बच्चों की मौत! BRD पर चिल्लाने वालों कोटा पर चुप क्यों....

ऐसे में कहीं न कहीं ये साफ हो जाता है कि जिसकी सरकार होती है उसको अपनी कमजोरी या फिर नाकामी नहीं दिखाई देती है। राजनेताओं का सिर्फ एक टारगेट होता है कि सत्ता में न रहो तो किसी भी मामले का विरोध करो चाहे वह कोई भी राजनीतिक दल हो।

Update: 2019-12-31 11:51 GMT

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सूबे की सत्ता संभालने के पांच महीने बाद ही गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत ने पूरे देश में भूचाल ला दिया था और प्रदेश समेत पूरे देश के लिए बड़ा मुद्दा बन गया था। सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस पर हल्ला बोल दिया था।

वहीं अब राजस्थान के कोटा का एक अस्पताल कई नवजात बच्चों की मौत का गवाह बना है। कोटा में एक महीने के अंदर 91 नवजात बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। इस बात की जानकारी होते ही जांच के लिए कमेटी गठित की गयी, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।

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बड़ा सवाल?

ऐसे में यहां एक सवाल उभरकर सामने आता है कि आखिर कोटा के इस मामले की खबर बीआरडी मेडिकल कालेज की तरह बड़ा मुद्दा क्यों नहीं बना? क्यों राजनीतिक पार्टियां इस पर सवाल नहीं खड़े कर रही है आखिर क्यों कांग्रेस-बीजेपी या अन्य राजनीतिक दल इस पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं।

क्या है मामला?

राजस्थान के कोटा में स्थित जेके लोन अस्पताल में एक माह के अंदर 77 बच्चों की मौत हो गयी। नवजातों की मौतों का मामला सामने आने बवाल शुरू हो गया। बढ़े बवाल को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से राजधानी जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज के दो विशेषज्ञ चिकित्सकों की एक जांच कमेटी बनाई गई। इस कमेटी में एसएमएस के एडिशनल प्रिंसिपल डॉ. अमरजीत मेहता और डॉ. रामबाबू शर्मा शामिल हैं।

जांच कमेटी ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट:

जांच कमेटी ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी, जिसमें इलाज में खामी की वजह से बच्चों की मौत की बात को नकारा गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों को ठंड में जीप या अन्य वाहनों में अस्पताल लाया गया, जो मौत का एक बड़ा कारण बनी। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक़, बच्चों की मौत ऑक्सीजन पाइपलाइन नहीं होने के कारण इंफेक्‍शन फैलने और ठंड के चलते हुई है।

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कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, अस्पताल के नियोनेटल आईसीयू में ऑक्सीजन की पाइपलाइन नहीं है। यहां सिलेंडरों से ऑक्सीजन सप्लाई की गई। ऐसे में बच्चों में इन्फेक्शन बढ़ गया। जिससे उनकी मौत हो गयी।

कमेटी ने दिए रिपोर्ट में सुझाव:

वहीं कमेटी ने रिपोर्ट में हालात सुधारने को लेकर सुझाव दिए हैं। इसके तहत अस्पताल में उपलब्ध उपकरणों की बीएसबीवाई और आरएमआरएस कोष से त्वरित मरम्मत कराने का सुझाव दिया गया। वहीं एनआईसीयू में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए पाइपलाइन डालने और पीडियेट्रिक वार्ड के विभागाध्यक्ष को स्थायी रूप से अस्पताल में बैठने को कहा गया।

क्या हुआ गारखपुर मामले में?

8 जनवरी को मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य कक्ष आग से धधक उठा जिसमें ऑक्सीजन कांड से लेकर दवा खरीद के महत्वपूर्ण दस्तावेज खाक हो गए। इस मामले में आरोपी डॉक्टर कफील आरोप साबित न होने के चलते बरी कर दिया गया। वहीं अभी भी गोरखपुर में इंसेफलाइटिस से कई बच्चों की मौत होती है। हालांकि सरकार इसके लिए जागरूकता अभियान और टीकाकरण अभियान चला रही है।

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ऐसे में कहीं न कहीं ये साफ हो जाता है कि जिसकी सरकार होती है उसको अपनी कमजोरी या फिर नाकामी नहीं दिखाई देती है। राजनेताओं का सिर्फ एक टारगेट होता है कि सत्ता में न रहो तो किसी भी मामले का विरोध करो चाहे वह कोई भी राजनीतिक दल हो।

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