त्योहारों का गुलदस्ता है मकर संक्रांति
अपने देश में कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही भगीरथ के आग्रह और तप से प्रभावित होकर गंगा उनके पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंची और वहां से होते हुए वह समुद्र में जा मिली थीं।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: उत्सवधर्मी हमारे देश में मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। हर राज्य में अपनी संस्कृति के हिसाब से इसका नाम अलग-अलग है। कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, पंजाब, हरियाणा में माघी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, उत्तराखंड में उत्तरायणी और असम में बिहू के नाम से यह पर्व होता है। वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं। वैसे पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से सक्रांति के एक दिन पहले ही मना लिया जाता है।
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एक नजर मकर संक्रांति पर्व की व्यापकता पर मकर संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु, उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड, माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, भोगाली बिहु : असम, शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी, खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार, पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल, मकर संक्रमण : कर्नाटक, लोहड़ी : पंजाब।
देश के बाहर
बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति, नेपाल : माघे संक्रान्ति या 'माघी संक्रान्ति' 'खिचड़ी संक्रान्ति', थाईलैण्ड : सोंगकरन, लाओस : पि मा लाओ, म्यांमार : थिंयान, कम्बोडिया : मोहा संगक्रान, श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल
इस दिन गंगा स्ना न का खास महत्वर माना जाता है
अपने देश में कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही भगीरथ के आग्रह और तप से प्रभावित होकर गंगा उनके पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंची और वहां से होते हुए वह समुद्र में जा मिली थीं। यही वजह है कि इस दिन गंगा स्ना न का खास महत्वर माना जाता है। यानी सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विविध रूपों में मनाया जाता है। देश में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। यह कोई एक पर्व नहीं पर्वों का समूह है।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व यानी 13 जनवरी को मनाते हैं। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए नाच गाने के बीच तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है।
इस अवसर पर मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाई जाती हैं। बेटियाँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे(बेटे) के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है
यूपी में दान का पर्व
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष आज से एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है।
14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। इस पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते हैं।
माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। इसके अलावा गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
बिहार में भी मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।
लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था
मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल।
इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है
इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
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असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
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