EWS Quota: सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्टालिन ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण, पुनर्विचार याचिका दायर करेगी द्रमुक

EWS Quota: भाजपा,कांग्रेस और कई अन्य दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले का स्वागत किया गया है तो दूसरी और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके ने इसका तीखा विरोध किया है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-11-08 11:00 IST

एम के स्टालिन (photo: social media ) 

EWS Quota: सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने स्वर्ण वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले पर 3-2 के बहुमत से मुहर लगा दी है। संविधान पीठ ने इस कानून को भेदभावपूर्ण मानने से इनकार करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि इस आरक्षण व्यवस्था से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होता। भाजपा,कांग्रेस और कई अन्य दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले का स्वागत किया गया है तो दूसरी और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके ने इसका तीखा विरोध किया है। डीएमके की ओर से इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके के मुखिया एम के स्टालिन ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे के 10 फ़ीसदी आरक्षण को जारी रखने के फैसले पर हमने कानूनी सलाह मशविरा लेना शुरू कर दिया है। कानून के जानकारों से चर्चा के बाद इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। मोदी सरकार की ओर से गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने वालों में डीएमके भी एक पार्टी रही है। पार्टी ने इस महत्वपूर्ण मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपना रुख फिर स्पष्ट कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है। इस संबंध में दायर करीब 40 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद बहुमत के फैसले में जजों ने ईडब्ल्यूएस को तर्कसंगत बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सात दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार की ओर से 2019 में 103वें संविधान संशोधन के जरिए गरीब सवर्णों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी। तमिलनाडु सरकार ने ईडब्ल्यूएस कोटे का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया था। तमिलनाडु सरकार का कहना था कि आर्थिक स्थिति को आरक्षण का आधार नहीं बनाया जा सकता।

सामाजिक न्याय की लड़ाई को लगा धक्का

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक मुखिया स्टालिन ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि इस फैसले से सामाजिक न्याय की एक सदी से चल रही लड़ाई को बड़ा धक्का लगा है। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को इस फैसले के खिलाफ एकजुट होना होगा। उन्होंने कहा कि हम इस लड़ाई को यहीं नहीं छोड़ने वाले हैं। कानून के जानकारों से सलाह लेने के बाद इस संबंध में पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। हमारी पार्टी ने इस संबंध में कानूनी चर्चा का काम शुरू कर दिया है।

स्टालिन की सभी से एकजुट होने की अपील

तमिलनाडु सरकार की ओर से अभी तक ईडब्ल्यूएस कोटे को राज्य में लागू नहीं किया गया है। राज्य सरकार की ओर से इस कदम पर असहमति जताते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी। स्टालिन ने कहा कि सभी संगठनों और समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर एकजुट होना होगा। तभी इस मामले में हम मजबूती के साथ अपना पक्ष रख सकते हैं।

उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई काफी महत्वपूर्ण है और इसे एकजुट होकर ही जीता जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामाजिक न्याय की मूल अवधारणा को धक्का पहुंचाने वाला है और इसीलिए हमने इस लड़ाई को आगे भी जारी रखने का फैसला किया है।

डीएमके की ओर से दिया गया तर्क

डीएमके की ओर से पैरवी करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने भी कहा कि आरक्षण का मुद्दा सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है। आरक्षण के फैसले में आर्थिक न्याय करने की भावना नहीं थी। आरक्षण का मकसद उन लोगों को नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में दाखिले में समान अवसर मुहैया कराना था जिनके साथ लंबे समय से अन्याय हुआ है। उन्होंने कहा कि सिर्फ आर्थिक आधार पर गरीबों को आरक्षण देने की व्यवस्था उचित नहीं मानी जा सकती।

संसद में भी इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान डीएमके की ओर से जोरदार विरोध किया गया था। डीएमके को इस मुद्दे पर बिहार के प्रमुख राजनीतिक दल राजद का साथ मिला था। अन्य राजनीतिक दलों ने सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम का समर्थन किया था। बाद में यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी जिसके संबंध में सोमवार को शीर्ष अदालत की ओर से ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है।

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