राष्ट्रपति चुनाव: ममता-सोनिया मुलाकात तय करेगी कितने पानी में है विपक्ष, नीतीश के संकेत अहम
बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से ममता बहुत ही बेचैन हैं। बंगाल एक ऐसा अकेला राज्य है कि जहां प्रणब मुखर्जी को दोबारा राष्ट्रपति बनाने की सूरत में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े ममता व माकपा के नेतृत्व वाले वाम दल मुखर्जी के नाम पर मुहर लगा देंगे।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ होने वाली मुलाकात पर राष्ट्रपति चुनाव की अटकलें केंद्रित हो गई हैं। विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस लोकसभा में कांग्रेस व अन्ना द्रमुक के बाद तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी है।
तृणमूल के 34 सांसद लोकसभा में व चार सांसद राज्यसभा में हैं। 294 सदस्यों वाली बंगाल विधानसभा में ममता बनर्जी के पास 211 विधायकों का सबसे बड़ा ब्लॅाक है। उसके बाद कांग्रेस के 44 व माकपा के पास 25 विधायक हैं।
नीतीश के संकेत
सोनिया-ममता की बातचीत का पूरा एजेंडा ही राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्ष की रणनीति को तय करना है। इस मुलाकात के ठीक 24 घंटे पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रणब मुखर्जी को ही दोबारा इस पद पर बिठाने का संकेत देकर सोनिया-ममता मुलाकात का एजेंडा तय कर दिया है।
प्रणब मुखर्जी को दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की संभावनाएं भले ही बहुत कम हैं क्योंकि मोदी को करीब से जानने वाले लोग बड़ी शिद्दत से इस बात को मानते हैं कि मोदी अकस्मात ऐेसा नाम सामने लाएंगे जिससे विपक्षी पार्टियां तो दूर भाजपा व संघ परिवार को भी वे असंमजसपूर्ण हालत में खड़ा कर देंगे।
ममता को राहत की तलाश
ज्ञात रहे कि पांच साल पहले जब कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को यूपीए के राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया था तो ममता बनर्जी ने बतौर कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का विरोध किया था। यह अलग बात है कि मतदान की तारीख आते-आते ममता बनर्जी का बंगाली अस्मिता के प्रति मन पसीजा। वे आखिर प्रणब दादा को अपनी पार्टी का वोट डालने को विवश हुईं।
तृणमूल सूत्रों का कहना है कि बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से ममता बहुत ही बेचैन हैं। बंगाल एक ऐसा अकेला राज्य है कि जहां प्रणब मुखर्जी को दोबारा राष्ट्रपति बनाने की सूरत में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े ममता व माकपा के नेतृत्व वाले वाम दल मुखर्जी के नाम पर मुहर लगा देंगे। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस तरह की कोई सहमति उभरेगी तो कांग्रेस इस पहल का पूरा समर्थन करेगी।
मजबूरियां भी हैं कुछ
लेकिन ममता खुलकर केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ वैसा जहर नहीं उगल रहीं जैसा कि साल भर पहले उनकी मनोदशा रहती थी। इसकी मूल वजह यह है कि उन्हें राज्य में विकास की रफ्तार आगे बढ़ाए रखनी है ताकि वे अगले चुनाव का ताकत के साथ सामना कर सकें। तो दूसरी ओर कई तरह के घोटालों में फंसे नेताओं की गर्दन बचाना है। शारदा चिटफंड के अलावा नारदा स्टिंग घोटाला है, जिसमें तृणमूल के सांसदों समेत 13 बड़े नेता लिप्त हैं। सीबीआई इसकी जांच कर रही है।
राष्ट्रपति मुखर्जी के पक्ष में एक अहम बात यह भी जाती है कि एक खांटी कांग्रेसी पृष्ठभूमि का नेता होने के बाद भी पिछले तीन साल से मोदी सरकार के साथ उनका कोई टकराव नहीं हुआ है जैसा कि आम तौर पर नई सरकार व प्रधानमंत्री के साथ पूर्व में कुछ राष्ट्रपतियों का प्रधानमंत्रियों के साथ होता रहा है।
लेकिन राष्ट्रपति भवन के सूत्रों का कहना है कि प्रणब मुखर्जी दोबारा राष्ट्रपति बनने को तभी राजी होंगे जब सत्ता पक्ष यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उनके नाम का प्रस्ताव विपक्ष के पास जाए।