द्वारा दलितों के साथ विश्वासघात मानते हैं वहीं अम्बेडकर ने गांधीजी को इस बात के लिए धन्यवाद दिया था कि उन्होंने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के जरिये दलितों को और अधिक आरक्षण देकर समस्या का संतोषजनक हल निकाला। उन्होंने लिखा - मैं महात्मा गाँधी का आभारी हूँ. उन्होंने मेरी रक्षा की।
सवाल जाति का
जाति के प्रश्न पर गाँधी जी अम्बेडकर के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उनके प्रति गहरा जुड़ाव रखते थे। यहाँ तक कि उन्होंने सिफारिश की थी कि अम्बेडकर की पुस्तिका 'जाति का उन्मूलन' सभी को पढ़नी चाहिए। अस्पृश्यता के विरुद्ध गाँधी के अभियान ने अम्बेडकर के प्रयासों को बढ़ावा दिया।
दूसरी ओर, महात्मा गाँधी से जब ब्रिटिश लेखक एचजी वेल्स ने 'मनुष्य के अधिकार' पर उनकी राय पूछी तो गाँधी जी ने 'कर्तव्यों के घोषणापत्र' पर जोर दिया था। माना जाता है कि यह प्रभावी रूप से जाति व्यवस्था की ही अभिलाषा थी जिसमें लोगों के दायित्वों पर जोर था, अधिकार वर्गों के आधार पर अपने आप ही मिल जाते थे।
महात्मा गांधी का विश्वास था कि जाति भारतीय समाज की प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने 1916 में महाराष्ट्र के एक मिशनरी सम्मेलन के दौरान अपने भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र जो जाति व्यवस्था उत्पन्न करने में सक्षम हो, उसकी अदभुत सांगठनिक क्षमता को नकार पाना संभव नहीं है। और जाति का व्यापक संगठन ना केवल समाज की धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करता है बल्कि यह राजनैतिक आवश्यकताओं को भी परिपूर्ण करता है। जाति व्यवस्था से ग्रामवासी न केवल अपने अंदरूनी मामलों का निपटारा कर लेते हैं बल्कि इसके द्वारा वे शासक शक्ति या शक्तियों द्वारा उत्पीड़न से भी निपट लेते हैं।
ईश्वरीय व्यवस्था
गांधी जी के अनुसार वर्णव्यवस्था मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं, बल्कि प्राकृतिक या ईश्वरीय व्यवस्था है। उन्होंने 1921 में अपनी गुजराती पत्रिका 'नवजीवन' में लिखा था - मेरा विश्वास है कि यदि हिंदू समाज अपने पैरों पर खड़ा हो पाया है तो वजह यह है कि इसकी बुनियाद जाति व्यवस्था के ऊपर डाली गई है। जाति का विनाश करने और पश्चिमी यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था को अपनाने का अर्थ होगा कि हिंदू अनुवांशिक पैतृक व्यवसाय के सिद्धांत को त्याग दें जो जाति व्यवस्था की आत्मा है। यदि हर रोज किसी ब्राह्मण को शुद्ध में परिवर्तित कर दिया जाए और शूद्र को ब्राह्मण में तो इससे अराजकता फैल जाएगी। गांधी जी ने लिखा था कि जाति व्यवस्था नियंत्रित तथा मर्यादित जीवन भोग का ही दूसरा नाम है। प्रत्येक जाति अपने जीवन में खुशहाल रहने के लिए ही सीमित है, वह जातीयता की सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकती है। हालांकि गांधी जी यह भी मानते थे कि जातियों में ऊंच-नीच की श्रेणी नहीं होना चाहिए सभी जातियों को समान माना जाना चाहिए और अवर्ण जातियों व अति शूद्रों को वर्ण व्यवस्था के भीतर लाना चाहिए।